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Home राष्ट्रीय

विरोधियों के मंच ‘INDIA’ से NDA में हलचल!

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
July 26, 2023
in राष्ट्रीय, विशेष
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NDA and opposition
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अनिल चमड़िया 


कर्नाटक में 26 विपक्षी पार्टियां के 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अपने गठबंधन का नाम इंडिया तक पहुंचने की राजनीतिक यात्रा काफी दिलचस्प है. यह एक शब्द नहीं है जैसे कि भारत देश के लिए इंडिया शब्द का इस्तेमाल किया जाता है. बल्कि विपक्षी पार्टियों ने पांच शब्दों के पहले अक्षरों को मिलाकर इंडिया (I.N.D.I.A) शब्द गढ़ा है. यह है इंडिया नेशनल डेवलेपमेंटल इंक्लूसिव एलांयस जिसे भले ही भारतीय भाषाओं में अलग- अलग अनुवाद किया गया है लेकिन सभी भाषाओं में इसका छोटा नाम ‘इंडिया’ ही इस्तेमाल किया जा रहा है.

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संसदीय राजनीति के इतिहास में यह एक नई प्रवृति है जब पार्टियां अपने राजनीति के अनुकूल नाम तैयार करने में सबसे ज्यादा मेहनत कर रही है. पार्टी, गठबंधन और संगठनों द्वारा अभियान या आंदोलन के लिए नामों का महत्व हमेशा से रहा है, लेकिन वे नाम अपने समय की राजनीतिक परिस्थियां और अपना  राजनीतिक चरित्र जाहिर करने के इरादे से होते थे.

एनडीए यानी नेशनल डेमोक्रेटिक एलांयस बना था तो उस समय की राजनीतिक स्थिति यह थी कि कांग्रेस के नेतृत्व में लंबे शासन के बाद कई विपक्षी राजनीतिक पार्टियों ने एक गठबंधन बनाकर चुनाव में उसका मुकाबला करने की जरूरत महसूस की थी. जब आपातकाल के खिलाफ जे पी आंदोलन हुआ और लोगों की बड़े पैमाने में उस आंदोलन में भागीदारी देखी गई तो विपक्षी पार्टियों ने चुनाव में इंदिरा गाधी और कांग्रेस का मुकाबला करने के लिए जनता पार्टी बनाई जो कि एक तरह का गठबंधन था. विश्वनाथ प्रताप सिंह जब राजीव गांधी की सरकार से अलग हुए तब उन्होने जन मोर्चा बनाया और चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई. दिल्ली में भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना आंदोलन की पृष्ठभूमि में बनी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों को ही हाशिये पर धकेल दिया जबकि कांग्रेस बनाम भारतीय जनता पार्टी ही दिल्ली के अखाड़े के पहलवान माने जाते थे. भारत की राजनीति में संगठन के नाम, नारे और नेतृत्व के महत्व का इससे पता चलता है.

लेकिन संसदीय राजनीति अब शब्दकोशों से अपनी राजनीति के अनुकूल शब्द नहीं तलाशती है बल्कि अपनी एक डिक्शनरी तैयार करने पर जोर देती है. यह भारत की चुनावी राजनीति में पार्टियों के बीच लड़ाई में सबसे अहम हो गई है. कई नामों का एक छोटा नाम या कई शब्दों से एक छोटा नाम तैयार करने की यह प्रवृति नई हैं. खासतौर से नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र में सरकार बनने के बाद यह एक राजनीतिक संस्कृति का रूप ले चुकी हैं.

छोटे नाम बनाने के राजनैतिक होड़ का यह दौर क्या शक्ल अखितयार करेगा, यह राजनीति का नेतृत्व करने वालों के चरित्र पर निर्भर करता है.‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस’ का छोटा नाम इंडिया  के रूप में जब सामने आया तो इतना असर यह दिखा कि दिल्ली में 38 दलों के साथ एनडीए की बैठक कर प्रधानमंत्री मोदी ने एनडीए का एक नया अर्थ प्रस्तुत किया. पहले एनडीए को नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस के रुप में परिभाषित किया गया था. लेकिन इंडिया बनने के बाद प्रधानमंत्री ने बताया कि एनडीए में एन-न्यू इंडिया, डी- विकसित राष्ट्र, ए- लोगों की आकांक्षा है.

राजनीति की भाषा में कई शब्दों से बने एक संक्षिप्त शब्द बनाने की संस्कृति 2014 में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद तेज गति से हुई. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यदि किसी देश –विदेश दौरे पर जाते हैं तो ये मानकर चला जा सकता है कि कई शब्दों का एक नया छोटा नाम आने वाला है. अमेरिका दौरे पर हाल में नरेन्द्र मोदी गए तो उन्होने वहां के लिए फ्यूचर इज एआई -भारत अमेरिका बनाया. आस्ट्रेलिया गए तो उन्होने वहां भारत के साथ रिश्तों के लिए सीडीई बनाया. उन्होंने बताया कि पहले 3 सी का मतलब कॉमनवेल्थ, क्रिकेट और करी हैं. 3 डी का डेमोक्रेसी, डायस्पोरा और दोस्ती है और 3 ई का मतलब एनर्जी, इकॉनोमी और एडुकेशन. उन्होंने आस्ट्रेलिया के साथ रिश्ते की पूरी यात्रा को इस रूप में प्रस्तुत किया.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘सृजन’ संस्कृति का जो लोगों ने अनुभव किया है वह क्षेत्र शब्दों का राजनीतिक इस्तेमाल है. यदि शब्दकोश में अपनी राजनीति के अनुकूल शब्द नहीं है तो वे उसे तैयार करने में सबसे ज्यादा तत्परता दिखाते हैं. विपक्ष की पार्टियों के खिलाफ आलोचनात्मक शब्द होते हैं. मसलन उन्होंने उत्तर प्रदेश के चुनाव में समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल और बहुजन समाज पार्टी के लिए छोटा नाम सराब का ईजाद किया था. प्रधानमंत्री ने ‘इंडिया’ की आलोचना में भी कहा है कि ईस्ट इंडिया कंपनी और इंडियन मुजाहिदीन आदि के साथ भी इंडिया शब्द जुड़ा हुआ है. जिस तरह से अपने खिलाफ दी गई उन्होंने नब्बे गालियां गिनवाई थी, उसी तरह से उनके द्वारा बनाए गए संक्षिप्त नामों की संख्या उससे कहीं ज्यादा है.

जब प्रधानमंत्री त्रिपुरा गए तो वहां के लिए उन्होने ‘हीरा’ शब्द तैयार किया . हाईईवेज(एच), इंटरनेटवेज (आई), रेलवेज (आर) और एयरवेज (ए). दिलचस्प है कि वे अपने शब्द तैयार करने के लिए भाषाओं की सीमा को तोड़ देते हैं. जैसे आस्ट्रेलिया में डी के लिए दो शब्द अंग्रेजी के थे तो दोस्ती शब्द देशी भाषा से लिया.

प्रधानमंत्री की इस शैली के प्रभाव का अध्ययन दिलचस्प है. एक तो पार्टी के भीतर नेताओं के बीच और दूसरा सरकारी तंत्र द्वारा भी इसे पूरी तरह से स्वीकार किया गया. पार्टी के नेताओं के दो उदाहरण यहां दिए जा सकते हैं. भाजपा के अध्यक्ष जे पी नड्डा ने पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ( टीएमसी) का यह अर्थ बताया. टी का मतलब टोलाबाजी और टेरर, एम का मतलब माफिया और सी का मतलब करप्सन है. इसी तरह से उत्तर प्रदेश में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने कहा कि समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव का पीडीए का मतलब बैकवर्ड, दलित और मायनॉरिटी नहीं है बल्कि पी मतलब परिवारवाद , डी मतलब दंगियों के संघ और ए का मतलब अपराध करने वालों का संरक्षण है.

राजनीति में शब्दों के जरिये अपने विरोधी को पशोपेश में डाल देना ,यह प्रचार मशीनरी के सहारे लटकी संसदीय राजनीति में पहली हार जीत का पैमाना बन गया है. इस लिहाज से देखें तो अतीत से उलट स्थिति 26 विपक्षी पार्टियों के इंडिया गठबंधन की घोषणा के बाद मिली और यह माना गया कि 2024 के चुनाव की क्लाफाई दौड़ में सत्तारुढ़ एनडीए के मुकाबले इंडिया ने बाजी मार ली है.

राजनीति में यह बहुत महत्वपूर्ण होता है कि कौन सा नाम, नारा और नेतृत्व  अपने  प्रचार और उसके प्रभाव से अपने प्रतिद्वंद्वी को पीछे छोड़ दें या प्रतिद्वंदी के लिए न केवल एक संकट खड़ा कर दें बल्कि उसे अपने नाम और नारे की काट खोजने के काम में लगा दे. खासतौर से वैसे प्रतिद्वंदी को जो कि शब्दों के अखाड़े का पहलवान माना जाता हो या फिर जिसकी राजनीति का चना चबेना शब्द रहे हैं.

विपक्षी पार्टियों द्वारा इंडिया गठबंधन बनाने से शब्दों की राजनीति एक बार फिर सतह पर आई है और उसके महत्व पर चर्चा की जा रही है. लेकिन भारतीय राजनीति और सरकार के कामकाज में इसका महत्व बराबर रहा है. इसमें एक जो फर्क आया है वह काबिलेगौर है. पहले हिन्दी और अंग्रेजी में सरकार के कार्यक्रमों, अभियानों और योजनाओं के नाम रखे जाते रहे हैं. लेकिन इस बीच कार्यक्रमों, योजनाओं और संस्थाओं के नामकरण के लिए एक नया भाषा फार्मूला सामने आया है. संक्षिप्त यानी छोटा नाम तो हिन्दी में दिखता है लेकिन वह अंग्रेजी के शब्दों के पहले अक्षर को लेकर बनता हैं.

2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद योजना आयोग का नाम बदल दिया गया और उसे नीति आयोग बुलाया जाने लगा. जबकि योजना आयोग के बदले हुए नाम के साथ जो नीति शब्द का इस्तेमाल किया जाता है वह हिन्दी में इस्तेमाल की जाने वाली नीति नहीं है. यह नीति अंग्रेजी के अक्षरों एन आई टी आई से बनाया गया है. योजना आयोग का बदला हुआ नाम नेशनल इंस्टीच्यूट फॉर ट्रांसफोर्मिंग इंडिया है. रोमन में जब इन चार शब्दों के पहले अक्षर को लिखते है तो उसे हिन्दी में नीति पढ़ा जा सकता है. जबकि हिन्दी में नीति आयोग का नाम वास्तव में राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्था है.

भारत सरकार के ऐप भीम ‘BHIM’ से बना है. यह भीम डा. भीमराव अम्बेडकर नहीं है बल्कि यह भीम एक भ्रम पैदा करता है. अमृत योजना के रूप में प्रचारित योजना का असल नाम अफॉर्डबल मेडिसिन एंड रिलायवल इम्प्लांट्स फॉर ट्रीटमेंट हैं. कुसुम, पहल, उदय, स्वंय, संकल्प , प्रगति , सेहत, उस्ताद , सम्पदा और हृदय सब नाम अंग्रेजी के हैं . ये सभी अंग्रेजी के पूरे नाम के संक्षिप्त नाम है जो कि उनके  देवनागरी में लिखने की वजह से हिन्दी के शब्द होने का भ्रम पैदा करते हैं. अंग्रेजी के नाम के पहले अक्षर को देवनागरी में लिखने से हिन्दी का शब्द बनाने की कला सरकारी कार्यक्रमों और संस्थाओं के नामकरण की नई हिन्दी भाषा संस्कृति है.

शब्द राजनीतिक औजार की तरह होते हैं और उसकी कविता या गीत की लय में प्रस्तुति महत्वपूर्ण होती है. काव्य शैली आम लोगों में सहज स्वीकार्य होने के लिए इस्तेमाल की जाती है. नरेन्द्र मोदी की राजनीति और उनकी सरकार का शब्दों को गढ़ने और उसके भीतर अपने राजनीतिक रंग भरने और उसकी काव्यात्मक प्रस्तुति पर सबसे ज्यादा जोर दिखता है. विपक्ष ने 2024 के चुनाव के पहले उसी होड़ में शामिल होकर इंडिया का गठन कर सत्ताधारी दल के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है.


उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.

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