नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति एक के बाद एक दनादन ऐसे फैसले ले रहे हैं जो दुनियाभर में लाखों-करोड़ों लोगों को प्रभावित करते हैं. हालांकि कई बार उन्हें इसका विरोध का भी सामना करना पड़ता है. हाल ही में उन्होंने H1B वीजा के नियमों में बदलाव किया था. उनके इस फैसले के बाद कई क्षेत्रों में उन्हें विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है. हाल ही में अर्थशास्त्रियों और इंडस्ट्रीज ने इशारा दिया है कि ट्रंप की H1B वीजा नीति से अमेरिकी कंपनियों कुछ जरूरी कार्यों के लिए भारत में शिफ्ट हो सकती हैं और इससे ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCC) की ग्रोथ और तेज हो सकती है.
दरअसल अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल ही में नए H-1B वीजा की फीस 2000–5000 डॉलर से बढ़ाकर 100000 डॉलर कर दी है. इससे उन अमेरिकी कंपनियों पर दबाव बढ़ गया है जो अब तक स्किल्ड विदेशी वर्कर्स पर निर्भर थीं. अगर डोनाल्ड ट्रंप के H1B वीजा नियम लागू रहे तो इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का मानना है कि अमेरिकी कंपनियां AI, प्रोडक्ट डेवलपमेंट, साइबर सिक्योरिटी और एनालिटिक्स जैसे हाई-एंड काम भारत के GCCs को सौंपेंगी और भारत में पूरी दुनिया के आधा से ज्यादा GCC हैं.
भारत में कितनी GCC हैं
भारत इस समय दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था है और यहां पर 17000 GCC हैं. यह तादाद पूरी दुनिया के आधे से ज्यादा है. भारत में GCCs को मजबूत और भरोसेमंद हब माना जा रहा है. साथ ही कोरोना वायरस महामारी ने साबित कर दिया है कि अहम टेक्नोलॉजी का काम कहीं से भी किया जा सकता है. जबकि कुछ एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि कुछ कंपनियां भारत के अलावा मेक्सिको, कोलंबिया या कनाडा भी शिफ्ट कर सकती हैं.
2030 तक भारत में 2200 से ज्यादा का अनुमान
हालांकि 2023 से पहले ही अनुमान था कि 2030 तक भारत में 2200 से ज्यादा कंपनियों के GCC होंगे और ये मार्केट 100 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा लेकिन चुनौती भी है. अगर अमेरिका का HIRE Act पास होता है तो विदेश में काम शिफ्ट करने वाली कंपनियों पर 25% टैक्स लग सकता है, जिससे भारत की IT एक्सपोर्ट इंडस्ट्री को झटका लग सकता है. फिर भी एक्सपर्ट्स मानते हैं कि H-1B वीजा वाले बिजनेस से होने वाला नुकसान GCC की बढ़ती सर्विसेज एक्सपोर्ट से कुछ हद तक पूरा हो सकता है.
GCC क्या होता है?
GCC का मतलब होता है ग्लोबल कैपेब्लिटी सेंटर्स. आसान शब्दों में समझें तो ये ऐसे दफ्तर होते हैं जिन्हें कोई बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनी भारत जैसे देशों में खोलती है. ताकि वो कंपनी भारत में अपने कुछ काम भारत में करवा सके. इससे कंपनी को कई फायदे होते हैं. अमेरिका या फिर यूरोप जैसे देशों की कंपनियों को भारत में सस्ता टैलेंट मिल जाता है. पहले ये सेंटर्स सिर्फ कस्टमर सपोर्ट या बैक-ऑफिस का काम करते थे, लेकिन अब ये इनोवेशन, रिसर्च, डिजाइन, AI, दवा खोज, साइबर सिक्योरिटी जैसे हाई-लेवल काम भी करने लगे हैं