लोग नौकरी इसलिए करते हैं कि उन्हें सैलरी मिलती है। सैलरी में बढ़ोतरी किसी भी कंपनी में बने रहने का एक बड़ा कारण रहा है और अक्सर इसी में असुंष्टि होने पर लोग जॉब बदलने का विकल्प तलाशने लगते हैं। लेकिन, कोविड महामारी ने जॉब बदलने के इस ट्रेंड में भी बदलाव किया है। शोध से पता चल रहा है कि अब लोग, खासकर युवा पीढ़ी नौकरियों में सिर्फ पैसों को ही प्राथमिकता नहीं दे रही है। उनके लिए जीवन की बाकी चीजें भी काफी अहमियत रखती हैं। हालांकि, कंपनियों के पास मौद्रिक फायदा अभी भी कर्मचारियों को लुभाने का सबसे बड़ा हथियार है, लेकिन अब यह एकमात्र विकल्प नहीं रह गया है।
बदल रही है नौकरी-पेशा लोगों की प्राथमिकता-शोध
कोविड महामारी ने नौकरी करने वाले लोगों की सोच भी बदल दी है। ईटी ने एक रिपोर्ट दी है, जिसका लब्बोलुआब तो यही है। एचआर एक्सपर्ट ने एक शोध में पाया है कि पिछले साल जिन कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को मौद्रिक फायदे के अलावा दूसरी सुविधाएं दीं, वहां से नौकरी छोड़ने वालों की दर 11% थी। यह दर शोध में शामिल की गई कंपनियों की औसत नौकरी छोड़ने वाले 16% की तुलना में कम थी। हालांकि, अभी भी जहां लोगों के पैसे बढ़ाए गए थे, वहां से नौकरी छोड़ने वालों की दर सिर्फ 5% ही है। लेकिन, इस शोध ने एक रेखा स्पष्ट तरह से खींच दी है कि अब नौकरी करने वाले कर्मचारियों के सामने सिर्फ उनका मौद्रिक फायदा ही एकमात्र प्राथमिकता नहीं रह गया है और वह बाकी चीजों को भी प्राथमिकता देने लगे हैं।
किस तरह के कर्मचारियों पर हुए शोध?
कर्मचारियों के इस तरह के बर्ताव पर नजर रखने वाला एक प्लेटफॉर्म एडवांटेज क्लब 100 कंपनियों के आंकडों के विश्लेषण के बाद इस नतीजे पर पहुंचा है। इन कंपनियों में करीब 10 लाख लोग काम करते हैं। एडवांटेज क्लब के को-फाउंडर और चीफ एग्जिक्यूटिव सौरभ देयोराह ने कहा है, ‘इस शोध में उन कर्मचारियों के (कंपनी) छोड़ने की दर देखी गई जिन्हें 2022 में मौद्रिक फायदा मिला था और उनकी तुलना उन कर्मचारियों के साथ की गई, जिन्हें सिर्फ गैर-मौद्रिक फायदे मिले या जिन्हें किसी भी तरह का कोई विशेष लाभ नहीं मिला।’
गैर-मौद्रिक लाभ में वर्क फ्रॉम होम नंबर वन
जब गैर-मौद्रिक लाभ की बात आती है तो कोविड-महामारी के बाद कर्मचारी वर्क फ्रॉम होम के विकल्प को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं। यानि जिन कंपनियों में यह विकल्प भी उपलब्ध है, वह कर्मचारियों को नौकरी बदलने या वहीं बने रहने का कारण बन रहा है। इनके अलावा छुट्टियां और अनुभव आधारित कार्यक्रम, लाइफ-स्टाइल आधारित छुट्टियां और अन्य तरह की नीतियां भी कर्मचारियों को अपनी कंपनी के साथ बने रहने या उन्हें बदलने का फैसला लेने में मदद कर रहे हैं।
युवा पीढ़ी में बदल रही है नौकरी करने की सोच
हाल के वर्षों में टाटा स्टील ने अपने कर्मचारियों को अन्य सुविधाओं के अलावा घर से काम करने के साथ ही रिमोट वर्किंग की सुविधा भी दी है। कंपनी के एक प्रवक्ता के मुताबिक, ‘हमारे कर्मचारियों की जरूरत के हिसाब से (लाभदायक नीतियां )लगातार बदलते रहते हैं।’ आरपीजी ग्रुप के चीफ टैलेंट ऑफिसर सुप्रतीक भट्टाचार्य ने इस मसले पर अनुभव और युवा टैलेंट की सोच में फर्क भी जाहिर कर दिया है। उनके मुताबिक, युवा टैलेंट सिर्फ वित्तीय लाभ की जगह वर्क-लाइफ बैलेंस और नौकरी से संतुष्टि को कहीं ज्यादा महत्त्व देते हैं। भट्टचार्य की कहना है कि ‘स्पष्ट तौर पर गैर-मौद्रिक लाभ पहले से कहीं ज्यादा महत्त्व हासिल करता जा रहा है।’
कंपनियां भी मजबूरन बदल रही हैं नीतियां?
एक्सपर्ट का कहना है कि ऐसी नीतियों से कर्मचारियों का मनोबल ऊंचा रखा जा सकता है। वेदांता ग्रुप की चीफ एचआर मधु श्रीवास्तव का कहना है, कर्मचारियों को वित्तीय विकल्प तो मिलता ही है, उससे अलग विकल्प की भी बड़ी भूमिका होती है। वेदांता में कर्मचारियों के लिए ऐसे कार्यक्रम हैं, जहां कर्मचारी अपने निजी और पेशेवर जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कर सकते हैं। क्वेस कॉर्पोरेशन के एक अलग शोध के अनुसार आधे से ज्यादा (56%) अनौपचारिक महिला कर्मचारी गैर-मौद्रिक चीजों जैसे कि करियर तैयार करने, समाज के लिए योगदान, नए स्किल सीखने या उनके हितों और जुनून को समर्थन देने वाले काम को प्राथमिकता देती हैं।