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Home राष्ट्रीय

मार्च में हर दिन बदल रहा मौसम कर रहा क्या इशारा!

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
March 9, 2023
in राष्ट्रीय
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heat wave
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नई दिल्ली: अभी मार्च का ही महीना चल रहा है, पर गर्मी की चिंता सताने लगी है। भारतीयों ने इस बार काफी गर्म सर्दी देखी है। तापमान ने 100 साल पुराने रेकॉर्ड तोड़ दिए। इसने गर्मी के सीजन से पहले ही खतरे की घंटी बजा दी है। शायद यही वजह थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मार्च के पहले हफ्ते में गर्मी के मौसम से जुड़ी तैयारियों की समीक्षा के लिए हाई लेवल मीटिंग करते दिखे। आशंका जताई जा रही है कि गर्मी में काफी पहले ही और देर तक हीटवेव का सामना करना पड़ सकता है।

बारिश के पैटर्न में असामान्य बदलाव ने वैज्ञानिकों को भी चिंता में डाल दिया है। सर्दी के दौरान मौसम मुख्य रूप से बारिश का चक्र पश्चिमी विक्षोभ से प्रभावित होता है। ये ऐसे स्टॉर्म होते हैं जो भूमध्य सागर में बनते हैं और पूर्व की दिशा में ईरान-अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत की तरफ आते हैं। हिमालय इसे रोकता है और बारिश होती है। कुछ जगहों पर बर्फबारी भी होती है लेकिन बढ़ते वैश्विक तापमान ने इन प्रणालियों पर असर डालना शुरू कर दिया है। इससे न सिर्फ फ्रिक्वेंसी बल्कि तीव्रता भी बदल रही है। इसी का असर है कि उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में विंटर रेन बहुत कम देखने को मिली और तापमान बढ़ गया।

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पश्चिमी विक्षोभ और बारिश का चक्र
दिसंबर से फरवरी तक (पीक सीजन) हर महीने औसतन पांच से छह पश्चिमी विक्षोभ आते हैं। ये आमतौर पर जम्मू-कश्मीर क्षेत्र की तरफ आते हैं। इनमें से कम से कम दो मैदानी इलाकों तक पहुंचते हैं और सर्दी में बारिश होती है। हालांकि इस बार रेनी सिस्टम की तीव्रता बहुत ही कम रही। दिसंबर में कम से कम 7 पश्चिमी विक्षोभ देखने को मिले लेकिन इसमें केवल एक इतना मजबूत था कि उत्तर भारत में कुछ बारिश हो सके। इस तरह से करीब 122 साल में पहली बार सबसे ज्यादा गर्म दिसंबर बीत गया। जनवरी में भी सात पश्चिमी विक्षोभ दर्ज किए गए जिसमें केवल चार के चलते उत्तर भारत में कुछ बारिश, बर्फबारी और ओले देखने को मिले। फरवरी में एक के बाद एक पांच पश्चिमी विक्षोभ आए जो नॉर्थ इंडिया की तरफ बढ़े लेकिन ज्यादातर कमजोर थे। इससे हल्की बारिश ही हो सकी।

मौसम का हाल
इस तरह के कुल 19 सिस्टम में से केवल 5-6 ने उत्तर पश्चिम के मैदानी इलाकों में असर डाला और बारिश कराई। एक मौसम एक्सपर्ट ने कहा कि पश्चिमी विक्षोभ बन रहे हैं लेकिन ये उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों को उतना प्रभावित नहीं कर रहे हैं। अब ज्यादातर गतिविधि जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के ऊपरी पहाड़ी क्षेत्रों तक सीमित होकर रह गई है। ऐसे में ऊपरी इलाकों में बर्फबारी तो अच्छी हुई लेकिन उत्तर-पश्चिम के मैदानों में बारिश सामान्य से काफी कम रही। दिसंबर में -83 प्रतिशत बारिश हुई जो जनवरी में सुधरकर +23 फीसदी और फरवरी में उत्तर-पश्चिम भारत में फिर से -76 प्रतिशत रही।

खेती पर असर
पश्चिमी विक्षोभ के चलते भारत में खेती पर असर पड़ता है। सर्दी में बारिश की मात्रा और तीव्रता से रबी की फसलें जैसे गेहूं की खेती प्रभावित होती है। पूरी दुनिया में सर्दी का मौसम गर्म होता जा रहा है। लेकिन भारत के केस में, बढ़ती आबादी के जोखिम के चलते इसका प्रभाव ज्यादा देखने को मिल सकता है। वैज्ञानिक पश्चिमी विक्षोभ में बदलाव की जांच कर रहे हैं, जिसकी सबसे बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन है। ग्लोबल वॉर्मिंग के साथ पश्चिम विक्षोभ हल्का पड़ता जा रहा है।

सर्दी कम, गर्मी ज्यादा
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ जियोमैग्नेटिज्म के डायरेक्टर डॉ. एपी डिमरी ने ‘न्यूज18’ से कहा कि ऐसा देखा जा रहा है कि सभी पश्चिम विक्षोभ बारिश नहीं लाते हैं। इसका मतलब है कि ऐसे कई दिन बीतते हैं जब बारिश नहीं होती है, इसके उलट पश्चिमी विक्षोभ न होने की स्थिति में नॉर्थ इंडिया में अच्छी बारिश हो जाती है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था (IPCC) पहले ही भारतीय उपमहाद्वीप में तापमान और हीटवेव बढ़ने की प्रवृत्ति की आशंका जता चुकी है। अनुमान लगाए जा रहे हैं कि भविष्य में हीट कंडीशन की स्थिति बढ़ेगी, सर्द दिन और रातें कम होंगी।

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