स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: सोना, जिसे हमेशा से सुरक्षित निवेश और संपत्ति का प्रतीक माना जाता है, ने हाल ही में भारतीय बाजार में ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किया है। पहली बार, घरेलू बाजार में 3% जीएसटी और मेकिंग चार्ज के साथ 10 ग्राम सोने की कीमत 1,00,000 रुपये को पार कर गई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी सोने की कीमत 3475 डॉलर प्रति औंस के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची है, और विशेषज्ञ इसके 4500 डॉलर तक जाने की संभावना जता रहे हैं। आखिर क्या हैं वे कारण जिन्होंने सोने को “लखटकिया” बनाया ? आइए एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा के विश्लेषण से पूरी रिपोर्ट में जानते हैं।
ट्रेड वॉर और टैरिफ टेंशन !
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियों ने वैश्विक व्यापार में हलचल मचा दी है। अमेरिका और चीन के बीच छिड़ा ट्रेड वॉर निवेशकों के बीच अनिश्चितता का प्रमुख कारण बना हुआ है। ट्रंप द्वारा कई देशों पर लगाए गए रेसिप्रोकल टैरिफ ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित किया है, जिससे आर्थिक मंदी की आशंका बढ़ गई है। ऐसी अनिश्चित परिस्थितियों में निवेशक सोने की ओर आकर्षित होते हैं, क्योंकि इसे “सेफ हेवन” यानी सुरक्षित निवेश माना जाता है। इस बढ़ी हुई मांग ने सोने की कीमतों को रॉकेट की रफ्तार दी है।
अमेरिकी डॉलर का सीधा असर !
सोने की कीमतों पर अमेरिकी डॉलर का सीधा असर पड़ता है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का व्यापार डॉलर में होता है। हाल ही में डॉलर इंडेक्स 97.92 के तीन साल के निचले स्तर पर आ गया। कमजोर डॉलर के कारण विदेशी निवेशकों के लिए सोना खरीदना सस्ता हो जाता है, जिससे मांग बढ़ती है। भारत में भी, रुपये के मुकाबले डॉलर की कमजोरी ने आयातित सोने को महंगा कर दिया, जिसका असर स्थानीय कीमतों पर पड़ा।
वैश्विक स्तर पर महंगाई अपने चरम पर !
वैश्विक स्तर पर महंगाई अपने चरम पर है। ट्रेड वॉर और टैरिफ के कारण उत्पादन लागत बढ़ी है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में इजाफा हुआ है। सोना महंगाई के खिलाफ एक प्रभावी बचाव (हेज) के रूप में काम करता है। जब करेंसी की क्रय शक्ति कम होती है, निवेशक सोने में निवेश को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि यह अपनी कीमत को बनाए रखता है। भारत में भी, त्योहारों और शादी के सीजन के दौरान सोने की मांग बढ़ने से कीमतों में और उछाल आया।
दुनियाभर के केंद्रीय बैंक, खासकर चीन, भारत, तुर्की और पोलैंड जैसे देश, जमकर सोना खरीद रहे हैं। इसका मुख्य उद्देश्य अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करना है। केंद्रीय बैंकों की इस खरीद ने सोने की वैश्विक मांग को और बढ़ाया है, जिससे कीमतें आसमान छू रही हैं।
बैंकिंग सेक्टर में तनाव और कम ब्याज दरें !
भारत में कई बैंकों ने फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) और बचत खातों पर ब्याज दरों में कटौती की है। इससे निवेशक सोने की ओर आकर्षित हो रहे हैं, क्योंकि यह न केवल सुरक्षित है, बल्कि लंबी अवधि में बेहतर रिटर्न भी देता है। वैश्विक स्तर पर भी, कम ब्याज दरों के कारण सोने की मांग बढ़ी है, क्योंकि अन्य निवेश विकल्प जैसे बॉन्ड या बैंक डिपॉजिट कम आकर्षक हो गए हैं। सोने की खदानों से उत्पादन में कमी आई है, जबकि मांग लगातार बढ़ रही है। इस आपूर्ति-मांग के असंतुलन ने भी कीमतों को ऊपर धकेला है। खनन लागत बढ़ने और पर्यावरणीय नियमों के सख्त होने से सोने का उत्पादन प्रभावित हुआ है।
भारत में सांस्कृतिक और मौसमी मांग !
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सोना उपभोक्ता है, और यहाँ सोने का सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है। दिवाली, धनतेरस, अक्षय तृतीया और शादी के सीजन में सोने की मांग चरम पर होती है। इस मौसमी मांग ने स्थानीय बाजार में कीमतों को और बढ़ाने में योगदान दिया। भू-राजनीतिक तनाव, जैसे रूस-यूक्रेन संघर्ष और मध्य पूर्व में अस्थिरता, ने वैश्विक आर्थिक माहौल को अनिश्चित बनाया है। ऐसी परिस्थितियों में निवेशक जोखिम से बचने के लिए सोने में निवेश करते हैं। इसके अलावा, वैश्विक शेयर बाजारों में उतार-चढ़ाव ने भी सोने की चमक को बढ़ाया है।
सोने की कीमतों का प्रदर्शन, बाजार की अटकलें !
पिछले पांच साल में सोने की कीमत लगभग दोगुनी हो गई है। 2020 से 2025 तक, सोने ने अन्य संपत्ति वर्गों (एसेट क्लास) को पीछे छोड़ते हुए 110% की वृद्धि दर्ज की है। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) पर सोने का भाव 99,178 रुपये के उच्च स्तर पर ट्रेड कर रहा था, और विशेषज्ञों का मानना है कि यह 1,25,000 रुपये तक जा सकता है, खासकर अगर अमेरिका-चीन तनाव और बढ़ता है। निवेशकों की भावना और बाजार की अटकलों ने भी सोने की कीमतों में अल्पकालिक उतार-चढ़ाव को बढ़ाया है। सोने को डिजिटल गोल्ड, गोल्ड ईटीएफ, और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड जैसे आधुनिक निवेश विकल्पों के माध्यम से भी खरीदा जा रहा है, जिसने इसकी मांग को और बढ़ाया है।
वैश्विक तनाव और महंगाई का दबाव !
विशेषज्ञों का मानना है कि “सोने की कीमतों में अभी और तेजी आ सकती है। गोल्डमैन सैश ने अनुमान लगाया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना 4500 डॉलर प्रति औंस तक जा सकता है। भारत में, अगर वैश्विक तनाव और महंगाई का दबाव बना रहता है, तो सोने की कीमत 1,25,000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक पहुंच सकती है।” हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि अगर ट्रेड वॉर का असर कम होता है या वैश्विक अर्थव्यवस्था स्थिर होती है, तो कीमतों में मामूली गिरावट भी देखी जा सकती है।
अर्थशास्त्र विशेषज्ञ के तौर पर प्रकाश मेहरा कहते हैं कि “सोने की कीमतें वैश्विक अनिश्चितता, मांग-आपूर्ति असंतुलन, और मुद्रास्फीति जैसे कारकों से बढ़ रही हैं। हालांकि, भविष्य में गिरावट की संभावना है यदि वैश्विक स्थिति स्थिर होती है। निवेशकों को सावधानी बरतनी चाहिए और दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।”
बाजार के रुझानों पर नजर रखें !
सोना खरीदने से पहले बाजार के रुझानों पर नजर रखें। त्योहारों के मौसम में कीमतें अधिक हो सकती हैं, इसलिए ऑफ-सीजन खरीदारी फायदेमंद हो सकती है। हॉलमार्क सोना खरीदें: हमेशा BIS हॉलमार्क और HUID टैग वाला सोना खरीदें, ताकि शुद्धता की गारंटी हो। फिजिकल सोने के अलावा, डिजिटल गोल्ड, गोल्ड ईटीएफ, या सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में निवेश पर विचार करें। सोना लंबी अवधि में स्थिर और लाभकारी निवेश है। छोटी अवधि के उतार-चढ़ाव से घबराएं नहीं। सोने की कीमतों को प्रभावित करने वाले वैश्विक और स्थानीय कारकों पर नजर रखें, जैसे डॉलर की कीमत, ब्याज दरें, और भू-राजनीतिक घटनाएं।
सोने की कीमतों में यह ऐतिहासिक उछाल !
सोने की कीमतों में यह ऐतिहासिक उछाल वैश्विक और स्थानीय कारकों का मिश्रण है। ट्रेड वॉर, कमजोर डॉलर, महंगाई, और सांस्कृतिक मांग जैसे कारणों ने सोने को 1,00,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर तक पहुंचाया। निवेशकों के लिए यह समझना जरूरी है कि सोना न केवल आर्थिक अनिश्चितता में सुरक्षा देता है, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्व भी रखता है। भविष्य में सोने की चमक और बढ़ने की संभावना है, लेकिन सावधानीपूर्वक निवेश ही सबसे बेहतर रणनीति है।
सोने की कीमतों में उछाल ने भारतीय मध्यम वर्ग के लिए आर्थिक और सामाजिक चुनौतियां बढ़ा दी हैं। यह न केवल उनकी बचत और निवेश को प्रभावित कर रहा है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं को भी बदल रहा है। सरकार द्वारा आयात शुल्क में कमी, वैकल्पिक निवेश विकल्पों को बढ़ावा, और वित्तीय साक्षरता जैसे कदम इस प्रभाव को कम करने में मदद कर सकते हैं। मध्यम वर्ग को भी सस्ते और सुरक्षित निवेश विकल्पों की ओर ध्यान देना होगा ताकि वित्तीय स्थिरता बनी रहे।