नई दिल्ली: विशेष राज्य की मांग से शुरू और विशेष राज्य की मांग पे खतम। कुछ इसी तर्ज पर बिहार को विशेष राज्य के दर्जे को लेकर राजनीति चलती रहती है। पक्ष और विपक्ष इस मुद्दे पर एक-दूसरे के खिलाफ बरसते रहते है। हाल ही में लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से ये चर्चा बार – बार बिहार के नेताओ से सुनने को मिलती है !
इस मामले में एक नया मोड तब आया है जब नीति आयोग ने 12 जुलाई, 2024 को अपनी जारी रिपोर्ट मे यह स्पष्ट किया है कि- कुछ पैमानों में स्थिति सुधार के बावजूद, बिहार सतत विकास का आकलन करने वाले एसडीजी इंडिया इंडेक्स में सबसे निचले पायदान पर रहा। इस रिपोर्ट के बाद से एक बार फिर से चर्चा का विषय बन गया है बिहार विशेष राज्य का दर्जा!
अब बात आती है कि आखिर विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त करने का क्या मापदंड है? क्या बिहार राज्य इस मापदंड पर खरा उतरता है? इसके लिए हम बात करेंगे गाडगिल सिफारिश पर आधारित निर्धारक की, इसमें विशेष राज्य दर्जा प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित मापदंड तैयार किया गया है। जो इस प्रकार है – पहाड़ी इलाका, कम जनसंख्या घनत्व /या जनजातीय जनसंख्या का बड़ा हिस्सा, पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर सामरिक स्थिति, आर्थिक तथा आधारभूत संरचना में पिछड़ापन , राज्य के वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति।
अब बात आती है कि क्या बिहार विशेष राज्य के अनुदान हेतु मानदंड पूरा करता है? यद्यपि बिहार विशेष राज्य दर्जा अनुदान के अधिकांश मानदंडों को पूरा करता है, लेकिन यह पहाड़ी इलाकों और भौगोलिक रूप से विषम क्षेत्रों की आवश्यकता को पूरा नहीं करता है, जिसे बुनियादी ढाँचे के विकास में कठिनाई का प्राथमिक कारण माना जाता है। वर्ष 2013 में केंद्र द्वारा गठित रघुराम राजन समिति ने बिहार को ‘अल्प विकसित श्रेणी’ में रखा और विशेष राज्य दर्जा के बजाय ‘बहु-आयामी सूचकांक’ पर आधारित एक नई पद्धति का सुझाव दिया, जिस पर राज्य के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिये पुनः विचार किया जा सकता है।
इन सभी रिपोर्ट के बावजूद बिहार में पक्ष विपक्ष के सभी नेता विशेष राज्य की दर्जा की मांग क्यों कर रहे है एक नजर इस पर भी डालते है। विशेष राज्य दर्जा की मांग का उद्देश्य केंद्र सरकार से पर्याप्त वित्तीय सहायता प्राप्त करना है, जिससे बिहार को विकास परियोजनाओं के लिये आवश्यक धन प्राप्त करने और लंबे समय से चली आ रही सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने में सहायता मिलेगी। इसके लिए बिहार में कई तरह की असमानताएं भी है जैसे कि – बिहार को औद्योगिक विकास की कमी और सीमित निवेश अवसरों सहित गंभीर आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
राज्य के विभाजन के परिणामस्वरूप उद्योगों को झारखंड में स्थानांतरित कर दिया गया, जिससे बिहार में रोज़गार और आर्थिक विकास के मुद्दे बढ़ गए। राज्य, उत्तरी क्षेत्र में बाढ़ और दक्षिणी भाग में गंभीर सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है। बार-बार आने वाली आपदाएँ कृषि गतिविधियों को बाधित करती हैं, जिससे आजीविका और आर्थिक स्थिरता प्रभावित होती है। बिहार में गरीबी दर उच्च है, यहाँ बड़ी संख्या में परिवार गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं।
बिहार में इन सभी समस्याओं के बाद भी केंद्र सरकार की किसी भी राज्य को विशेष राज्य दर्जे से संबंधित क्या चिंताएं हो सकती है? इस बात को भी हमे समझने की जरूरत है। किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने में राज्य को अतिरिक्त वित्तीय सहायता प्रदान करना शामिल है, जो केंद्र सरकार के संसाधनों पर दबाव डाल सकता है। विभिन्न राज्यों के बीच धन के आवंटन को संतुलित करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है और विशेष राज्य का दर्जा देने से गैर-विशेष श्रेणी दर्जा राज्यों के बीच असमानता या असंतोष उत्पन्न हो सकता है।