स्पेशल डेस्क
नई दिल्ली: डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम (SEVP) सर्टिफिकेशन को रद्द कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप हार्वर्ड अब नए विदेशी छात्रों को F-1 और J-1 वीजा के तहत दाखिला नहीं दे सकता। यह फैसला 2025-26 शैक्षणिक वर्ष से लागू होगा। इस कदम से हार्वर्ड में पढ़ने वाले लगभग 6,800 अंतरराष्ट्रीय छात्रों, जिनमें 788 भारतीय छात्र शामिल हैं, पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। आइए इस पूरे मामले को विस्तार से एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
इसका भारतीय छात्रों पर प्रभाव
2025-26 सत्र से हार्वर्ड में नए विदेशी छात्रों को दाखिला नहीं मिलेगा। इससे भारतीय छात्र, जो हार्वर्ड में पढ़ाई की योजना बना रहे थे, उनको अपने सपनों को बदलना पड़ सकता है। भारत से हर साल सैकड़ों छात्र हार्वर्ड में दाखिला लेते हैं और यह रोक उनके लिए बड़ा झटका है। वर्तमान में हार्वर्ड में पढ़ रहे 788 भारतीय छात्रों को दो विकल्प दिए गए हैं उन्हें अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए किसी अन्य SEVP-प्रमाणित संस्थान में ट्रांसफर करना होगा।
यदि वे ट्रांसफर नहीं करते, तो उनकी कानूनी स्थिति समाप्त हो सकती है, जिसके कारण उन्हें अमेरिका छोड़ना पड़ सकता है। जो छात्र इस सेमेस्टर में स्नातक (ग्रेजुएट) हो रहे हैं, वे अपनी डिग्री पूरी कर सकेंगे, लेकिन बाकी छात्रों को 2025-26 सत्र के लिए अन्य विश्वविद्यालयों में स्थानांतरण करना होगा। ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड को 72 घंटों के भीतर छह शर्तें पूरी करने का निर्देश दिया है, जिनमें पिछले पांच वर्षों में विदेशी छात्रों की गैर-कानूनी गतिविधियों, अनुशासनात्मक रिकॉर्ड और विरोध प्रदर्शनों से संबंधित ऑडियो-वीडियो फुटेज जमा करना शामिल है। यदि हार्वर्ड इन शर्तों को पूरा करता है, तो वह SEVP सर्टिफिकेशन बहाल कर सकता है।
ट्रंप प्रशासन ने क्या लगाए आरोप ?
होमलैंड सिक्योरिटी सचिव क्रिस्टी नोएम ने हार्वर्ड पर यहूदी-विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देने, हिंसा को प्रोत्साहन, और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ समन्वय का आरोप लगाया है। प्रशासन का कहना है कि हार्वर्ड ने विदेशी छात्रों से संबंधित जानकारी देने में विफलता दिखाई है। ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड की $2.2-3 बिलियन की संघीय फंडिंग और $450 मिलियन के अतिरिक्त अनुदान पर भी रोक लगा दी है, जिसे हार्वर्ड ने असंवैधानिक बताया है। हार्वर्ड ने इस फैसले को “गैरकानूनी” और “बदले की भावना” से प्रेरित बताते हुए बोस्टन की फेडरल कोर्ट में मुकदमा दायर किया। 23 मई 2025 को, जज एलिसन बरोज ने ट्रंप प्रशासन के आदेश पर अस्थायी रोक लगा दी, जिससे हार्वर्ड फिलहाल विदेशी छात्रों को दाखिला दे सकता है। इस मामले की अगली सुनवाई मंगलवार को होगी।
भारतीय छात्रों के लिए क्या हैं विकल्प ?
भारतीय छात्रों को अमेरिका के अन्य SEVP-प्रमाणित संस्थानों, जैसे MIT, स्टैनफोर्ड, या येल में दाखिला लेने की सलाह दी गई है। हार्वर्ड ने अपने अंतरराष्ट्रीय छात्रों को हर संभव सहायता का आश्वासन दिया है, जिसमें वीजा और ट्रांसफर प्रक्रिया में मदद शामिल है। हार्वर्ड इंटरनेशनल ऑफिस नियमित अपडेट देगा।यदि छात्र ट्रांसफर नहीं करते और हार्वर्ड शर्तों को पूरा नहीं करता, तो उन्हें अमेरिका छोड़ना पड़ सकता है।
वैश्विक और शैक्षणिक प्रभाव
विदेशी छात्र हार्वर्ड की आय का बड़ा हिस्सा हैं, क्योंकि वे उच्च ट्यूशन फीस देते हैं। इस रोक से यूनिवर्सिटी को वित्तीय नुकसान हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि “यह कदम हार्वर्ड और अमेरिकी उच्च शिक्षा की वैश्विक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकता है।” हालांकि ट्रंप प्रशासन ने संकेत दिया है कि कोलंबिया, प्रिंसटन, और ब्राउन जैसे अन्य विश्वविद्यालय भी ऐसी कार्रवाइयों का सामना कर सकते हैं, यदि वे प्रशासन की नीतियों का पालन नहीं करते।
ट्रंप प्रशासन के फैसले पर अस्थायी रोक !
मैसाचुसेट्स की फेडरल कोर्ट ने 23 मई 2025 को ट्रंप प्रशासन के फैसले पर अस्थायी रोक लगा दी है, जिससे हार्वर्ड को फिलहाल विदेशी छात्रों को दाखिला देने की अनुमति है। हालांकि, यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है, और अगली सुनवाई मंगलवार को होगी। हार्वर्ड ने इस कदम को अमेरिकी संविधान के पहले संशोधन और ड्यू प्रोसेस क्लॉज का उल्लंघन बताया है।
ट्रंप प्रशासन का यह फैसला भारतीय छात्रों के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि हार्वर्ड में पढ़ाई कईयों का सपना होता है। अस्थायी अदालती रोक से कुछ राहत मिली है, लेकिन भविष्य अनिश्चित है। भारतीय छात्रों को अन्य विश्वविद्यालयों में विकल्प तलाशने और हार्वर्ड इंटरनेशनल ऑफिस के अपडेट्स पर नजर रखने की सलाह दी जाती है।