स्पेशल डेस्क
नई दिल्ली: 30 अप्रैल यानी आज बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया। केंद्र सरकार ने आगामी जनगणना के साथ-साथ जाति जनगणना (Caste Census) कराने का निर्णय लिया है। यह फैसला सामाजिक समावेशिता, नीतिगत योजनाओं को प्रभावी बनाने और समाज के विभिन्न वर्गों की सटीक जानकारी प्राप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि जाति जनगणना को मूल जनगणना के साथ ही समाहित किया जाएगा, जिससे यह प्रक्रिया पारदर्शी और व्यापक होगी। आइए एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा की इस स्पेशल रिपोर्ट में हम इस फैसले के महत्त्व और इसके संभावित प्रभावों का विश्लेषण से समझते हैं।
क्या है जाति जनगणना, इसका महत्व ?
जाति जनगणना का अर्थ है जनगणना के दौरान लोगों की जाति से संबंधित जानकारी एकत्र करना। भारत में जनगणना हर 10 साल में होती है, जिसमें जनसंख्या, लिंग अनुपात, साक्षरता, और अन्य सामाजिक-आर्थिक आंकड़े जुटाए जाते हैं। हालांकि, स्वतंत्र भारत में केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की गणना की जाती रही है। पूर्ण जाति आधारित जनगणना आखिरी बार 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी।
जाति जनगणना का महत्व इस बात में निहित है कि यह सरकार को विभिन्न जातियों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति के बारे में सटीक डेटा प्रदान करेगी। इससे कई क्षेत्रों में नीतियां बनाने में मदद मिलेगी आरक्षण, कल्याणकारी योजनाओं और संसाधनों के समान वितरण के लिए। पिछड़े वर्गों के लिए लक्षित योजनाओं को लागू करने में। विभिन्न समुदायों के उचित प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने में। समाज में भेदभाव को कम करने और समान अवसर प्रदान करने में। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, “यह कदम सामाजिक न्याय, समावेशी विकास और समान प्रतिनिधित्व की दिशा में बड़ा बदलाव लाएगा।”
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— Ministry of Information and Broadcasting (@MIB_India) April 30, 2025
मोदी कैबिनेट का बड़ा फैसला !
सरकार ने फैसला किया है कि आगामी जनगणना (2025-2026) में जाति गणना को शामिल किया जाएगा। जनगणना फॉर्म में जाति का एक कॉलम होगा, जिसके आधार पर देश में प्रत्येक जाति की जनसंख्या का आंकड़ा जुटाया जाएगा। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जोर देकर कहा कि “जाति जनगणना को मूल जनगणना के साथ समाहित करने का निर्णय सामाजिक ताने-बाने को ध्यान में रखकर और संविधान की व्यवस्था के तहत लिया गया है। यह केंद्र सरकार का विषय है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 246 की केंद्रीय सूची में उल्लेखित है।
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कांग्रेस और विपक्षी दलों पर आरोप !
वैष्णव ने कांग्रेस और विपक्षी दलों पर आरोप लगाया कि उन्होंने जाति जनगणना को केवल राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि “2010 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में जाति जनगणना पर विचार करने का आश्वासन दिया था, लेकिन केवल एक सामाजिक-आर्थिक सर्वे (SECC) कराया गया, जो अपूर्ण और अपारदर्शी था। कुछ राज्यों जैसे बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना ने अपने स्तर पर जाति सर्वे किए हैं। वैष्णव ने कहा कि कुछ राज्यों ने यह कार्य अच्छे से किया, लेकिन कई जगहों पर गैर-पारदर्शी और राजनीतिक दृष्टिकोण से सर्वे किए गए, जिससे समाज में भ्रांतियां फैलीं।
लंबे समय से जाति जनगणना की मांग !
जाति जनगणना की मांग लंबे समय से विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों द्वारा उठाई जा रही थी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सपा नेता अखिलेश यादव, जदयू नेता नीतीश कुमार और राजद नेता तेजस्वी यादव जैसे नेताओं ने इस मुद्दे को बार-बार उठाया है। राहुल गांधी ने कई बार कहा कि जाति जनगणना सामाजिक न्याय और आरक्षण की 50% सीमा को तोड़ने के लिए आवश्यक है।
हालांकि, बीजेपी और केंद्र सरकार पहले इस मुद्दे पर असमंजस में दिखाई दी। 2021 में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में कहा था कि सरकार ने SC और ST के अलावा अन्य जातियों की गणना का कोई आदेश नहीं दिया है। लेकिन हाल के वर्षों में, खासकर बिहार जैसे राज्यों में जाति जनगणना के बाद बदले राजनीतिक समीकरणों और विपक्ष के दबाव ने सरकार को इस दिशा में कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।
राजनीतिक लाभ मिलने की उम्मीद ?
बिहार में 2023 में नीतीश कुमार सरकार द्वारा कराई गई जाति जनगणना को विपक्षी नेता तेजस्वी यादव और राहुल गांधी ने अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया था। लेकिन अब केंद्र सरकार के इस फैसले से बीजेपी और एनडीए को बिहार जैसे राज्यों में इसका राजनीतिक लाभ मिलने की उम्मीद है, खासकर आगामी विधानसभा चुनावों के संदर्भ में। इसके अलावा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने भी हाल ही में जाति जनगणना को हरी झंडी दी थी, जिसने बीजेपी को इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करने में मदद की।
सरकार ने कई प्रमुख फैसले लिए !
जाति जनगणना के साथ-साथ, कैबिनेट बैठक में निम्नलिखित महत्वपूर्ण फैसले भी लिए गए गन्ना किसानों के लिए राहत: 2025-26 सत्र के लिए गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) 355 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया, जो लागत से दोगुना है। इससे करीब 5 करोड़ गन्ना किसानों और चीनी मिलों से जुड़े 5 लाख श्रमिकों को लाभ होगा। शिलांग से सिलचर (मेघालय-असम) तक 166.8 किमी लंबे 6-लेन हाईस्पीड कॉरिडोर के निर्माण को मंजूरी दी गई। इस परियोजना की लागत 22,864 करोड़ रुपये होगी और यह पूर्वोत्तर राज्यों की कनेक्टिविटी और रणनीतिक स्थिति को मजबूत करेगी।
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संभावित प्रभाव और चुनौतियां ?
जाति जनगणना से प्राप्त डेटा सरकार को शिक्षा, रोजगार, और कल्याणकारी योजनाओं को अधिक लक्षित और प्रभावी बनाने में मदद करेगा। विभिन्न जातियों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति का सटीक आकलन सामाजिक भेदभाव को कम करने में सहायक होगा। यह फैसला बीजेपी और एनडीए को OBC और अन्य पिछड़े वर्गों के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद कर सकता है, खासकर उन राज्यों में जहां जाति आधारित राजनीति प्रभावी है।
चुनौतियां क्या हैं ?
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जाति जनगणना से सामाजिक विभाजन बढ़ सकता है, खासकर अगर इसका राजनीतिक दुरुपयोग हुआ। भारत में हजारों जातियां और उप-जातियां हैं। इनका सटीक और मानकीकृत डेटा एकत्र करना एक बड़ी चुनौती होगी। 2011 के SECC डेटा में खामियां इसका उदाहरण हैं। विपक्ष और कुछ क्षेत्रीय दल इस डेटा का उपयोग अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए कर सकते हैं, जिससे सामाजिक तनाव बढ़ सकता है।
क्या है विपक्ष का रुख !
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस फैसले का स्वागत किया है, लेकिन इसे देरी से उठाया गया कदम बताया है। राहुल गांधी ने कहा कि यह उनकी पार्टी की लंबे समय से चली आ रही मांग का परिणाम है। हालांकि, अश्विनी वैष्णव ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि उनकी सरकारों ने 1947 के बाद कभी जाति जनगणना नहीं कराई और इस मुद्दे को केवल वोट बैंक की राजनीति के लिए इस्तेमाल किया।
विश्लेषक प्रकाश मेहरा का मानना है कि “यह फैसला विपक्ष के हाथों से एक बड़ा मुद्दा छीन सकता है, जिसे वे सामाजिक न्याय के लिए प्रचारित करते रहे हैं।”
जाति जनगणना कराने का फैसला !
मोदी सरकार का जाति जनगणना कराने का फैसला भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाने की क्षमता रखता है। यह न केवल नीतिगत योजनाओं को अधिक समावेशी बनाएगा, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में भी एक बड़ा कदम है। हालांकि, इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि इसे कितनी पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ लागू किया जाता है। 2025 में शुरू होने वाली जनगणना न केवल देश की जनसंख्या का आंकड़ा देगी, बल्कि यह भी बताएगी कि भारत का सामाजिक ताना-बाना कितना जटिल और विविध है।