प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली: यह शायद पहला मौका है, जब जनवरी के आखिरी सप्ताह में भी केंद्रीय बजट की कहीं कोई बड़ी चर्चा नहीं हो रही। अयोध्या के राम मंदिर पर चल रहे अखंड कवरेज के बीच बजट-विमर्श फिलहाल कहीं नजर नहीं आ रहा है। वैसे यह चुनाव का साल है और दो दिन बाद लोकसभा में जो बजट पेश होगा, वह पूर्ण बजट नहीं, अंतरिम बजट होगा। हालांकि, अंतरिम बजट की यह शब्दावली आधिकारिक नहीं, व्यावहारिक है। आधिकारिक रूप से सदन में जो पेश किया जाएगा, उसे लेखानुदान कहा जाता है।
क्या रही चुनाव की परंपरा?
चुनाव वाले वर्ष की परंपरा यह है कि सरकार ऐसे साल में संसद में लेखानुदान पेश करती है, और यह माना जाता है कि पूर्ण बजट चुनाव के बाद आने वाली सरकार पेश करेगी। लेखानुदान पास करांना इसलिए जरूरी होता है कि इस बीच सरकारी कर्मचारियों को समय पर तनख्वाह मिलती रहे, देश व सरकार के सारे काम सुचारू रूप से चलते रहें और उनमें धन की कोई बाधा न आए। अंतरिम बजट की यह परंपरा इसलिए बनी है कि सरकार चुनाव जीतने के लिहाज से कोई बहुत बड़ी लोकलुभावन योजनाएं न पेश कर दे, जिनका ऐसा असर देश के खजाने पर पड़े कि वह अगली सरकार की आर्थिक नीतियों को प्रभावित करे। हालांकि, अक्सर इस मर्यादा का ध्यान टैक्स प्रस्तावों में बदलाव न करने तक ही रखा जाता है और बाकी है।
इस मामलों में घुमा-फिराकर चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की जाती है। संसद में बजट पेश करने की प्रक्रिया हमेशा से जनमत को प्रभावित करने का एक बड़ा मौका होती है। फिर, भला उस साल इस मौके को कैसे छोड़ा जा सकता है, जब चुनाव सामने हों। इसलिए अंतरिम बजट में भी बड़ी घोषणाओं के तरीके निकाल लिए जाते हैं। इसके उदाहरण के लिए कोई बहुत ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। पिछला आम चुनाव 2019 में हुआ था और उस साल जो अंतरिम बजट पेश हुआ, उसमें किसान सम्मान निधि की घोषणा की गई थी। हर तिमाही में किसानों के खातों में सीधे पहुंचने वाली रकम की यह योजना एक साल पहले की तिथि से लागू की गई थी और इसका सरकार के वित्त पर 75 हजार करोड़ रुपये सालाना का असर पड़ा था।
बजट से सरकार को मौका
इसके अलावा अंतरिम बजट सरकार को यह मौका भी देता है कि कुछ नीतियों की घोषणाएं करे और यह बताए कि वह देश को किस दिशा में ले जाना चाहती है। इस बार इसकी गुंजाइश भी काफी है। पिछले दो साल के मुकाबले सरकार इस समय ज्यादा बेहतर स्थिति में है। एक तो अर्थव्यवस्था उन दबावों से काफी कुछ मुक्त हो चुकी है, जो कोविड-काल और लॉकडाउन की वजह से देश पर पड़े थे। फिर इस समय विकास दर भी काफी अच्छी चल रही है। भले रोजगार के मोर्चे पर कई परेशानियां खड़ी हों, लेकिन बजट हमेशा से ही ऐसे मसलों को ताक पर रखकर आगे बढ़ने का काम करते रहे हैं।
वैसे, वित्तीय स्तर पर सब कुछ अच्छा नहीं है। खासकर सरकार पर कर्ज का जो बोझ है, वह काफी बढ़ा है और पिछले दिनों इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों ने भारत के लिए चेतावनियां भी जारी की थीं। इन देनदारियों के साथ ही वित्त पर ब्याज का दबाव भी बहुत बढ़ा है। हो सकता है कि अंतरिम बजट भाषण में ये बातें कुछ दबी रह जाएं, लेकिन चुनाव बाद आम बजट से पहले संसद में पेश होने वाले आर्थिक सर्वेक्षण में इसकी झलक जरूर दिख जाएगी।
नई कल्याणकारी योजनाएं
बजट भले ही अंतरिम होगा, लेकिन उद्योग और वाणिज्य संगठनों ने बजट से अपनी उम्मीदों और अपनी मांगों का विस्तृत खाका हमेशा की ही तरह वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को सौंपा है। इनमें ज्यादातर वे मांगे हैं, जो शायद चुनाव के माहौल में सरकार की प्राथमिकताओं में जगह न बना पाएं। कौन-सी चीजें हैं, जो सरकार की प्राथमिकताओं में जगह बना पाएंगी, इसे लेकर अटकलें जरूर लगाई जाने लगी हैं।
यह माना जा रहा है कि सरकार कल्याण योजनाओं के प्रावधान को न सिर्फ बढ़ा सकती है, बल्कि कुछ नई कल्याण योजनाओं की भी घोषणा कर सकती है।
यह भी कहा जा रहा है कि सरकार नई पेंशन योजना का मजबूत बनाने की कुछ घोषणाएं कर सकती है। राजनीतिक रूप से यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा। विपक्ष पिछले कुछ समय से पुरानी पेंशन योजना की वापसी की बात कर रहा है। माना जा रहा है कि कांग्रेस ने जिस तरह से हिमाचल प्रदेश का चुनाव जीता, उसमें पुरानी पेंशन योजना एक बड़ा मुद्दा थी।
किसानों के लिए बजट
चुनाव सामने हो और बजट में किसानों के लिए कोई घोषणा न हो, यह हो नहीं सकता। एक समय भारतीय जनता पार्टी ने यह घोषणा की थी कि वह किसानों की आमदनी को दोगुना कर देगी। इसके लिए फसलों का खरीद-मूल्य भी बढ़ाया गया और तमाम योजनाओं के जरिये किसानों को लाभ देने की कोशिशें भी की गईं। हालांकि, ये सारी कोशिशें किसानों को संतुष्ट नहीं कर सकीं और किसानों की आर्थिक स्थिति में भी इससे बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआ। फिर, तीन कृषि कानूनों को लेकर भी सरकार और किसानों में एक खाई बन गई थी, इस बार उसे भी पाटने का काम किया जा सकता है।
आम चुनाव का शंखनाद
पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में एक रैली की थी। इस रैली को अगले आम चुनाव का शंखनाद भी कहा गया। वहां अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने किसानों की समस्याओं और उनके लिए किए गए सरकार के प्रयासों की लंबी चर्चा 7 की। यह बताता है कि किसान निश्चित तौर पर उनकी चुनावी रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसलिए 1 फरवरी को नजर इस पर रहेगी कि अंतरिम बजट भाषण में किसानों के लिए क्या कहा जाता है? किसानों को दिए जाने वाले कर्ज का बजट प्रावधान तो हर साल ही बढ़ जाता है, देखना यह है कि उसके आगे बढ़कर और क्या घोषणाएं होंगी ?
एक धारणा यह है कि इस बार शायद ऐसी घोषणाओं की बहुत ज्यादा जरूरत न पड़े। अयोध्या के नवनिर्मित मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद जो माहौल बना है, उससे लोग भाजपा को ऐसे वोट देंगे, जैसे वे ईवीएम के सामने अपने आराध्य देवता के प्रति भक्ति- भाव प्रकट कर रहे हों। अगर इस धारणा में कुछ सच भी हो, तब भी ऐसा नहीं लगता कि सरकार बजट के मौके को यूं ही छोड़ देगी। सरकार का अब तक का रिकॉर्ड तो यही बताता है कि वह एक साथ अनेक मोर्चों पर दबाव बनाती रही है।
अंतरिम बजट में भी घोषणाओं के तरीके निकाल लिए जाते हैं। साल 2019 में जो अंतरिम बजट पेश हुआ था, उसमें किसान सम्मान निधि की घोषणा की गई थी : प्रकाश मेहरा