नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीन, कनाडा, मेक्सिको, वियतनाम, ताइवान, थाईलैंड और बांग्लादेश सहित कई एशियाई देशों पर ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ लगाए जाने से भारत के लिए वैश्विक व्यापार और मैन्यूफैक्चरिंग में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर मिला है. डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति भारत के लिए कई अवसर पैदा कर सकती है.
भारत के एक्सपोर्ट के लिए अमेरिका टॉप डेस्टिनेशन है. भारत के कुल निर्यात किए जाने वाले सामान का 18 फीसदी अमेरिका जाता है. मोबाइल फोन सहित इलेक्ट्रिक मशीनरी और उपकरण सामान भारत से एक्सपोर्ट किए जाने वाले मुख्य आइटम हैं. इसके बाद जेम एंड ज्वेलरी, दवा उत्पाद, परमाणु रिएक्टर और उपकरण, और पेट्रोलियम उत्पादों का नंबर आता है.
बन सकता है चीन का विकल्प
ट्रंप ने चीन पर 34 फीसदी टैरिफ लगाया है. इससे अमेरिकी कंपनियां चीन से आयात कम करने के लिए मजबूर होंगी और वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश करेंगी. भारत, जो पहले से ही मैन्यूफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट में अपनी क्षमता बढ़ा रहा है, इस मौके का फायदा उठा सकता है. विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल, और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में भारत अमेरिकी बाजार में सस्ता और चीन का विश्वसनीय विकल्प बन सकता है. ‘मेक इन इंडिया’ अभियान इस अवसर को भुनाने में और मदद कर सकता है.
विदेशी निवेश में वृद्धि
ट्रंप के टैरिफ से प्रभावित बहुराष्ट्रीय कंपनियां (जैसे ऐपल, टेस्ला) अपनी सप्लाई चेन को एक नए रूप में ढालने के लिए भारत की ओर रुख कर सकती हैं. ये कंपनियां अभी अपना उत्पादन चीन में करती हैं. भारत की सस्ती श्रम शक्ति, बढ़ता तकनीकी आधार, और सरकार की निवेश-अनुकूल नीतियां (जैसे पीएलआई योजना) इसमें चार चांद लगा सकती हैं. इससे न केवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़ेगा, बल्कि रोजगार सृजन और तकनीकी हस्तांतरण भी होगा.
निर्यात बढ़ाने का मौका
कनाडा और मेक्सिको जैसे देशों पर अब 25 फीसदी टैरिफ लगेगा तो अमेरिका को अपने पड़ोसी देशों की बजाय आयातित सामानों के लिए नए रास्ते तलाशने होंगे. भारत ऑटोमोबाइल पार्ट्स, कृषि उत्पादों (जैसे मसाले और चाय), और सूचना प्रौद्योगिकी उपकरणों के निर्यात को बढ़ा सकता है. ट्रंप की नीति से पैदा हुए व्यापारिक अंतर को भरने के लिए भारत अपनी उत्पादन क्षमता का उपयोग कर अमेरिकी उपभोक्ताओं की मांग को पूरा कर सकता है.
ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में सहयोग
ट्रंप की नीति से अमेरिका अपने सहयोगियों के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना चाहेगा, खासकर चीन के खिलाफ. भारत, जो पहले से ही अमेरिका के साथ क्वाड और रक्षा समझौतों में शामिल है, इस स्थिति का लाभ उठा सकता है. टैरिफ से प्रभावित ऊर्जा आयात को कम करने के लिए अमेरिका भारत से रिन्यूबल एनर्जी तकनीक या रक्षा उपकरण खरीद सकता है.क्योंकि अभी अमेरिका कनाडा से तेल खरीदता है. इससे भारत की रक्षा और ऊर्जा कंपनियों को नया बाजार मिलेगा.
सर्विस सेक्टर में बढ़त
नए लागू किए गए टैरिफ प्लान और ट्रेड वॉर से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बढ़ सकती है. जिसकी वजह से वहां की कंपनियां लागत कम करने के लिए आउटसोर्सिंग पर ध्यान देंगी. भारत का आईटी और बीपीओ (बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग) सेक्टर पहले से ही अमेरिका पर निर्भर है. ट्रंप की नीति से अगर अमेरिकी फर्मों को घरेलू उत्पादन बढ़ाने में चुनौती का सामना करना पड़ेगा तो वे भारत की सॉफ्टवेयर, ग्राहक सेवा और डिजिटल समाधानों का सहारा ले सकता है.