प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
चमोली : उत्तराखंड के चमोली जिले के थराली क्षेत्र में 22-23 अगस्त 2025 की रात करीब 1:00-1:30 बजे भारी बारिश और संभवतः बादल फटने की घटना ने भारी तबाही मचाई। इस प्राकृतिक आपदा के कारण सैलाबी पानी और मलबा कई घरों में घुस गया, जिससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ।
सड़कें और संपर्क मार्ग अवरुद्ध
चमोली जिले के थराली तहसील के सागवाड़ा गांव और आसपास के क्षेत्रों में भारी बारिश के कारण मलबा और पानी नीचे की ओर बहकर आया। इस आपदा में दो घर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए। एक महिला मलबे में फंस गई, और एक पुरुष लापता बताया गया है। भारी बारिश के कारण सड़कें और संपर्क मार्ग अवरुद्ध हो गए, जिससे राहत कार्यों में बाधा आई।
राहत और बचाव कार्य
स्थानीय प्रशासन, पुलिस, और आपदा प्रबंधन टीमें (SDRF) तुरंत मौके पर पहुंची और राहत कार्य शुरू किए। उत्तराखंड आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि रात में हुई अत्यधिक बारिश के कारण मलबा बहकर आया, जिससे नुकसान हुआ। बचाव कार्य जारी हैं। चमोली के डीएम संदीप तिवारी ने पुष्टि की कि “थराली और आसपास के क्षेत्रों में व्यापक क्षति हुई है और टीमें प्रभावित लोगों की मदद के लिए काम कर रही हैं।”
उत्तराखंड के लिए ऑरेंज अलर्ट
देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र (IMD) ने 22 अगस्त को उत्तराखंड के लिए ऑरेंज अलर्ट जारी किया था, जिसमें भारी बारिश, भूस्खलन, और नदी-नालों के उफान की चेतावनी दी गई थी। थराली की इस घटना से पहले, 5 अगस्त 2025 को उत्तरकाशी के धराली गांव में बादल फटने से भारी तबाही हुई थी। वहां चार लोगों की मौत हुई और 50 लोग लापता बताए गए थे।
धराली में सैलाब और मलबे ने कई घरों को नष्ट कर दिया था, और सेना, NDRF, SDRF, और ITBP ने संयुक्त रूप से बचाव कार्य किए। अब तक 130 से अधिक लोगों को बचाया जा चुका है। थराली की घटना भी धराली की तरह ही प्राकृतिक आपदा का परिणाम है, जो उत्तराखंड में बार-बार होने वाली बाढ़ और भूस्खलन की समस्या को दर्शाती है।
प्रशासनिक और केंद्रीय हस्तक्षेप
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने धराली हादसे के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और सांसदों से बातचीत की थी, और केंद्र सरकार ने हर संभव मदद का आश्वासन दिया था। थराली की घटना के बाद भी स्थानीय प्रशासन और आपदा प्रबंधन टीमें सक्रिय हैं, लेकिन अभी तक केंद्र से विशेष सहायता की कोई नई घोषणा सामने नहीं आई है।
क्या है विशेषज्ञों का कहना
विशेषज्ञों का कहना है कि “अनियोजित निर्माण, खनन और जलवायु परिवर्तन उत्तराखंड में ऐसी आपदाओं के प्रमुख कारण हैं।” भागीरथी, अलकनंदा, और ऋषिगंगा जैसी नदियाँ, जो पहले जीवनदायिनी थीं, अब भारी बारिश और मानवीय गतिविधियों के कारण खतरा बन रही हैं।
थराली में राहत और बचाव कार्य जारी हैं, लेकिन खराब मौसम और अवरुद्ध सड़कों के कारण चुनौतियाँ बनी हुई हैं। स्थानीय लोगों को नदी-नालों से दूर रहने और यात्रा से पहले मौसम की जानकारी लेने की सलाह दी गई है। उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार से प्रभावित लोगों के लिए तत्काल राहत और पुनर्वास की मांग की जा रही है।
सरकार और स्थानीय प्रशासन
थराली और धराली की घटनाएँ उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति और गंभीरता को दर्शाती हैं। जलवायु परिवर्तन, अनियोजित विकास, और अपर्याप्त आपदा प्रबंधन इन आपदाओं को और घातक बना रहे हैं। सरकार और स्थानीय प्रशासन को दीर्घकालिक उपाय, जैसे बेहतर आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण और पर्यावरण संरक्षण, पर ध्यान देना होगा ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियों को कम किया जा सके।