मुरार सिंह कंडारी
नई दिल्ली: जनजाति समाज की परम्परागत आस्था एवं देवस्थानों का संरक्षण और उनकी बोली-भाषा का विकास करने के लिए सरकार द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं। जनजाति समाज के परिचय एवं पहचान हेतु मुख्य रूप से पांच बिंदुओं को आधार माना गया है:
आदिमपन: जनजाति समाज की पारंपरिक जीवनशैली और उनकी विशिष्ट संस्कृति।
- विशिष्ट संस्कृति: जनजाति समाज की अनोखी संस्कृति, जिसमें उनकी परंपराएं, रीति-रिवाज और विश्वास शामिल हैं।
- अन्य समुदायों से संपर्क में संकोची: जनजाति समाज की अन्य समुदायों से अलग रहने की प्रवृत्ति और उनकी विशिष्ट पहचान।
- भौगोलिक पृथकता: जनजाति समाज की भौगोलिक स्थिति और उनके आवास की विशिष्टता।
- आर्थिक पिछड़ापन: जनजाति समाज की आर्थिक स्थिति और उनके विकास की आवश्यकता.
वन अधिकार कानून 2006 और पेसा कानून 1996 जैसे अधिनियमों के माध्यम से जनजाति समुदायों के अधिकारों की रक्षा की जा रही है और उन्हें अपने पारंपरिक वन संसाधनों पर अधिकार दिलाया जा रहा है। इन कानूनों का उद्देश्य जनजाति समुदायों को उनके वन संसाधनों पर अधिकार दिलाना और उन्हें वनों के संरक्षण में शामिल करना है।
इसके अलावा, जनजाति समाज के हित में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं:
- परम्परागत आस्था एवं पूजास्थलों का संरक्षण: प्रत्येक गांव में स्थानीय लोगों की मान्यता एवं आवश्यकता के अनुसार समुचित व्यवस्था करना।
- जनजाति बोली-भाषाओं का विकास: उनके परम्परागत जीवन मूल्यों का संरक्षण करना और जनजाति लोककला-नृत्य, लोकगीत, मंत्र आदि का अभिलेखीकरण करना।
- परम्परागत पर्व एवं त्योहारों का आयोजन: पूरे उत्साह एवं रीति-रिवाज पूर्वक मनाना और इन्हें विधर्मियों द्वारा विकृत करने के षड्यंत्रों को विफल करना।
इसके लिए ग्राम सभाओं एवं जनजाति समाज की परम्परागत संस्थाओं को आगे बढ़कर काम करना होगा और सरकार के संस्कृति एवं धरोहर संरक्षण तथा देवस्थान विभाग एवं संस्कृति तथा जनजातीय मंत्रालयों का भी सहयोग लेना होगा । भारत सरकार ने जनजाति समाज के परिचय और पहचान के लिए पांच मुख्य बिंदुओं को आधार माना है।
- आदिमपन: जनजाति समाज की पारंपरिक जीवनशैली और उनकी विशिष्ट संस्कृति।
- विशिष्ट संस्कृति: जनजाति समाज की अनोखी संस्कृति, जिसमें उनकी परंपराएं, रीति-रिवाज और विश्वास शामिल हैं।
- अन्य समुदायों से संपर्क में संकोची: जनजाति समाज की अन्य समुदायों से अलग रहने की प्रवृत्ति और उनकी विशिष्ट पहचान।
- भौगोलिक पृथकता: जनजाति समाज की भौगोलिक स्थिति और उनके आवास की विशिष्टता।
- आर्थिक पिछड़ापन: जनजाति समाज की आर्थिक स्थिति और उनके विकास की आवश्यकता।
वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 के माध्यम से सरकार ने जनजाति समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें उनके पारंपरिक वन संसाधनों पर अधिकार दिलाने का प्रयास किया है। इस अधिनियम के मुख्य उद्देश्य हैं:
- जंगलों में रहने वाले समुदायों के खिलाफ किए गए पिछले गलतियों और अन्याय को दूर करना।
- अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों की भूमि के कार्यकाल, आजीविका के साधन और खाद्य सुरक्षा की गारंटी देना।
- वन अधिकार धारकों को पारिस्थितिक संतुलन, जैव विविधता संरक्षण और सतत उपयोग के लिए जिम्मेदारी और शक्ति देना.
इसके अलावा, पेसा कानून 1996 जैसे अधिनियमों के माध्यम से जनजाति समुदायों को उनके पारंपरिक अधिकारों और संसाधनों पर नियंत्रण दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। इन कानूनों का उद्देश्य जनजाति समुदायों को उनके वन संसाधनों पर अधिकार दिलाना और उन्हें वनों के संरक्षण में शामिल करना है।