नई दिल्ली: हाल ही में एक स्टडी में दावा किया गया है कि हमारे सौर मंडल के एक अहम हिस्से मंगल और बृहस्पति के बीच मौजूद क्षुद्रग्रह पट्टी (Asteroid Belt) के बारे में है. वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह पट्टी धीरे-धीरे अपना मटेरियल यानी पदार्थ खो रही है. सौर मंडल के बनने के समय यानी लगभग 4.6 अरब साल पहले यह एक ग्रह बन सकता था लेकिन बृहस्पति का विशाल गुरुत्वाकर्षण इसके लिए मुसीबत बनेगा.
वैज्ञानिकों को कहना है कि बृहस्पति का विशाल गुरुत्वाकर्षण इसे नया ग्रह बनने से रोकेगा. इसकी वजह से वहां मौजूद पत्थर और चट्टानें आपस में जुड़कर ग्रह नहीं बना पाए. बल्कि वे आपस में टकराकर टूटते गए और धीरे-धीरे आज की स्थिति में बदल गए. आज जो क्षुद्रग्रह पट्टी बची है, उसका कुल द्रव्यमान (mass) चांद के द्रव्यमान का सिर्फ 3 फीसद है.
यानी जो क्षुद्रग्रह पट्टी हमें आज स्थायी और स्थिर लगती है, वह भी धीरे-धीरे खत्म हो रही है. उसका अतीत और भविष्य हमारी पृथ्वी की सुरक्षा और विकास से गहराई से जुड़ा हुआ है.
बृहस्पति, शनि और मंगल जैसे ग्रह इन टुकड़ों की कक्षा यानी ऑर्बिट को लगातार प्रभावित करते रहते हैं. कई टुकड़े अंदर की तरफ पृथ्वी तक खिंच आते हैं और उल्का पिंड बन जाते हैं, जबकि कुछ बाहर की तरफ निकल जाते हैं और कई आपस में टकराकर धूल में तबदील जाते हैं.
उरुग्वे यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक जूलियो फर्नांडेज की टीम ने इस पर बड़ी रिसर्च की. रिसर्च के अनुसार क्षुद्रग्रह पट्टी हर साल लगभग 0.0088% सिकुड़ रही है. यह नुकसान खासतौर पर उन हिस्सों से हो रहा है जहां आज भी टकराव जारी हैं.
खोए हुए पदार्थ में से लगभग 20 फीसद बड़े टुकड़ों के तौर पर निकलता है. यही टुकड़े कभी-कभी जमीन की कक्षा में आकर उल्कापिंड बन जाते हैं. बाकी 80 फीसद बारीक धूल में बदल जाता है, जो रात के आसमान में दिखने वाली हल्की रोशनी यानी राशिचक्रीय प्रकाश (Zodiacal Light) का हिस्सा है.
स्टडी में सबसे बड़े और स्थिर क्षुद्रग्रह जैसे सीरीस, वेस्टा और पैलस को शामिल नहीं किया गया, क्योंकि वे अब इस कमी की प्रक्रिया का हिस्सा नहीं हैं. इस रिसर्च से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि पृथ्वी का इतिहास कैसा रहा होगा.
वैज्ञानिकों का मानना है कि लगभग 3.5 अरब साल पहले क्षुद्रग्रह पट्टी 50 फीसद ज्यादा भारी थी और उस समय जमीन, चांद पर बहुत ज्यादा टकराव होते थे. यह बात चट्टानों और पुराने भू-स्तरों से भी साबित होती है