प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली: 20 जून 2025 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भारतीय भाषाओं के महत्व पर जोर देते हुए एक बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि “जल्द ही ऐसा समाज बनेगा जहां अंग्रेजी बोलने वालों को शर्मिंदगी महसूस होगी। इस बयान पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तीखी प्रतिक्रिया दी और अंग्रेजी को सशक्तिकरण का माध्यम बताते हुए बीजेपी-आरएसएस पर निशाना साधा। इस विवाद ने भारत में भाषा और शिक्षा को लेकर सियासी बहस को और गर्म कर दिया है।
अमित शाह ने क्या कहा ?
अमित शाह ने एक कार्यक्रम में भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने की बात करते हुए कहा “हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएँ देश की संस्कृति और पहचान का आधार हैं। अंग्रेजी बोलने वालों को भविष्य में शर्मिंदगी महसूस होगी, क्योंकि भारतीय भाषाएँ वैश्विक मंच पर अपनी जगह बनाएँगी। उन्होंने तकनीकी और प्रोफेशनल शिक्षा में हिंदी के उपयोग को बढ़ाने की वकालत की और कहा कि यह देश के विकास के लिए जरूरी है।
शाह का यह बयान हिंदी और भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने के केंद्र सरकार के एजेंडे का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत मातृभाषा में शिक्षा पर जोर दिया गया है।
राहुल गांधी का पलटवार !
राहुल गांधी ने अमित शाह के बयान को गरीबों और वंचितों के खिलाफ बताते हुए इसे बीजेपी-आरएसएस की मानसिकता का हिस्सा करार दिया। उन्होंने अपने आधिकारिक X अकाउंट पर पोस्ट किया और एक वीडियो संदेश के जरिए अपनी बात रखी।
राहुल ने कहा, “अंग्रेजी बाँध नहीं, पुल है। अंग्रेजी शर्म नहीं, शक्ति है। अंग्रेजी ज़ंजीर नहीं – ज़ंजीरें तोड़ने का औज़ार है।” उन्होंने तर्क दिया कि अंग्रेजी आज की वैश्विक दुनिया में अवसरों का द्वार खोलती है, खासकर नौकरी, तकनीक, और वैश्विक संवाद के लिए।
अंग्रेज़ी बाँध नहीं, पुल है।
अंग्रेज़ी शर्म नहीं, शक्ति है।
अंग्रेज़ी ज़ंजीर नहीं – ज़ंजीरें तोड़ने का औज़ार है।BJP-RSS नहीं चाहते कि भारत का ग़रीब बच्चा अंग्रेज़ी सीखे – क्योंकि वो नहीं चाहते कि आप सवाल पूछें, आगे बढ़ें, बराबरी करें।
आज की दुनिया में, अंग्रेज़ी उतनी ही ज़रूरी… pic.twitter.com/VUjinqD91s
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 20, 2025
बीजेपी-आरएसएस पर निशाना
राहुल ने आरोप लगाया कि बीजेपी और आरएसएस नहीं चाहते कि भारत का गरीब बच्चा अंग्रेजी सीखे, क्योंकि इससे वह सवाल पूछने, आगे बढ़ने और बराबरी करने में सक्षम होगा। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी सीखना गरीब और वंचित वर्गों के लिए सामाजिक और आर्थिक गतिशीलता का साधन है, जिसे बीजेपी रोकना चाहती है।
शिक्षा और समानता
राहुल ने जोर देकर कहा कि अंग्रेजी सीखना गरीब बच्चों के लिए सशक्तिकरण का रास्ता है। इसे शर्मिंदगी से जोड़ना देश के युवाओं को पीछे धकेलने की साजिश है। उन्होंने उदाहरण दिया कि “अंग्रेजी ने भारत के लाखों युवाओं को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई है, जैसे कि टेक इंडस्ट्री और स्टार्टअप्स में।”
राहुल ने शाह के बयान को “अंग्रेजी के खिलाफ जहर” करार दिया और इसे बीजेपी की “वंचितों को दबाने” की नीति का हिस्सा बताया। उन्होंने कहा कि बीजेपी का यह रवैया देश की प्रगति और समावेशी विकास के खिलाफ है।
बीजेपी और समर्थकों का जवाब
बीजेपी समर्थकों और कुछ X यूजर्स ने शाह के बयान का बचाव करते हुए कहा अमित शाह का बयान अंग्रेजी विरोधी नहीं, बल्कि भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने वाला है। हिंदी और क्षेत्रीय भाषाएँ भारत की सांस्कृतिक धरोहर हैं, और इन्हें मजबूत करना राष्ट्रीय गौरव की बात है।
कुछ यूजर्स ने राहुल पर “अंग्रेजी की गुलामी” को बढ़ावा देने का आरोप लगाया और कहा कि “वह भारतीय भाषाओं का सम्मान नहीं करते।”
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020
यह विवाद NEP के तहत मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने की नीति से जुड़ा है। बीजेपी का कहना है कि भारतीय भाषाओं में शिक्षा से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ेगा, जबकि विपक्ष इसे अंग्रेजी और वैश्विक अवसरों से वंचित करने की कोशिश मानता है। यह बहस 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद और बढ़ गई है, क्योंकि विपक्ष बीजेपी पर सामाजिक और आर्थिक असमानता को बढ़ाने का आरोप लगा रहा है।
भारत में अंग्रेजी को वैश्विक संवाद, नौकरी, और तकनीकी शिक्षा का जरिया माना जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अंग्रेजी और भारतीय भाषाओं को एक-दूसरे के खिलाफ देखना गलत है; दोनों का सह-अस्तित्व संभव है। गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में अंग्रेजी शिक्षा तक पहुँच सीमित है। राहुल का बयान इस वर्ग को सशक्त बनाने की दिशा में देखा जा रहा है, जबकि शाह का बयान भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता देने की रणनीति का हिस्सा है।
मुद्दा सियासी बहस का केंद्र
राहुल गांधी ने अमित शाह के “अंग्रेजी बोलने पर शर्मिंदगी” वाले बयान को गरीबों और वंचितों के खिलाफ बताते हुए अंग्रेजी को सशक्तिकरण का साधन करार दिया। उन्होंने बीजेपी-आरएसएस पर गरीब बच्चों को अंग्रेजी सीखने से रोकने का आरोप लगाया, जिससे यह मुद्दा सियासी बहस का केंद्र बन गया। यह विवाद भाषा, शिक्षा और सामाजिक समानता के मुद्दों पर भारत में गहरे वैचारिक मतभेदों को उजागर करता है।