नई दिल्ली : देश की संसद के दोनों सदनों ने महिला आरक्षण बिल को पारित कर दिया है. अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह बिल कानून बन जाएगा. इस बिल को कई मायनों में खास कहा जा रहा है. महिला सशक्तीकरण जैसी बातें कही जा रही हैं. इसके साथ ही पंचायत को लेकर भी इसकी सफलता की बातें कही गईं. ऐसे में छत्तीसगढ़ के दुर्ग में रिसामा पंचायत की सरपंच गीता महानंद ने कहा कि अगर पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं के लिए आरक्षण नहीं होता तो वह कभी भी ग्रामीण चुनाव लड़ने के लिए आगे नहीं आतीं.
एक गृहिणी, जो महिलाओं के लिए सीट आरक्षित होने के बाद राजनीति में आईं. महानंद ने कहा कि आरक्षण ने न केवल उन्हें निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाया, बल्कि समाज के लिए और अधिक करने के लिए उनके आत्मविश्वास को भी बढ़ाया. पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण शुरू होने के बाद से तीन दशकों में, देश ने महिलाओं को जमीनी स्तर पर राजनीतिक क्षेत्र में नेतृत्व करने और उसमें उत्कृष्टता हासिल करने के लिए लैंगिक बाधाओं को दूर करते देखा है.
पंचायत के चुनावों में महिलाओं को मिला आरक्षण
आपको बता दें कि साल 1992 में, पी वी नरसिम्हा राव सरकार ने 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम को पारित किया था. जिसमें पंचायती राज संस्थानों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करना अनिवार्य था. तीन दशक से अधिक समय के बाद, 128वें संविधान संशोधन विधेयक, जिसे नारी शक्ति वंदन अधिनियम कहा गया है, को राजनीति में लैंगिक समानता हासिल करने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है.
गौरतलब है कि सरपंच बनने के बाद गीता महानंद ने अपनी पंचायत में स्वच्छता में सुधार के लिए सक्रिय कदम उठाए. उन्होंने बताया कि हमें अपने स्वच्छता प्रयासों के लिए 20 लाख रुपये का अनुदान मिला. हमने सभी संस्थानों में स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया. हमने स्वच्छ भारत पहल के तहत शौचालयों का निर्माण किया और महिलाओं को रोजगार दिया, उन्हें पंचायत निधि से भुगतान किया. हमने स्वच्छता कर भी लगाया.
शुरुआती दिनों में हुईं काफी दिक्कतें
शुरुआत में कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा, क्योंकि लोगों को नई पहल के बारे में संदेह था. हमने बड़ों को समझाने के लिए बच्चों के साथ काम किया और कामयाब भी हुए. हम वर्तमान में एक लाइब्रेरी बनाने के लिए काम कर रहे हैं. राजनीति में अपनी शुरुआत के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, गांव वालों ने सुझाव दिया कि चूंकि मैं पढ़ी-लिखी हूं, इसलिए मुझे चुनाव लड़ना चाहिए. मैं राजनीति में नई थी और मेरे परिवार में कोई भी इस क्षेत्र में नहीं था. शुरुआत में मेरे पति ने एक सलाहकार के रूप में मेरी बहुत मदद की.
‘यह तो पहले ही हो जाना चाहिए था…’
महिला आरक्षण विधेयक के संसद में पारित होने के बारे में महानंद ने कहा, यह पहले ही हो जाना चाहिए था. हम समानता की बात करते हैं, लेकिन इसे कब लागू किया जाएगा, इस पर अभी भी कोई स्पष्टता नहीं है. यह पूछे जाने पर कि कुछ लोगों ने चिंता व्यक्त की है कि विधेयक, अपने वर्तमान स्वरूप में, राजनीतिक परिवारों की महिलाओं को हावी होने की अनुमति दे सकता है, जिससे उन लोगों के लिए बहुत कम जगह बचेगी जिन्हें वास्तव में अवसर की जरूरत है, उन्होंने कहा, ऐसा हो सकता है, लेकिन महिलाओं को आगे आना चाहिए और अपनी बात रखनी चाहिए.
इसके अलावा राजस्थान के एक दूरदराज के गांव की एक महिला सरपंच, जिन्होंने अपनी पहचान उजागर न करने की शर्त पर बताया कि आरक्षण के जरिए मुझे सशक्तिकरण मिला. चुनाव मैदान में उतरने पर उन्हें घरेलू दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा. मेरे पति ने मुझे नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन गांव की महिलाएं मेरे समर्थन में आ गईं. धीरे-धीरे, यहां तक कि मेरे अपने परिवार ने भी मेरा सम्मान करना शुरू कर दिया, उन्हें एहसास हुआ कि मैं बस अपने गांव की स्थिति में सुधार करना चाहती हूं.
MP से प्रेरित करने वाला वाकया
मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के सालखेड़ा गांव में, ग्राम परिषद सदस्य अनीता ने भी अपने अनुभव साझा किए. उन्होंने कहा, इस छोटे से गांव में, महिलाओं को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था. पुरुष उन्हें बाहर निकलने की अनुमति नहीं देते थे. यदि आरक्षण नहीं होता, तो एक महिला के लिए चुनाव लड़ना अविश्वसनीय रूप से कठिन होता. जब मैं सदस्य बनी, तो एक एनजीओ ने सिखाया हमें अपने विचारों को लोगों तक कैसे पहुंचाना है और बदलाव लाना है.
महिलाओं को सशक्त बनाने की अनीता की प्रतिबद्धता उनके अपने चुनाव से भी आगे तक फैली हुई है. उन्होंने कहा, मैं अपनी पंचायत में महिलाओं को आगे बढ़ने और अधिक जिम्मेदारियां लेने के लिए प्रोत्साहित करती हूं. मेरा दृढ़ विश्वास है कि उन्हें बड़ी भूमिका निभानी चाहिए. जमीनी स्तर के संगठन ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया में जेंडर की प्रमुख सीमा भास्करन ने कहा कि पंचायत में महिला आरक्षण ने महिलाओं के लिए राजनीतिक स्थान खोल दिया है. उन्होंने कहा, जिन राज्यों में पंचायती राज में आरक्षण को महिला निर्वाचित प्रतिनिधियों की क्षमता निर्माण के साथ जोड़ा गया है, वहां बदलाव प्रभावशाली रहा है.