स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: भारत ने हाल ही में जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा हासिल किया है। यह उपलब्धि वैश्विक आर्थिक मंच पर भारत की बढ़ती ताकत को दर्शाती है। नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आंकड़ों के अनुसार, भारत की जीडीपी (Nominal GDP) 4.19 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई है, जो जापान की 4.18 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी से थोड़ा अधिक है। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, जिसका श्रेय भारत की तेज आर्थिक वृद्धि, नीतिगत सुधारों, और वैश्विक भू-राजनीतिक माहौल को दिया जा रहा है। चलिए इस उपलब्धि का विस्तृत विश्लेषण एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
भारत की आर्थिक वृद्धि के कारक
भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिसके परिणामस्वरूप यह जापान को पीछे छोड़ने में सफल रहा। IMF और अन्य वैश्विक संस्थानों के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था 2025 में 6.2% से 6.5% की दर से बढ़ रही है, जो दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है। इसके विपरीत, जापान की वृद्धि दर 0.6% से 0.7% के आसपास स्थिर है। 1991 के आर्थिक सुधारों से शुरू हुई भारत की बाजार-उन्मुख नीतियों ने विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया। लाइसेंस राज को समाप्त करने, व्यापार प्रतिबंधों को कम करने, और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश ने अर्थव्यवस्था को गति दी।
मैन्युफैक्चरिंग और निवेश
भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहल ने मैन्युफैक्चरिंग और स्टार्टअप्स को बढ़ावा दिया। नीति आयोग के सीईओ ने बताया कि भारत वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की दिशा में अग्रसर है। भारत को एक उभरते बाजार के रूप में देखा जा रहा है, जिससे विदेशी कंपनियां और निवेशक भारत में निवेश बढ़ा रहे हैं। नीतियों की पारदर्शिता ने भी निवेशकों का भरोसा बढ़ाया है।भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 2025 में सरकार को रिकॉर्ड 2.70 लाख करोड़ रुपये का डिविडेंड दिया, जो अर्थव्यवस्था की मजबूती का संकेत है।
जापान की आर्थिक स्थिति
जापान की अर्थव्यवस्था कई चुनौतियों का सामना कर रही है, जिसके कारण भारत उसे पीछे छोड़ पाया। जापान की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 0.6% से 0.7% के बीच है, जो भारत की तुलना में बहुत कम है। जापान में अप्रैल 2025 में महंगाई दर 3.5% तक पहुंच गई, जो बाजार के अनुमान से अधिक है। इसके अलावा, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ नीतियों ने जापान की अर्थव्यवस्था पर दबाव डाला है। जापान की उम्रदराज आबादी और कम जन्म दर के कारण श्रम बल में कमी आई है, जिसका असर उत्पादकता पर पड़ा है।
प्रति व्यक्ति आय में अंतर
हालांकि भारत ने कुल जीडीपी के मामले में जापान को पीछे छोड़ दिया है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) के मामले में भारत अभी भी जापान से बहुत पीछे है। भारत की प्रति व्यक्ति आय लगभग 2,950 डॉलर है, जो केन्या, मोरक्को और मॉरीशस जैसे देशों से भी कम है। इसे जापान के 1950 के दशक के स्तर से तुलना किया जा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को जापान के वर्तमान प्रति व्यक्ति आय स्तर तक पहुंचने में 20 साल लग सकते हैं, भले ही अर्थव्यवस्था 8% की दर से बढ़े।
जापान में प्रति व्यक्ति आय, जीवन प्रत्याशा, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, और टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में भारत की तुलना में कहीं बेहतर स्थिति है। भारत में आय और संपत्ति का वितरण असमान है। देश की शीर्ष 0.1% आबादी के पास 29% से अधिक संपत्ति है, जो 1961 में केवल 3.2% थी। यह गिनी कोएफिशिएंट के माध्यम से आय असमानता को दर्शाता है।
वैश्विक प्रभाव और भविष्य की संभावनाएं
भारत की इस उपलब्धि के कई वैश्विक और घरेलू प्रभाव हैं वैश्विक साख में वृद्धि: भारत का चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना उसकी वैश्विक साख को बढ़ाएगा। इससे विदेशी निवेश, विशेष रूप से उद्योग, टेक्नोलॉजी, और स्टार्टअप्स में, और बढ़ेगा। जीडीपी वृद्धि के साथ सड़कों, रेलवे, मेट्रो, और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ेगा, जिससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का लक्ष्य नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने दावा किया है कि यदि भारत अपनी वर्तमान विकास दर को बनाए रखता है, तो 2027-2028 तक यह जर्मनी को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। IMF के अनुमान के अनुसार, 2028 तक भारत की जीडीपी 5.58 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है।
चुनौतियां और सीमाएं
हालांकि यह उपलब्धि महत्वपूर्ण है, लेकिन भारत के सामने कई चुनौतियां हैं देश में करोड़ों लोग अभी भी गरीबी रेखा के नीचे हैं। बड़ी अर्थव्यवस्था का मतलब यह नहीं कि समृद्धि सभी तक पहुंची है। उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने इस उपलब्धि की सराहना करते हुए प्रति व्यक्ति जीडीपी में सुधार पर जोर दिया। इसके लिए शासन, बुनियादी ढांचे, विनिर्माण और शिक्षा में निरंतर सुधार जरूरी हैं। अमेरिकी टैरिफ नीतियां और वैश्विक व्यापार युद्ध भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि, भारत की निर्माण लागत अभी भी अपेक्षाकृत कम है, जो इसे वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बनने में मदद कर सकती है।
भारत की इस यात्रा की शुरुआत 1991 के आर्थिक सुधारों से हुई, जब भुगतान संकट के कारण उदारीकरण शुरू किया गया। 2007 में भारत 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बना, और अब 2025 में 4 ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा पार कर लिया। यह प्रगति भारत की नीतियों, जनसंख्या की मेहनत, और वैश्विक माहौल का परिणाम है।
क्या कहते है आर्थिक मामलों के जानकार !
भारत की सफलता पर आर्थिक मामलों के जानकार के तौर पर प्रकाश मेहरा कहते हैं कि “भारत को आय असमानता और गरीबी जैसे मुद्दों पर ध्यान देना होगा। शीर्ष 0.1% आबादी के पास 29% संपत्ति होने से सामाजिक और आर्थिक असंतुलन का खतरा है। भारत का चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जो नीतिगत सुधारों और वैश्विक माहौल का परिणाम है। हालांकि प्रति व्यक्ति आय, आय असमानता और वैश्विक आर्थिक अनिश्चिताएं चुनौतियां हैं। भविष्य में भारत की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह अपनी विकास दर को बनाए रखते हुए इन चुनौतियों का समाधान कैसे करता है।”
दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
भारत का दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो देश की आर्थिक नीतियों, तेज वृद्धि दर, और वैश्विक मंच पर बढ़ती साख को दर्शाता है। हालांकि, प्रति व्यक्ति आय और आय असमानता जैसे क्षेत्रों में सुधार की जरूरत है। यदि भारत अपनी वर्तमान नीतियों और विकास दर को बनाए रखता है, तो 2027-2028 तक यह जर्मनी को पीछे छोड़कर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। यह उपलब्धि भारत के ‘विकसित भारत 2047’ के विजन को और मजबूत करती है।