प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने हाल ही में पाकिस्तान को 2.4 बिलियन डॉलर (लगभग 20,000 करोड़ रुपये) की वित्तीय सहायता को मंजूरी दी है। इसमें 1 बिलियन डॉलर (लगभग 8,300 करोड़ रुपये) एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (EFF) के तहत और 1.4 बिलियन डॉलर (लगभग 11,600 करोड़ रुपये) रेजिलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी फैसिलिटी (RSF) के तहत शामिल हैं। इस मंजूरी के साथ, 7 बिलियन डॉलर के EFF प्रोग्राम के तहत अब तक पाकिस्तान को 2.1 बिलियन डॉलर (लगभग 17,400 करोड़ रुपये) की राशि दी जा चुकी है।
भारत की आपत्ति और रणनीति !
भारत ने इस ऋण मंजूरी का कड़ा विरोध किया, लेकिन IMF के नियमों के तहत कोई देश किसी प्रस्ताव के खिलाफ सीधे ‘नहीं’ वोट नहीं कर सकता, केवल वोट से दूर रह सकता है। इसलिए, भारत ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया (अब्स्टेन) और अपनी चिंताओं को मजबूती से दर्ज किया। भारत ने कहा कि “पाकिस्तान इन फंड्स का दुरुपयोग सीमा-पार आतंकवाद (cross-border terrorism) को बढ़ावा देने के लिए कर सकता है। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने आरोप लगाया कि IMF के ऋण अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान की सैन्य खुफिया गतिविधियों, जैसे लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे समूहों को फंडिंग में मदद कर सकते हैं।”
पाकिस्तान का खराब ट्रैक रिकॉर्ड भारत ने IMF के प्रोग्राम्स की प्रभावशीलता पर सवाल उठाए, क्योंकि पाकिस्तान पिछले 35 वर्षों में 28 साल तक IMF से फंड लेता रहा है, जिसमें पिछले 5 साल में 4 प्रोग्राम शामिल हैं। इसके बावजूद, पाकिस्तान में कोई ठोस आर्थिक सुधार नहीं हुआ और वह बार-बार बेलआउट पैकेज मांगता है। भारत ने इसे “too big to fail debtor” की संज्ञा दी।
भारत की चिंताओं से सहमति जताई !
भारत ने IMF को चेताया कि पाकिस्तानी सेना का आर्थिक मामलों में गहरा दखल सुधारों में पारदर्शिता और नागरिक नियंत्रण को कमजोर करता है, जिससे फंड्स के दुरुपयोग का जोखिम बढ़ता है। भारत ने वोट से दूर रहकर कूटनीतिक रूप से अपनी नाराजगी जताई, ताकि IMF और वैश्विक समुदाय को यह संदेश जाए कि आतंकवाद को समर्थन देने वाले देश को वित्तीय मदद देना खतरनाक हो सकता है। कई अन्य देशों ने भी भारत की चिंताओं से सहमति जताई, लेकिन IMF के प्रक्रियात्मक नियमों के कारण वे भी विरोध तक सीमित रहे।
IMF के फैसले की कड़ी आलोचना !
यह ऋण मंजूरी ऐसे समय में हुई है, जब भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है। हाल के आतंकी हमलों (जैसे 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में 26 पर्यटकों की मौत) और भारत की “ऑपरेशन सिंदूर” (7 मई को आतंकी ठिकानों पर मिसाइल हमले) के बाद दोनों देशों में सैन्य तनाव बढ़ गया है। पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई में ड्रोन और मिसाइलों से जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्रों को निशाना बनाया, जिसमें 5 लोगों की मौत हुई। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने IMF के फैसले की कड़ी आलोचना की और कहा कि यह ऋण “पाकिस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर में तबाही मचाने के लिए इस्तेमाल किए गए हथियारों की भरपाई” जैसा है।
भारत की आगे की रणनीति क्या ?
भारत ने IMF से कहा कि वह यह सुनिश्चित करे कि फंड्स का इस्तेमाल पाकिस्तानी सेना या अन्य ऋणों के भुगतान के लिए न हो। भारत भविष्य में भी IMF के मंच पर पाकिस्तान के ऋणों की समीक्षा की मांग करता रहेगा। भारत ने संयुक्त राष्ट्र (UN) और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहले भी पाकिस्तान के आतंकवाद समर्थन को उजागर किया है। 2021 के UN की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए भारत ने कहा कि पाकिस्तान में सैन्य-संबंधित व्यवसाय सबसे बड़े समूह हैं, जो IMF फंड्स के दुरुपयोग की संभावना को बढ़ाते हैं।
भारत ने IMF से कोई वित्तीय सहायता नहीं ली !
भारत पाकिस्तान को वैश्विक मंचों पर अलग-थलग करने की रणनीति पर काम करेगा, जैसा कि वह पहले भी करता रहा है। विदेश मंत्रालय ने संकेत दिया कि भारत IMF और अन्य वित्तीय संस्थानों में पाकिस्तान के खिलाफ अपनी चिंताओं को और मजबूती से उठाएगा। भारत ने अपनी आर्थिक ताकत का जिक्र करते हुए कहा कि उसने 1993 के बाद IMF से कोई वित्तीय सहायता नहीं ली और 2000 तक सभी IMF ऋण चुका दिए। यह पाकिस्तान की IMF पर निर्भरता के विपरीत भारत की आत्मनिर्भरता को दर्शाता है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने IMF की मंजूरी पर संतोष जताया और दावा किया कि “भारत की “IMF प्रोग्राम को रोकने की कोशिशें नाकाम रही।” उन्होंने कहा कि यह फंड पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को सुधारने और विकास की दिशा में ले जाएगा।
मुद्दों को उठाकर कूटनीतिक दबाव !
IMF ने पाकिस्तान को 2.4 बिलियन डॉलर की सहायता दी, जिसमें भारत की आपत्तियों के बावजूद 1 बिलियन डॉलर तत्काल जारी किया गया। भारत ने आतंकवाद, पाकिस्तान के खराब आर्थिक रिकॉर्ड और सैन्य हस्तक्षेप जैसे मुद्दों को उठाकर कूटनीतिक दबाव बनाया, लेकिन IMF के नियमों के कारण सीधा विरोध संभव नहीं हुआ। भारत अब वैश्विक मंचों पर इस मुद्दे को और आक्रामकता से उठाएगा, साथ ही यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा कि भविष्य में ऐसे फंड्स का दुरुपयोग न हो।