प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली: संयुक्त राज्य अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों फोर्डो, नतांज़ और इस्फहान पर सैन्य हमले किए, जिसे ऑपरेशन ‘मिडनाइट हैमर’ नाम दिया गया। यह अभियान इज़राइल-ईरान युद्ध में अमेरिका की प्रत्यक्ष सैन्य भागीदारी का प्रतीक था, जो 13 जून को इज़राइल के ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर हमले के साथ शुरू हुआ था।
कब-कैसे हुआ हमला ?
हमले 21 जून की देर रात से 22 जून की सुबह तक किए गए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 22 जून को रात में व्हाइट हाउस से राष्ट्र को संबोधित करते हुए इसकी घोषणा की। हमले में शामिल B-2 स्टेल्थ बॉम्बर्स ने अमेरिका से 18 घंटे की उड़ान भरी, जिसमें कुछ विमानों ने प्रशांत महासागर की ओर उड़ान भरी ताकि ईरान को भ्रमित किया जाए।
अमेरिकी सैन्य अभियान को अत्यंत सटीकता और उन्नत हथियारों के साथ अंजाम दिया गया। सात B-2 बॉम्बर्स का उपयोग किया गया, जो केवल अमेरिकी वायुसेना के पास हैं। ये विमान GBU-57 मासिव ऑर्डनेंस पेनेट्रेटर (MOP) बम ले जाने में सक्षम हैं, जिनका वजन लगभग 13,600 किलोग्राम (30,000 पाउंड) है। ये बम 18 मीटर कंक्रीट या 61 मीटर मिट्टी में प्रवेश कर सकते हैं, जो फोर्डो जैसे गहरे भूमिगत ठिकानों को नष्ट करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। कुल 14 MOP बम और 75 सटीक-निर्देशित हथियारों का उपयोग किया गया।
एक अमेरिकी पनडुब्बी से इस्फहान साइट पर 30 टॉमहॉक मिसाइलें दागी गईं, जिनकी रेंज 2,500 किमी और गति 880 किमी/घंटा है। 125 सैन्य विमानों का उपयोग किया गया, जिसमें F-16, F-22, और F-35 लड़ाकू विमान शामिल थे, जो हवाई क्षेत्र को साफ करने और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों की जांच के लिए तैनात थे। हमले से पहले, अमेरिका ने डिकॉय (भ्रम पैदा करने वाले उपकरण) और अन्य भटकाने वाली रणनीतियों का उपयोग किया ताकि ईरानी रक्षा प्रणालियों को गुमराह किया जाए।
फोर्डो फ्यूल एनरिचमेंट प्लांट
यह ईरान का सबसे गहरा और सबसे सुरक्षित परमाणु संयंत्र है, जो पहाड़ के अंदर बनाया गया है। अमेरिकी दावों के अनुसार, यह सुविधा “पूरी तरह नष्ट” हो गई। सैटेलाइट इमेजरी में छह नए क्रेटर और धूसर धूल दिखाई दी, जो हमले की तीव्रता को दर्शाती है।
यूरेनियम संवर्धन का प्रमुख केंद्र, जिसे व्यवस्थित रूप से नष्ट किया गया।इस्फहान परमाणु अनुसंधान केंद्र: इस साइट को टॉमहॉक मिसाइलों से निशाना बनाया गया, जो अनुसंधान और सेंट्रीफ्यूज उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण थी। प्रारंभिक युद्ध क्षति आकलन (battle damage assessment) के अनुसार, तीनों साइटों को “अत्यंत गंभीर क्षति” पहुंची। हालांकि, ईरानी सांसदों और मीडिया ने दावा किया कि क्षति सीमित थी।
B-2 स्पिरिट स्टेल्थ बॉम्बर्स की तैनाती
हमले से पहले, अमेरिका ने मध्य पूर्व में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाई थी। इसमें USS निमित्ज विमानवाहक पोत, B-2 बॉम्बर्स, और डिएगो गार्सिया बेस पर B-2 स्पिरिट स्टेल्थ बॉम्बर्स की तैनाती शामिल थी। सऊदी अरब के प्रिंस सुल्तान एयर बेस पर 27 KC-135 रिफ्यूलर, 12 C-130 परिवहन विमान, और 52 लड़ाकू विमान तैनात किए गए। हमले के दौरान, ओक्लाहोमा के अल्टस एयर फोर्स बेस से आठ KC-135 स्ट्रैटोटैंकर रवाना हुए, जो मिसौरी के व्हाइटमैन एयर फोर्स बेस से उड़ान भरने वाले विमानों को रिफ्यूल करने के लिए थे।
क्यों हुआ हमला ?
अमेरिका का प्राथमिक लक्ष्य ईरान के परमाणु संवर्धन क्षमता को नष्ट करना था, ताकि वह परमाणु हथियार विकसित न कर सके। ट्रम्प ने कहा कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम “वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा” था। 13 जून को इज़राइल ने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर हमला किया, जिसके जवाब में ईरान ने इज़राइल पर मिसाइल और ड्रोन हमले किए। इस युद्ध में अमेरिका शुरू में रक्षात्मक भूमिका तक सीमित था, लेकिन 22 जून को उसने प्रत्यक्ष आक्रामक कार्रवाई की।
ट्रम्प ने लंबे समय से कहा था कि “वह ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने की अनुमति नहीं देंगे। मार्च 2025 में, अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड ने कहा था कि ईरान ने यूरेनियम भंडार को अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ाया है, लेकिन परमाणु हथियार नहीं बना रहा—ट्रम्प ने इस आकलन को “गलत” बताया। इज़राइली खुफिया जानकारी के अनुसार, ईरान ने एक “हथियार समूह” बनाया था, जो परमाणु हथियार के घटकों पर प्रयोग कर रहा था।
परिणाम और प्रतिक्रियाएँ !
अमेरिकी दावों के अनुसार, तीनों परमाणु सुविधाएँ “पूरी तरह नष्ट” हो गईं। सैटेलाइट इमेजरी से फोर्डो में गंभीर क्षति की पुष्टि हुई, लेकिन ईरान के राष्ट्रीय परमाणु सुरक्षा केंद्र ने दावा किया कि आसपास के क्षेत्रों में कोई रेडिएशन नहीं पाया गया। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने कहा कि साइटों से ऑफ-साइट रेडिएशन स्तरों में कोई वृद्धि नहीं हुई। ईरानी सांसदों ने दावा किया कि फोर्डो को गंभीर क्षति नहीं हुई, जो ट्रम्प के दावों से विरोधाभासी है।
विवाद और कानूनी सवाल
अमेरिकी संविधान के अनुच्छेद के अनुसार, युद्ध की घोषणा का अधिकार कांग्रेस के पास है, लेकिन अनुच्छेद II राष्ट्रपति को सशस्त्र बलों का कमांडर-इन-चीफ बनाता है। ट्रम्प के हमले ने इस बहस को फिर से जन्म दिया कि क्या राष्ट्रपति बिना कांग्रेस की मंजूरी के सैन्य कार्रवाई कर सकता है।
हिज़बुल्लाह और ईरान ने दावा किया कि “परमाणु सुविधाओं पर हमला जेनेवा संधियों और UN चार्टर का उल्लंघन है। ईरान ने IAEA पर निष्क्रियता का आरोप लगाया, जबकि IAEA ने कहा कि वह साइटों की निगरानी कर रहा है।
अब आगे क्या होगा ?
ईरान ने संकेत दिया है कि वह जवाबी हमले कर सकता है, जिसमें अमेरिकी ठिकानों (इराक, बहरीन, कुवैत) या होर्मुज़ जलडमरूमध्य को बंद करना शामिल हो सकता है। अमेरिकी रुख विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा कि वर्तमान में कोई नया सैन्य अभियान नियोजित नहीं है, जब तक कि ईरान “गड़बड़” न करे। ईरान ने कहा कि वह कूटनीति के लिए तैयार है, बशर्ते इज़राइल हमले बंद करे। हालांकि, अमेरिका और इज़राइल ने शून्य यूरेनियम संवर्धन की मांग की है, जिसे ईरान ने खारिज कर दिया।
युद्ध के बढ़ने से मध्य पूर्व में अस्थिरता, तेल की कीमतों में उछाल, और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है।
जवाबी कार्रवाई…कूटनीतिक प्रयासों का परिणाम
अमेरिका ने 21-22 जून 2025 को ईरान के तीन परमाणु सुविधाओं पर सटीक और शक्तिशाली हमले किए, जिसमें B-2 बॉम्बर्स, टॉमहॉक मिसाइलें, और बंकर-बस्टर बमों का उपयोग किया गया। ट्रम्प ने इसे “शानदार सैन्य सफलता” बताया, लेकिन ईरान ने सीमित क्षति का दावा किया। यह अभियान इज़राइल-ईरान युद्ध में एक महत्वपूर्ण वृद्धि थी, जिसके दीर्घकालिक परिणाम क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर निर्भर करेंगे। ईरान की जवाबी कार्रवाई और कूटनीतिक प्रयासों का परिणाम इस युद्ध के भविष्य को निर्धारित करेगा।