विशेष डेस्क/ पटना। बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले सियासी गलियारों में हलचल तेज़ है। हर दल अपनी रणनीति को अंतिम रूप देने में जुटा है, वहीं जनता के मूड को समझने के लिए चुनावी सर्वे शुरू हो चुके हैं। चुनावी सर्वेक्षक प्रकाश मेहरा के नेतृत्व में किए गए बिहार सर्वेक्षण ने इस बार कई चौंकाने वाले संकेत दिए हैं।
जनता का मूड – बदलाव की आहट या फिर पुरानी सरकार पर भरोसा ?
सर्वे के अनुसार, राज्य के करीब 38 ज़िलों में जनता के रुझान में बड़ा अंतर देखने को मिला है। शहरी इलाकों में युवा मतदाता रोज़गार और शिक्षा को लेकर मुखर हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में सड़क, बिजली और कृषि सहायता प्रमुख मुद्दे बने हुए हैं।
प्रकाश मेहरा के मुताबिक, “इस बार बिहार में जातीय समीकरण से ज़्यादा विकास और नेतृत्व की विश्वसनीयता बड़ा फेक्टर साबित होगा। जनता अब भावनाओं से ज़्यादा काम और नीतियों को देखकर वोट देने के मूड में है। जनता अब सिर्फ वादे नहीं, काम देखना चाहती है। बिहार का मतदाता अधिक जागरूक और तुलनात्मक रूप से निर्णायक हो गया है।”
कौन किस पर हावी ?
एनडीए गठबंधन को पारंपरिक वोट बैंक में अब भी बढ़त दिखाई दे रही है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में एंटी-इन्कम्बेंसी का असर झलक रहा है।
महागठबंधन को युवाओं और अल्पसंख्यक मतदाताओं में अच्छी पकड़ मिली है, विशेषकर सीमांचल और मगध क्षेत्रों में। तीसरा मोर्चा सीमित प्रभाव के बावजूद कुछ सीटों पर समीकरण बिगाड़ने की स्थिति में है।
किसकी चमकेगी किस्मत ?
सर्वे के अनुसार, मुख्यमंत्री पद की दौड़ में दो चेहरे सबसे आगे हैं — एक अनुभवी चेहरा जो स्थिरता का प्रतीक है, और दूसरा युवा चेहरा जो बदलाव की लहर का प्रतीक बनकर उभर रहा है। जनता में “नई सोच बनाम अनुभव” की बहस जोरों पर है।
इस बार कौन से फेक्टर करेंगे काम ?
युवा रोजगार का मुद्दा – 18 से 35 वर्ष के मतदाताओं में यह सबसे बड़ा चुनावी सवाल है।
महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण – आधी आबादी की प्राथमिकता अब राजनीतिक एजेंडे के केंद्र में है।
स्थानीय नेतृत्व – जनता अब दिल्ली नहीं, पटना से समाधान चाहती है।
जातीय समीकरण का सीमित प्रभाव – जाति अब भी कारक है, पर निर्णायक नहीं।
पब्लिक और फेक्टर पोल — मेहरा का विश्लेषण
प्रकाश मेहरा का कहना है, “बिहार में इस बार जनता खुद सर्वेक्षक बन गई है। लोग पार्टी नहीं, चेहरे और काम देख रहे हैं। बिहार की राजनीति इस बार नए समीकरण गढ़ेगी। जनता अब दलों के वादों से ज़्यादा, पिछले पाँच वर्षों के रिपोर्ट कार्ड को तौल रही है। यही सबसे बड़ा ‘फेक्टर पोल’ है।”
बिहार का चुनावी रण इस बार रोमांचक मोड़ पर है। जनता के मूड में गहराई से झांकने पर साफ़ है कि कोई भी दल आसान जीत की उम्मीद नहीं कर सकता। “कौन बनेगा मुख्यमंत्री?” — इसका जवाब तो जनता ही देगी, लेकिन बिहार का यह सर्वेक्षण बता रहा है कि इस बार हर वोट की अहमियत पहले से कहीं ज़्यादा है।






