प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली। छठ पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिंदू लोकपर्व है। यह पर्व सूर्य देव (भगवान सूर्य) और उनकी बहन षष्ठी देवी (जिन्हें छठी मइया भी कहा जाता है) को समर्पित है। व्रती (उपवास करने वाले) सूर्य को अर्घ्य देकर संतान प्राप्ति, परिवार की सुख-समृद्धि और रोगों से मुक्ति की कामना करते हैं। पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है, जो चार दिनों तक चलता है नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य।
सूर्य देव की उत्पत्ति की पौराणिक कहानी
हिंदू पुराणों (विशेष रूप से ऋग्वेद, महाभारत, रामायण और पुराणों जैसे विष्णु पुराण, भागवत पुराण) में सूर्य देव को आदित्यों (देवताओं के एक समूह) का प्रमुख माना गया है। उनकी उत्पत्ति की मुख्य कहानियाँ ऋग्वेद के अनुसार (सबसे प्राचीन स्रोत) सूर्य को ब्रह्मा का नेत्र माना गया है। ऋग्वेद में सूर्य को विश्व का प्राण, जीवन का स्रोत और सभी देवताओं का नेत्र कहा गया है।
वे अदिति (देवमाता) और ऋषि कश्यप के पुत्र हैं। अदिति के 12 पुत्रों को आदित्य कहा जाता है, जो 12 महीनों के प्रतीक हैं। सूर्य इनमें से एक हैं (कभी-कभी प्रमुख)। सूर्य का जन्म प्रलय के बाद विश्व को प्रकाश देने के लिए हुआ। वे अपने रथ पर सवार होकर आकाश में भ्रमण करते हैं, जिसमें सात घोड़े (सात रंगों के प्रतीक) जुते होते हैं। रथ का सारथी अरुण है।
महाभारत और रामायण की कथा
सूर्य देव की सबसे प्रसिद्ध कथा महाभारत से जुड़ी है। कुंती (पांडवों की माता) ने अविवाहित अवस्था में दुर्वासा ऋषि से प्राप्त मंत्र से सूर्य देव को आवाहन किया। सूर्य ने कुंती को कर्ण नाम का पुत्र दिया, जो कवच-कुंडल के साथ जन्मा। कुंती ने शर्मवश कर्ण को टोकरी में रखकर नदी में बहा दिया। यह कथा सूर्य की तेजस्वी शक्ति और वरदान देने की क्षमता को दर्शाती है। भगवान राम इक्ष्वाकु वंश (सूर्य वंश) के हैं। सूर्य देव को इस वंश का आदि पुरुष माना जाता है।
पुराणों की अन्य कथाएँ
राजा संवरण ने सूर्य की पुत्री तपती से विवाह किया, जिनसे कुरु वंश की स्थापना हुई। सूर्य की पत्नी संझना (या सरण्यु) से जुड़वाँ संतान यम (मृत्यु के देवता) और यमी (यमुना नदी) हुई। संझना सूर्य के तेज से भयभीत होकर अपनी छाया छाया को छोड़कर चली गईं, जिससे छाया से शनि और अन्य संतानें हुईं।
सूर्य का विवाह सूर्य की मुख्य पत्नी उषा (प्रभात) और प्रत्युषा (संध्या) हैं। वे सावित्रि (गायत्री मंत्र की देवी) के रूप में भी पूजनीय हैं।
छठ पर्व में सूर्य की भूमिका
छठ में सूर्य को डूबते (संध्या अर्घ्य) और उगते (उषा अर्घ्य) दोनों समय अर्घ्य दिया जाता है, जो प्रकृति पूजा का प्रतीक है। वैज्ञानिक दृष्टि से सूर्य की किरणें विटामिन D प्रदान करती हैं, जो छठ के कठोर व्रत (36 घंटे निर्जला) के दौरान स्वास्थ्य लाभ देती हैं। एक कथा में प्रियंवद नाम की रानी ने छठ व्रत से संतान प्राप्त की। दूसरी में द्रौपदी ने वनवास में सूर्य से अक्षय पात्र मांगा।
यह पर्व वैदिक काल से चला आ रहा है और UNESCO की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल होने की प्रक्रिया में है। सूर्य पूजा विश्व की प्राचीनतम परंपराओं में से एक है।







