Upgrade
पहल टाइम्स
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
No Result
View All Result
पहल टाइम्स
No Result
View All Result
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • ईमैगजीन
Home दिल्ली

कश्मीर पर नेहरू ने की पांच सबसे बड़ी भूल… कानून मंत्री किरन रिजिजू ने सबूतों संग गिनाई एक-एक गलती

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
October 28, 2022
in दिल्ली, राष्ट्रीय, विशेष
A A
Kiren Rijiju
27
SHARES
889
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp

नई दिल्ली: 27 अक्टूबर को ही जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हुआ था। इसकी 75वीं वर्षगांठ के मौके पर देश के कानून मंत्री किरन रिजिजू ने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की कश्मीर नीति की आलोचना की है। उन्होंने एक लेख लिखकर नेहरू की पांच गलतियां गिनाई हैं। बकौल रिजिजू नेहरू की इन पांच गलतियों से कश्मीर समस्या पैदा हुई जो दशकों तक देश के गले की फांस बनी रही। उन्होंने अपने लेख की शुरुआत में लिखा है, ’27 अक्टूबर को हम दो नजरिए से देख सकते हैं। पहला यह कि इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन के जरिए कश्मीर के भारत में विलय की 75वीं वर्षगांठ के तौर पर जो ऐतिहासिक रूप से सही भी है। हालांकि, एक दूसरा नजरिया भी है जो आज के संदर्भ में देखने पर पहले से ज्यादा प्रासंगिक और उचित लगता है। 27 अक्टूबर जवाहर लाल नेहरू के सबसे बड़ी गलतियों की श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण दिन है। उन्होंने इस तारीख से पहले और बाद में कई गलतियां की हैं जो भारत को अगले सात दशकों तक भारत के लिए सिरदर्द बना रहा।’ आइए जानते हैं कि केंद्रीय मंत्री ने कश्मीर पर नेहरू की कौन-कौन सी बड़ी गलतियां गिनाई हैं…

पहली भूल- कश्मीर को स्पेशल केस बताया
कश्मीर पर नेहरू की गलतियों की पूरी श्रृंखला में पहली सबसे बड़ी भूल उनके भाषण से झलकती है जिसमें उन्होंने कश्मीर के स्पेशल केस बताया था। नेहरू कहते हैं, ‘हमने दोनों (महाराजा हरि सिंह और नैशनल कॉन्फ्रेंस) को सलाह दी कि कश्मीर एक स्पेशल केस है और वहां हड़बड़ी में फैसला लेना उचित नहीं होगा।’ लेकिन नेहरू चाहते क्या थे? उनके खुद के जवाब से बेहतर और क्या हो सकता है? वर्ष 1952 के अपने भाषण में वो आगे कहते हैं, ‘महाराजा और उनकी सरकार तब भारत में विलय चाहते, तो मैं उनसे कुछ और उम्मीद करता। वो ये कि वहां लोगों की राय ली जाए।’ हालांकि, इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट में ऐसी कोई शर्त नहीं थी कि प्रिंसली स्टेट्स का भारत में विलय से पहले लोगों की राय ली जाए। भारतीय संघ से जुड़ने की शासक की इच्छा काफी थी। दूसरे प्रिंसली स्टेट्स ने ठीक वैसा ही किया।

इन्हें भी पढ़े

सांसद रेणुका चौधरी

मालेगांव फैसले के बाद कांग्रेस सांसद के विवादित बोल- हिंदू आतंकवादी हो सकते हैं

July 31, 2025
पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु

इस नेता ने लगाया था देश का पहला मोबाइल फोन कॉल, हेलो कहने के लग गए थे इतने हजार

July 31, 2025

‘एक पेड़ मां के नाम’: दिल्ली के सरस्वती कैंप में वृक्षारोपण कार्यक्रम, समाज को दिया पर्यावरण संरक्षण का संदेश!

July 31, 2025
nisar satellite launch

NISAR : अब भूकंप-सुनामी से पहले बजेगा खतरे का सायरन!

July 30, 2025
Load More

कश्मीर अति प्राचीन काल से भारतीय सांस्कृतिक चेतना का एक केंद्र रहा है। विभाजन के वक्त कश्मीर के शासक बिना शर्तों के बाकी भारत से जुड़ना चाहते थे। इस मिलन को खारिज करने वाले और कोई नहीं, नेहरू थे। और किसलिए? नेहरू ने कश्मीर के लिए जनता की स्वीकार्यरता का पैंतरा गढ़ा क्योंकि उनकी नजर में यह ‘स्पेशल केस’ था। नेहरू की नजर में कश्मीर के लिए जो स्पेशल था, उसी के कारण वह भारत में स्वतः और बिना किसी समझौते के भारत में विलय का उम्मीदवार नहीं बन सका? हालांकि, नेहरू की गलतियां जुलाई 1947 की दगाबाजियों तक ही सीमित नहीं रहीं। विभाजन में हुए रक्तपात और हिंसा के बावजूद नेहरू कश्मीर के विलय से पहले अपना पर्सनल अजेंडा पूरा करने पर अड़े रहे।

नेहरू ने कश्मीर में जो खालीपन पैदा किया उससे पाकिस्तान को वहां दखल देने का मौका मिल गया और आखिर में कबायलियों के वेश में पाकिस्तानी सैनिकों ने 20 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर पर हमला कर दिया। फिर भी नेहरू टस से मस नहीं हुए। पाकिस्तानी हमलावर कश्मीर की तरफ तेजी से बढ़ रहे थे। महाराजा हरि सिंह ने फिर नेहरू से आग्रह किया कि कश्मीर का भारत में विलय करवा लिया जाए। लेकिन नेहरू उस वक्त भी अपने पर्सनल अजेंडे को पूरा करने के लिए समझौता कर रहे थे।

पाकिस्तानी हमले के दूसरे दिन 21 अक्टूबर, 1947 को नेहरू ने जम्मू-कश्मीर के प्रधामंत्री एमस महाजन को एक चिट्ठी के जरिए सलाह दी कि ‘ऐसे मौके पर भारत में कश्मीर के विलय की घोषणा करना संभवतः अवांछनीय होगा।’ लेकिन नेहरू की ऐसी बेतहाशा चाहत क्या थी कि आक्रमण ने भी उन्हें अपने अजेंडे से हिलने नहीं दिया? एमसी महाजन को लिखी उसी चिट्ठी में ही वो अपनी चाहत का खुलासा करते हैं। इसलिए हमें इधर-उधर की बातें करने की जगह नेहरू के शब्दों पर ही जाना चाहिए। वो कहते हैं, ‘मैंने आपको अस्थायी सरकार के गठन जैसे कुछ कदम उठाने की त्वरित कार्रवाई का सुझाव दिया था। शेख अब्दुल्ला को ऐसी सरकार बनाने को कहा जा सकता है जो स्वाभाविक रूप से कश्मीर में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं।’

जो इतिहास भूल जाते हैं वो इतिहास लिख भी नहीं सकते। वो भी ऐसा इतिहास जिसे देश को आज तक भुगतना पड़ रहा है। जम्मू-कश्मीर 75 साल तक हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या बनकर रहा। उस भूल की वजह से कितने लोगों ने कुर्बानी दी। उस भूल को मिटाने का प्रयास भी किया जा रहा था। मैंने जो लिखा (ट्वीट) वो इतिहास में लिखा है। जवाहरलाल नेहरू ने लोकसभा में जो बात कही, संयुक्त राष्ट्र में बात (कश्मीर मुद्दा) को लेकर गए ये सब डॉक्यूमेंटेड है। इसे देश के लोगों के सामने रखना जरूरी है।

किरन रिजिजू, कानून मंत्री, भारत सरकार

अपने दोस्त शेख अब्दुल्ला को सरकार में बिठाना नेहरू के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण था, ना कि कश्मीर का भारत में विलय करवाया जाए। जुलाई 1947 में भी नेहरू ने यही मांग रखी थी जब महाराजा हरि सिंह ने पहली बार भारत में विलय के प्रस्ताव को लेकर नेहरू से संपर्क किया था। उसी वक्त समझौता हो जाता और पूरा अध्याय ही खत्म हो जाता, बशर्ते नेहरू अपना पर्सनल अजेंडा को छोड़कर इंडिया फर्स्ट के बारे में सोचे होते। लेकिन नेहरू उस आखिरी वक्त तक विलय को टालते रहे जब पाकिस्तानी फोर्सेज गिलगिट, बाल्टिस्तान और मुज्जफराबाद पर कब्जे की तरफ बढ़ते जा रहे थे। उन्होंने लूट-मार की और रास्तेभर में कोहराम मचाते हुए 25-26 अक्टूबर, 1947 के आसपास श्रीनगर के करीब पहुंच गए। उस वक्त भी महाराजा ने जब इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर एकतरफा दस्तखत कर दिया, तब भी नेहरू ना-नुकुर कर रहे थे।

वर्ष 1952 में लोकसभा में दिए गए भाषण में नेहरू ने उन दिनों की चर्चा की थी। उन्होंने कहा था, ‘मुझे याद है कि 27 अक्टूबर की तारीख होगी जब दिनभर की मीटिंग के बाद हम शाम में इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सभी जोखिमों और खतरों के बावजूद हम अब इस मांग को ठुकरा नहीं सकते।’ 26 अक्टूबर, 1947 को जब पाकिस्तानी फोर्सेज श्रीनगर की दहलीज पर पहुंच गए तब भी नेहरू अपने पर्सनल अजेंडे को लेकर ही चिंतित थे जबकि देशहित की मांग कुछ और थी।

आखिरकार 27 अक्टूबर, 1947 को विलय पत्र स्वीकार कर लिया गया और भारतीय फौज कश्मीर में उतर गई। फिर तो पाकिस्तानी हमलावरों के छक्के छूटने लगे। कश्मीर का पूरा इतिहास बिल्कुल अलग रहा है। भारत में उसका विलय जुलाई 1947 में ही हो सकता था।

अगर वक्त पर विलय हो गया होता तो पाकिस्तान का हमला नहीं होता, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर नहीं होता, मामला संयुक्त राष्ट्र तक नहीं पहुंचता, बाद के दशकों में कश्मीर पर लड़ने का पाकिस्तान के पास कोई अधिकार नहीं होता, जिहादी आतंकवाद नहीं होता और 1990 में कश्मीरी हिंदुओं का सामूहिक पलायन नहीं होता। 21 अक्टूबर, 1947 तक भी नेहरू ने ऐक्शन दिखाया होता तो भी आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर नहीं होता। लेकिन नेहरू की भारी गलतियां अक्टूबर 1947 को ही नहीं खत्म हुईं।

दूसरी भूल- विलय को अस्थाई करार दिया
कश्मीर पर नेहरू की दूसरी सबसे बड़ी भूल थी- अंतिम विलय को भी अस्थायी विलय घोषित करना। महाराजा हरि सिंह ने बिल्कुल उसी विलय पत्र पर दस्तखत किया था जिस पर अन्य रजवाड़ों ने किया था। सभी रजवाड़ों का भारत में विलय हो गया, सिर्फ कश्मीर को छोड़कर। क्यों? क्योंकि नेहरू ने विलय को अस्थाई घोषित किया था, ना कि महाराजा ने। 26 अक्टूबर को नेहरू ने एमसी महाजन को एक और चिट्ठी लिखी और कहा, ‘भारत सरकार घोषित नीति के तहत कश्मीर के विलय को अस्थाई तौर पर ही स्वीकार करेगी और घोषित नीति यह है कि ऐसे मुद्दे जनता की इच्छा के मुताबिक ही हल होने चाहिए।’

विलय को नेहरू की तरफ से अस्थाई घोषित किए जाने के बाद कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिससे लगने लगा कि कश्मरी कहीं ना कहीं अलग तो है। यह भी धारणा बनने लगी कि कश्मीर का विलय विवादास्पद है और भारत में इसके स्थाई विलय के सिवा भी कई और विकल्प हो सकते हैं। जुलाई 1947 में नहीं तो 27 अक्टूबर, 1947 को ही नेहरू के पास कश्मीर विलय के प्रश्न का हमेशा के लिए समाधान का मौका था। लेकिन नेहरू की भारी भूलों से ऐसा दरवाजा खुल गया जिससे होकर सात दशकों तक संदेहों, अलगाववादी भावनाओं और रक्तपात के रास्ते गुजरे।

तीसरी भूल- आर्टिकल 51 के बजाय आर्टिकल 35 का जिक्र
कश्मीर पर नेहरू की तीसरी सबसे बड़ी भूल आर्टिकल 51 के बजाय आर्टिकल 35 के तहत 1 जनवरी, 1948 को संयुक्त राष्ट्र का दरवाजाज खटखटाना था। आर्टिकल 51 पाकिस्तान का भारत पर अवैध कब्जे को उजागर करने के नजरिए से सटीक होता। महाराजा ने सिर्फ एक विलय पत्र पर दस्तखत किया था और वह भारत का था। फिर भी, नेहरू ने कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच का विवाद बताकर पाकिस्तान को बेवजह एक पक्ष बना दिया। तब से संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव भारत को परेशान करते रहे।

चौथी भूल- भारत के प्रति गलत धारणा विकसित होने दिया
कश्मीर पर नेहरू की चौथी सबसे बड़ी गलती इस धारणा को बलवति होने देना था कि संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के तहत कश्मीर में जनमत संग्रह करवाना अनिवार्य है जिसे भारत ने रोक रखा है। भारत-पाकिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र आयोग (UNCIP) के 13 अगस्त, 1948 के प्रस्ताव में तीन शर्तें क्रमवार रखी गई थीं। पहली- युद्धविराम। दूसरी- पाकिस्तान को अपने सभी सैनिक पीछे हटाने होंगे और तीसरी- जनमत संग्रह। तिसरी शर्त की बात तभी हो सकती है जब पहली दोनों शर्तें पूरी हों। 1 जून, 1949 को युद्धविराम हो गया। लेकिन पाकिस्तान ने कब्जे में लिए इलाके को खाली करने से इनकार कर दिया। इसलिए, 23 दिसंबर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र के आयोग ने भारत के स्टैंड से सहमति जताई कि पहली और दूसरी शर्तें पूरी नहीं हुईं तो तीसरी शर्त पूरा करने की अनिवार्यता खत्म हो जाएगी। आयोग ने 5 जनवरी, 1949 के प्रस्ताव में भी इसकी पुष्टि की। इसलिए आयोग खुद स्वीकार किया कि उसके प्रस्ताव के तहत दूसरी शर्त को नहीं मानकर पाकिस्तान ने जनमत संग्रह का रास्ता बंद कर दिया। फिर भी, भारत पर जनमत संग्रह की तलवार लटकती रही। क्यों? क्योंकि नेहरू ने खुद ही इसका दरवाजा खोल रखा था!

पांचवीं भूल- आर्टिकल 370 बनाना
कश्मीर पर नेहरू की पांचवी सबसे बड़ी गलती निश्चित तौर पर आर्टिकल 370 (संविधान के अंतरिम मसौदे में आर्टिकल 306ए) बनाकर उसे चिरस्थायी कर देना था। पहली नजर में ऐसे आर्टिकल का कोई औचित्य नहीं था क्योंकि विलय पत्र वही था जिस पर अन्य रजवाड़ों ने दस्तखत किए थे। स्पेशल केस तो सिर्फ नेहरू के दिमाग की उपज थी। दरअसल, संयुक्त प्रांत के एक मुस्लिम प्रतिनिधि मौलाना हसरत मोहानी ने संविधान सभा की बहसों में कई सवाल उठाए। 17 अक्टूबर, 1949 को मौलाना मोहानी ने खास तौर से पूछा, ‘आप इस शासक के प्रति ऐसा भेदभाव क्यों कर रहे हैं?’ ना तो नेहरू और ना ही शेख अब्दुल्ला से बातचीत करने वाले नेहरू के प्रतिनिधि एन. गोपालस्वामी आयंगर के पास इस सवाल को कोई जवाब था। आयंगर ने ही आर्टिकल 370 (तत्कालीन 306ए) को गढ़ा था। नेहरू अपने रास्ते पर चले और आर्टिकल 370 अस्तित्व में आ गया और इस कारण अलगाववादी भावनाओं को संस्थागत स्वरूप मिल गया। फिर अलगाववादी विचारधारा भारत के गले ही पड़ गई।

रिजिजू का आरोप- नेहरू ने राष्ट्रहित को सर्वोपरि नहीं माना
उन अशांत वर्षों के बाद सात दशक बीत गए। भारत ने तब से नेहरू के राष्ट्र हित के ऊपर अपने परिवार, दोस्ती और व्यक्तिगत अजेंडे के रखे जाने का खामियाजा भुगता है। दुनिया के हाथ भारत को नीचे धकेलने का सूत्र लग गया। पाकिस्तान ने अपने कब्जे में लिए इलाके का कुछ हिस्सा चीन को दे दिया। 1980 के दशक में जिहादी आतंकवाद शूरू हो गया। कश्मीरी हिंदुओं को उनकी पैतृक जमीन से भगाकर अपने ही देश में शरणार्थी बना दिया गया। आतंकवाद ने हजारों भारतीयों को लील लिया। देश के अलग-अलग हिस्सों के सैनिकों ने मातृभूमि की सेवा में अपनी जान की कुर्बानियां दीं। हालांकि, कुछ अलग हो सकता था…

पीएम मोदी ने सुधारीं दशकों की गलतियां: रिजिजू
एक आदमी की गलतियों से सात दशक और अवसरों की कई पीढ़ियां हमने खो दीं। हालांकि, सात दशक बाद 5 अगस्त, 2019 को इतिहास ने नई करवट ली। 1947 से बिल्कुल इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बनाए जा रहे नए भारत में भारत सर्वोपरि ही एकमात्र गाइडिंग प्रिंसिपल है। इसलिए पीएम मोदी ने उन सभी गलतियों का समूल विनाश कर दिया जो 1947 से ही भारत को अंदर-अंदर चोट पहुंचा रही थीं। आर्टिकल 370 हटा दिया गया, भारतीय संविधान पूरे जम्मू-कश्मीर में लागू हो गया, अलग संघशासित प्रदेश बनाकर लद्दाख के लोगों को न्याय दिया गया और पूर्ण विलय के साथ-साथ लोगों को घावों पर मरहम लगाने का काम पूरी प्राथमिकता से शुरू हुआ।


(लेखक किरन रिजिजू केंद्रीय कानून मंत्री हैं।)

इन्हें भी पढ़ें

  • All
  • विशेष
  • लाइफस्टाइल
  • खेल

आर पार की बात: हिमालय में ज्योतिर्मठ का अंधकारमय भविष्य 

January 18, 2023
CM Dhami

ग्राम स्तर तक चलाया जाए योग अभियान : सीएम धामी

April 21, 2025

कर्नाटक : जातीय राजनीति में मात खा गई ‘भाजपा’

May 14, 2023
पहल टाइम्स

पहल टाइम्स का संचालन पहल मीडिया ग्रुप्स के द्वारा किया जा रहा है. पहल टाइम्स का प्रयास समाज के लिए उपयोगी खबरों के प्रसार का रहा है. पहल गुप्स के समूह संपादक शूरबीर सिंह नेगी है.

Learn more

पहल टाइम्स कार्यालय

प्रधान संपादकः- शूरवीर सिंह नेगी

9-सी, मोहम्मदपुर, आरके पुरम नई दिल्ली

फोन नं-  +91 11 46678331

मोबाइल- + 91 9910877052

ईमेल- pahaltimes@gmail.com

Categories

  • Uncategorized
  • खाना खजाना
  • खेल
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • दिल्ली
  • धर्म
  • फैशन
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • विश्व
  • व्यापार
  • साक्षात्कार
  • सामाजिक कार्य
  • स्वास्थ्य

Recent Posts

  • मालेगांव फैसले के बाद कांग्रेस सांसद के विवादित बोल- हिंदू आतंकवादी हो सकते हैं
  • डोनाल्ड ट्रंप ने भारत में किन उद्योगों के लिए बजाई खतरे की घंटी!
  • इस नेता ने लगाया था देश का पहला मोबाइल फोन कॉल, हेलो कहने के लग गए थे इतने हजार

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.

  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.