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Home राष्ट्रीय

INDI गठबंधन में अब सब कुछ ठीक नहीं!

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
October 18, 2023
in राष्ट्रीय, विशेष
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Opposition
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नई दिल्ली: देश में अगले साल होने वाले आम चुनाव में एनडीए को हराने के लिए कई विपक्षी पार्टियां एक साथ मैदान में उतरने का फैसला कर चुकी है. कुछ महीने पहले ही 28 विपक्षी दलों ने बेंगलुरु में बैठक कर एक नए एलायंस की शुरुआत भी की थी जिसका नाम INDIA ‘इंडिया’ दिया गया.

इंडिया गठबंधन बनने के बाद से ही इसे ऐसे पेश किया जा रहा है जैसे ये आने वाले आम चुनाव में बीजेपी के लिए चुनौती बन सकता है. लेकिन इस बात में भी कोई दोराय नहीं है कि जब से इस गठबंधन की शुरुआत हुई है तब से ही इसके भीतर रार की खबरें आम हो गई हैं. कभी पीएम पद को लेकर तो कभी सीट बंटवारे को लेकर, अलग-अलग मंचो पर इस गठबंधन के नेता एक दूसरे से नाराजगी जताते नजर आते रहे हैं.

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इसका ताजा उदाहरण मध्यप्रदेश में 15 अक्टूबर को कांग्रेस की पहली लिस्ट जारी होने के बाद भी देखा गया. दरअसल 15 अक्टूबर को कांग्रेस ने 3 राज्यों छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मध्य प्रदेश में उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की थी. ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर सकती है.

लेकिन कांग्रेस ने अपनी पहली लिस्ट में उन सात सीटों में से चार पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी, जहां अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली पार्टी पहले ही लिस्ट में उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी थी. कांग्रेस की इस लिस्ट ने न सिर्फ एमपी में कांग्रेस-सपा गठबंधन के अफवाहों पर फुलस्टाप लगा दिया बल्कि समाजवादी पार्टी के नेताओं को भी नाराज कर दिया है. 15 अक्टूबर को ही अखिलेश यादव के करीबी माने जाने वाले एक वरिष्ठ नेता ने कांग्रेस को लेकर अपनी नाराजगी जताई थी. सपा नेता ने कांग्रेस पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस चाहती ही नहीं की बीजेपी हारे.

उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में ये भी बताया, ‘सपा ने कांग्रेस पार्टी को बताया था कि उनकी पार्टी मध्य प्रदेश में 10 सीटें चाहती है. लेकिन कांग्रेस ने कम सीटों की पेशकश की थी. फिर अचानक ही इतने सारे उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया गया.’ कांग्रेस की इस लिस्ट के बाद ये तो तय हो गया है कि मध्य प्रदेश के चुनाव मैदान में दोनों ही पार्टियां अकेले उतरेगीं. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या इसका असर लोकसभा चुनाव के लिए होने वाले सीट बंटवारे पर पड़ेगा, आखिर ‘इंडिया’ गठबंधन में एकता क्यों नहीं बन पा रही है?

यूपी लोकसभा सीट बंटवारे को लेकर अखिलेश और कांग्रेस की दो टूक

15 अक्टूबर को कांग्रेस के उम्मीदवारों की लिस्ट के बाद सपा और कांग्रेस में सब ठीक नहीं है ये तो जगजाहिर हो ही चुका है. लेकिन इस रार का असर लोकसभा चुनाव की सीटों पर भी असर डालना शुरू कर चुका है. दरअसल मंगलवार यानी 17 अक्टूबर को  सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय कानपुर पहुंचे थे. वहां अखिलेश यादव एक बयान देते हुए सबको चौंका दिया है. उन्होंने कहा कि सपा अपने दम पर चुनाव लड़ेगी, गठबंधन पर कांग्रेस निर्णय ले. अखिलेश यादव ने ये भी कहा कि अगर प्रदेश स्तर पर गठबंधन नहीं होगा तो देश स्तर पर भी नहीं हो सकता है.

यूपी की लोकसभा सीटों पर गठबंधन कर मैदान में उतरने के सवाल पर अखिलेश कहते हैं कि गठबंधन की बातें और खबरें चली है, लेकिन खबरों में क्या चलता है इससे हमें फर्क नहीं पड़ता. सपा पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक को साथ लेकर 80 सीटों पर बीजेपी को हराने की रणनीति तैयार करेगी.

अखिलेश यादव के बयान के तुरंत बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि उनकी पार्टी (कांग्रेस) अखिलेश यादव की शर्तों पर नहीं, अपने संकल्पों पर चुनाव लड़ेगी. उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस की तैयारी उत्तर प्रदेश के सभी 80 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की है. सीटों के बंटवारे और गठबंधन का फैसला हाईकमान लेगा.

लेफ्ट नेताओं को मिल रही तरजीह से नाखुश से नाखुश ममता बनर्जी

अखिलेश और कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग को लेकर हुआ मतभेद पार्टी के अंदर का पहला मतभेद नहीं था. सितंबर महीने में मुंबई में हुई इंडिया गठबंधन की बैठक में लेफ्ट नेताओं को ज्यादा बोलने का मौका दिया गया था. जिसको लेकर TMC सुप्रीमो ममता बनर्जी नाखुश नजर आई थी. इस बैठक में जब लेफ्ट के एक नेता अपनी बात रख रहे थे, उसी वक्त ममता बनर्जी ने सवाल उठा दिया कि उन्हें अन्य नेताओं के मुकाबले अधिक बोलने क्यों दिया जा रहा है?

आप और कांग्रेस के बीच भी सब कुछ ठीक नहीं

इतना ही नहीं इस गठबंधन में शामिल दो पार्टियां कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच मतभेद हर दिन बढ़ते नजर आ रहे हैं, इस रार की शुरुआत इंडिया गठबंधन बनने के 1 महीने बाद ही शुरू हो गई थी. दरअसल दिल्ली में कांग्रेस नेताओं ने लोकसभा चुनाव की तैयारियों की समीक्षा के लिए शीर्ष नेतृत्व के साथ बैठक की थी. इस बैठक के एक दिन बाद ही कांग्रेस नेता अलका लांबा ने एक बयान दिया, कांग्रेस की तीन घंटे से ज्यादा चली बैठक में संगठन की कमियों और लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर चर्चा हुई. उन्होंने कहा, ‘‘हमें सभी सात सीटों पर मजबूती से काम करने का निर्देश दिया गया है. गठबंधन करना है या नहीं, इस पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है, लेकिन हमें सातों सीटों पर तैयारी करने को कहा गया है.”

अलका लांबा के इस बयान के जवाब में आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जब कांग्रेस गठबंधन नहीं करना चाहती तो फिर मुंबई में 31 अगस्त और एक सितंबर को होने वाली विपक्षी गठबंधन की बैठक में AAP के शामिल होने का कोई मतलब नहीं है.

ऐसा नहीं है कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच इंडिया के बीच यह पहली तकरार थी. इससे पहले जून में बिहार की राजधानी पटना में हुई बैठक में भी आम आदमी पार्टी ने दिल्ली सर्विस बिल के खिलाफ कांग्रेस से खुला समर्थन न मिलने पर नाराजगी जताई थी और गठबंधन से अलग होने की धमकी दी थी.

सनातन को दिए बयान पर बैकफुट पर आया था इंडिया गठबंधन

इसके अलावा डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन के सनातन पर दिए गए बयान को लेकर अलायंस बैकफुट पर नजर आया. नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने उदयनिधि के इस बयान को I.N.D.I.A गठबंधन का सामूहिक बयान बताया. इसके चलते गठबंधन में शामिल बाकी नेता उदयनिधि के इस बयान से दूरी बनाते नजर आए.

INDIA गठबंधन में शामिल एक और राष्ट्रीय पार्टी सीपीएम भी उहापोह की स्थिति में है. सीपीएम ने अब तक कॉर्डिनेशन कमेटी के लिए किसी भी सदस्य को नामित नहीं किया है.

सीट शेयरिंग पर भी समन्वय नहीं?

इसके अलावा गठबंधन के अंदर सीट शेयरिंग को लेकर भी पार्टियां एकमत नहीं हो पा रही है. सितंबर महीने में हुई इंडिया गठबंधन के समन्वय कमेटी की पहली बैठक में सीट शेयरिंग पर बात नहीं बन पाई थी. जिसके बाद कहा गया कि लोकसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे का मुद्दा अब राज्यों के हिसाब से किया जाएगा. कांग्रेस हाईकमान सीधे क्षेत्रीय पार्टियों से संपर्क साध कर राज्य की राजनीति के हिसाब से सीट बंटवारे का मुद्दा सुलझाएगा.

आईएएनएस की एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि कॉर्डिनेशन कमेटी की बैठक में जब सीट बंटवारे का मुद्दा उठा, तो अधिकांश नेताओं ने इसे राज्य स्तर पर सुलझाने का सुझाव दिया. यह भी कहा गया कि राज्य स्तर पर नहीं सुलझने के बाद इस मसले को राष्ट्रीय स्तर पर लाया जाए.

इसी कॉर्डिनेशन कमिटी की पहली बैठक में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी कुछ सीटें देने के लिए कहा है. हालांकि 15 अक्टूबर को ये साफ हो गया कि कांग्रेस ने गठबंधन के साथ नहीं बल्कि अकेले चुनावी मैदान में उतरने का फैसला लिया है. कांग्रेस के इस कदम के बाद सीट शेयरिंग को लेकर भी पार्टियों के बीच मतभेद होना लगभग तय माना जा रहा है.

इन मतभेदों का बीजेपी को मिल रहा है फायदा

राजनीतिक टिप्पणीकार और प्रोफेसर संजय कुमार एबीपी से बातचीत करते हुए कहते हैं, ‘ पिछले कुछ दिनों में कई बीजेपी नेताओं ने इस नए गठबंधन और उनके भीतर चल रहे मतभेद को लेकर निशाना साधने की कोशिश की है और बीजेपी भी लोगों तक यह संदेश पहुंचाने की कोशिशों में लगी है कि यह नया गठजोड़ कुछ भ्रष्ट नेताओं और वंशवादी पार्टियों के संकलन से ज्यादा कुछ भी नहीं है. हालांकि अभी ये भी पूर्ण रूप से नहीं कहा जा सकता कि 28 विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर बना नया गठबंधन चुनावी रूप से कितना ताकतवर साबित होगा, लेकिन विपक्ष ने एकजुट होकर जनता के बीच ये धारणा जरूर बना ली है कि  इंडिया बीजेपी को चुनौती देने में सक्षम है और इस विचार से बीजेपी असहज महसूस करने लगी है.’

उन्होंने ये भी कहा कि एक सबसे बड़ा कारण है कि इंडिया गठबंधन को इस तरह के छोटे-छोटे मतभेदों और बयानबाजी से बचना चाहिए, ताकि एकजुटता का जो संदेश इस गठबंधन ने जनता के बीच दिया था वह बरकरार रह सके.

कैसा रहा था पिछला गठबंधन का रिकॉर्ड

देश में साल 2019 में हुए आम चुनाव से पहले भी विपक्षी पार्टियों के बीच एकजुटता बनाने की कोशिश की गई थी. उस चुनाव में टीडीपी सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू और बीआरएस लीडर केसीआर ने विपक्ष को बीजेपी के खिलाफ साथ लाने की पहल की थी.

हालांकि भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में आए एक तरफा चुनाव के परिणामोंं ने गठबंधन की संभावनाओं का खारिज कर दिया था. हालांकि INDIA गठबंधन में शामिल नेताओं की मानना है कि इस बार के हालात कुछ और हैं. कांग्रेस समेत कई ऐसा विपक्षी पार्टियां हैं जो इस बात को मानती हैं कि आने वाला लोकसभा चुनाव उनके लिए करो या मरो वाली स्थिति होगा.

ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि पिछली बार की तरह इस बार भी विपक्षी गठबंधन टूट जाता है या फिर गठबंधन की अगुवाई करने वाले नीतीश कुमार जैसे नेता इस झगड़े को सुलझा पाने में सफल होते हैं.

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