शूरवीर सिंह नेगी
संपादक, पहल टाइम्स
नई दिल्ली: भारतीय लोकतंत्र के विशाल फलक पर कुछ ऐसे नेता उभरते हैं जो न केवल पदों पर रहते हुए जनसेवा करते हैं, बल्कि अपने आचरण, सादगी और विचारशीलता से जनता के हृदय में स्थायी स्थान बना लेते हैं। भगत सिंह कोश्यारी ऐसे ही एक जननेता हैं, जिनका जीवन राजनीति से अधिक एक मिशन रहा-जनसेवा का, राष्ट्रनिर्माण का, और मूल्यों की रक्षा का। उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव से निकलकर वे मुख्यमंत्री, सांसद, राज्यसभा सदस्य और गोवा, महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य के राज्यपाल बने, लेकिन उनका संपर्क हमेशा ज़मीन से जुड़ा रहा, जन-जन के साथ।
एक साधारण शुरुआत, असाधारण यात्रा !
भगत सिंह कोश्यारी का जन्म 17 जून 1942 को उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) के बागेश्वर ज़िले के एक साधारण परिवार में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पहाड़ों में हुई और फिर अल्मोड़ा से उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। छात्र जीवन में ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ गए और यही संघ-संस्कार उनके राजनीतिक जीवन की नींव बने।
कोश्यारी जी ने शिक्षक के रूप में अपने जीवन की शुरुआत की। एक शिक्षक के रूप में उन्होंने विद्यार्थियों में न केवल ज्ञान का संचार किया, बल्कि उन्हें देशभक्ति, अनुशासन और सामाजिक चेतना की प्रेरणा भी दी। यह शिक्षा का अनुभव ही उनके राजनीतिक जीवन में गहराई और दृष्टि लेकर आया।
राजनीति में प्रवेश और जनता से जुड़ाव
कोश्यारी जी ने 1997 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य के रूप में विधिवत राजनीति में प्रवेश किया। उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद वे 2001 में राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल अल्पकालिक था, लेकिन नीतिगत फैसलों, प्रशासनिक सादगी और उत्तराखंड की संरचनात्मक नींव मजबूत करने के लिए उनकी पहलें आज भी याद की जाती हैं।
उनका व्यक्तित्व हर वर्ग के लोगों को सहज आकर्षित करता है। पहाड़ की कठिनाइयों से निकला यह नेता सादा जीवन, उच्च विचार की मिसाल बना। वे न तो सत्ता के लोभ में फंसे, न ही पद के मद में चूर हुए। यही कारण रहा कि जब वे 2002 से 2007 तक उत्तराखंड विधानसभा में विपक्ष के नेता बने, तो भी उनकी आवाज़ गंभीरता से सुनी जाती रही।
संसद में दृढ़ उपस्थिति
2008 से 2014 तक कोश्यारी जी ने राज्यसभा में उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व किया। यहां भी उनका ध्यान राज्य के हितों की रक्षा और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर सटीक हस्तक्षेप पर केंद्रित रहा। 2014 में वे लोकसभा चुनाव जीतकर संसद के निचले सदन में पहुँचे और नैनीताल-उधमसिंह नगर क्षेत्र का नेतृत्व किया। संसद में उनकी उपस्थिति सक्रिय और संजीदा रही। उन्होंने जल, पर्यावरण, शिक्षा और ग्रामीण विकास से जुड़े मुद्दों पर प्रभावी ढंग से सवाल उठाए और सुझाव दिए।
महाराष्ट्र-गोवा का राज्यपाल..एक जटिल जिम्मेदारी (2019- 2023)
2019 में उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया गया। एक ऐसा राज्य जहां विविधताएं, राजनीतिक उठापटक और प्रशासनिक जटिलताएं आम हैं। कोश्यारी जी ने इस नई भूमिका में भी संतुलन, संवैधानिक विवेक और दृढ़ता के साथ कार्य किया। इसके साथ-साथ ही उन्होंने 2020 -2021 तक गोवा के राज्यपाल का भी दायित्व निभाया। हालांकि उनके राज्यपाल कार्यकाल में कई बार विवाद भी हुए-जैसे कि नवम्बर 2019 में देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को अल्पमत में शपथ दिलवाने का प्रकरण या शिवाजी महाराज पर की गई टिप्पणी-परंतु इन सबके बीच वे संविधान के दायरे में रहकर दायित्व निभाते रहे।
यह भी उल्लेखनीय है कि कोविड-19 संकट के दौरान कोश्यारी जी ने राज्य के विश्वविद्यालयों को एकजुट किया, वैकल्पिक शिक्षा प्रणाली को प्रोत्साहित किया और ‘लोक भवन’ जैसी नई सोच के साथ राजभवन को जनसेवा केंद्र बनाने का प्रयास किया।
आलोचनाएँ और आत्मचिंतन
हर जननेता की तरह कोश्यारी जी के जीवन में भी विरोध, आलोचना और असहमति का दौर रहा है। कई बार उनके वक्तव्यों पर विवाद हुआ, जिनमें से कुछ पर उन्हें सार्वजनिक रूप से क्षमा भी माँगनी पड़ी। लेकिन सबसे विशेष बात यह रही कि उन्होंने कभी आलोचनाओं से बचने का प्रयास नहीं किया, बल्कि उन्हें आत्ममंथन का माध्यम माना।
2023 में उन्होंने स्वेच्छा से राज्यपाल पद से हटने की इच्छा प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर जताई। यह एक विरल उदाहरण है जहाँ कोई उच्च पदासीन व्यक्ति स्वयं अपने पद से मुक्त होने की इच्छा जाहिर करता है—यह दर्शाता है कि सत्ता उनके लिए कभी लक्ष्य नहीं रही, बल्कि सेवा ही उनका ध्येय रहा।
साहित्य, सेवा और संयम
राजनीति से अलग भगत सिंह कोश्यारी एक सजग लेखक और चिंतक भी हैं। उन्होंने कई लेख और निबंध लिखे हैं, जिनमें भारत की सांस्कृतिक विरासत, उत्तराखंड की समस्याएं और सामाजिक समरसता के विषय प्रमुख हैं। उन्होंने उत्तराखंड में युवा संवाद, पर्यावरण संरक्षण और भाषा-संस्कृति के संरक्षण के लिए कई कार्य किए हैं।
उत्तराखंड सरकार द्वारा उन्हें 2025 में “उत्तराखंड गौरव सम्मान” से सम्मानित किया गया, जो उनके जीवनभर के योगदान की सार्वजनिक स्वीकृति है।
क्यों हैं वे “जन-जन के नेता”?
भगत सिंह कोश्यारी का जीवन इस बात का प्रतीक है कि राजनीति केवल पद या सत्ता का खेल नहीं है, बल्कि एक सतत यात्रा है—जनता की सेवा, मूल्यों की स्थापना और राष्ट्रनिर्माण की। वे भले ही अब पद पर न हों, लेकिन आज भी गांव, पहाड़ और शहरों के लोग उन्हें अपने “भगतदा” के नाम से याद करते हैं—क्योंकि उन्होंने पद से नहीं, बल्कि व्यवहार से सम्मान अर्जित किया है।
आज जब भारतीय राजनीति व्यक्तिवाद, दिखावे और लाभ की प्रवृत्तियों से जूझ रही है, कोश्यारी जैसे नेता यह याद दिलाते हैं कि सेवा, सादगी और सिद्धांतों पर टिका हुआ जननेतृत्व ही लोकतंत्र की असली ताकत है।