नैनीतालः उत्तराखंड में अंकिता हत्याकांड से प्रकाश में आयी राजस्व पुलिस (पटवारी) व्यवस्था एक बार फिर कठघरे में है और देहरादून की समाधान नामक गैर सरकारी संस्था ने इस पर सवाल उठाते हुए उच्च न्यायालय से राजस्व पुलिस व्यवस्था को खत्म करने और पहाड़ी क्षेत्रों को भी सिविल पुलिस के हवाले करने की मांग की है।
तीन सप्ताह में दें जवाबः मुख्य न्यायाधीश
मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी की अगुवाई वाली पीठ ने इस प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए प्रदेश के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर व्यक्तिगत रूप से तीन सप्ताह में जवाब देने को कहा है। अदालत की ओर से पूछा गया कि उच्च न्यायालय की ओर से वर्ष 2018 में दिये गये आदेश के अनुपालन के संबंध में क्या कदम उठाये गये हैं? देहरादून जाखन स्थित गैर सरकारी संस्था की ओर से याचिका दायर कर कहा गया कि उच्च न्यायालय की ओर से 12 जनवरी 2018 को एक आदेश जारी कर प्रदेश में राजस्व पुलिस व्यवस्था को खत्म कर पूरी तरह से सिविल पुलिस व्यवस्था लागू करने के निर्देश दिये थे। अदालत ने आदेश जारी होने की तिथि से छह माह के अंदर इसे लागू करने को कहा था।
सरकार की ओर से इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया गया
याचिकाकर्ता की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि सरकार की ओर से इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया गया है। राजस्व पुलिस को प्रदेश की राजस्व संबंधी कामकाम के साथ ही कानून व्यवस्था संभालने की भी जिम्मेदारी सौंपी गयी है। राजस्व पुलिस सिविल पुलिस की तरह उचित रूप से प्रशिक्षित नहीं होती है और न ही उसे आपराधिक व कानूनी जानकारी उपलब्ध करायी जाती है। प्रदेश की कुल आबादी 10,86,292 है और इस आबादी पर मात्र 156 थाना मौजूद हैं। इसप्रकार 64,665 लोगों पर मात्र एक थाना उपलब्ध है।
याचिकाकर्ता की ओर से राजस्व पुलिस पहाड़ी क्षेत्रों में कानून व्यवस्था संभालने में सक्षम नहीं है। ऋषिकेश के अंकिता हत्याकांड का हवाला देते हुए कहा गया कि घटना राजस्व पुलिस क्षेत्र में होने के चलते तत्काल उचित कार्यवाही नहीं हो पायी। याचिकाकर्ता की ओर से आगे कहा गया कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सुंदरलाल बनाम राज्य मामले में भी वर्ष 2018 में राजस्व पुलिस व्यवस्था खत्म करने के साथ ही सरकार को राज्य में पर्याप्त पुलिस स्टेशन खोलने के निर्देश दिये थे। इस मामले में तीन सप्ताह बाद सुनवाई होगी।