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Home विशेष

बैन पर बैन… फिर भी कैसे चुपके-चुपके हथियार बेच रहा रूस!

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
June 22, 2023
in विशेष, विश्व
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russia
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नई दिल्ली : पिछले साल फरवरी महीने में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया. इससे नाराज अमेरिका और उसके साथी देशों ने रूस पर कई सारे प्रतिबंध लगा दिए. ताकि रूस की आर्थव्यवस्था को कमजोर किया जा सके. मिलिट्री की ताकत को कम किया जा सके. साथ ही रूस नई और आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल न कर सके. अमेरिका ने रूस के खिलाफ लो-टेक और हाईटेक सामानों के निर्यात और इस्तेमाल पर रोक लगा दिया.

इसके बावजूद रूसी कंपनियां प्रतिबंधों को दरकिनार कर विदेशों से आधुनिक तकनीकें आयात कर रहे हैं. जैसे सेमीकंडक्टर्स, यंत्र, हथियार. इस काम में रूस की मदद कर रहे हैं, उसके साथी. जैसे- तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात और अब नया साथी कजाकिस्तान.

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इन अमेरिकी चीजों को प्रतिबंध के बावजूद खरीद और बेंच रहा है रूस

ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (OCCRP) नाम की संस्था की एक रिपोर्ट में रूस की स्मगलिंग का रूट दिया गया है. रूस के हथियार कजाकिस्तान के जरिए आ रहे हैं. इस संस्था में दुनियाभर के इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट शामिल हैं. कजाकिस्तान दो महाद्वीपों के बीच मौजूद है. इसके संबंध पश्चिम और रूस दोनों से अच्छे हैं.

प्रतिबंधों के बावजूद कजाकिस्तान रूस के रक्षा क्षेत्र की सप्लाई का रूट बना हुआ है. यहीं से रूस के हथियार, मिलिट्री इक्विपमेंट, ड्रोन, माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स आते हैं. इनका इस्तेमाल यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में हो रहा है. अमेरिका ने रूस, चीन और ईरान ने तीनों देशों के खिलाफ आपस में किसी भी तरह की तकनीक बांटने पर प्रतिबंध लगा रखा है.

प्रतिबंध में कहा गया है कि जो भी उत्पाद अमेरिका, या अमेरिका के साथी देशों की जमीन पर बना है. चाहे वह कोई यंत्र हो, उसका पार्ट हो या फिर तकनीक हो. इसका इस्तेमाल तीनों ही देश नहीं कर सकते. न ही एकदूसरे की मदद के लिए दे सकते हैं. जहां आमतौर पर दुनियाभर के देश सीमाओं पर सामानों के आने-जाने पर निगरानी रखते हैं. अमेरिका एक कदम आगे बढ़कर पुलिस के साथ मिशन चलाता है. यानी पुलिस भी स्मगलिंग रोकने में मदद करती है. ताकि अमेरिकी तकनीक दुनिया में इधर-उधर न जा पाए.

अवैध व्यापार का अंतर-महाद्वीपीय रूट

कजाकिस्तान में जिन कंपनियां का नया रजिस्ट्रेशन हुआ है. इन नई कंपनियों का इस्तेमाल रूस माध्यम की तरह कर रहा है. एक कंपनी है- एस्पन अर्बा. इसने रूस के लिए ड्रोन्स आयात करवाए. फिर उन्हें रूसी कंपनी स्काई मैकेनिक्स को बेचा. जबकि दोनों ही कंपनियों का मालिक एक ही है.

चीन से कजाकिस्तान फिर रूस

अप्रैल 2022 के अंत में चीनी ड्रोन कंपनी डा-जियांग इनोवेशंस ने रूस और यूक्रेन दोनों को ड्रोन बेचने से मना कर दिया था. ताकि इनका इस्तेमाल युद्ध में न हो. कजाकिस्तान की डिजिटल डेवलपमेंट मिनिस्ट्री ने बताया कि एस्पन अर्बा ने लाइंसेंस लेकर 18 हजार से ज्यादा ड्रोन्स मंगवाए. ये ड्रोन्स चीन डा-चियांग इनोवेशंस की नीदरलैंड स्थित यूरोप बीवी नाम की कंपनी से 45 मिलियन डॉलर्स में खरीदे गए. यानी 369 करोड़ रुपए में.

यूक्रेन पर हमले से पहले कजाकिस्तान में ड्रोन की खरीद-फरोख्त बेहद कम थी. कजाकिस्तान ने पिछले साल 5 मिलियन डॉलर्स यानी 40.96 करोड़ के ड्रोन्स आयात किए. ज्यादातर चीन से. इसमें से 10 करोड़ के ड्रोन्स रूस को एक्सपोर्ट किए गए. माइक्रोचिप्स के आयात में भी भारी इजाफा देखा गया है. साल 2021 में कजाकिस्तान 75 मिलियन डॉलर्स 614 करोड़ रुपए के माइक्रोचिप्स आयात किए गए.

बीच में जर्मन कंपनियां भी कर रही थीं मदद

माइक्रोचिप्स को रूस बेंचा गया. कीमत मिली 70 गुना ज्यादा. पहले कजाकिस्तान के रास्ते रूस के लिए 2.45 लाख डॉलर्स यानी 20 करोड़ रुपए के माइक्रोचिप्स जाते थे. जो अब बढ़कर 18 मिलियन डॉलर्स यानी 147 करोड़ रुपए हो गए हैं. जर्मनी से मिले डेटा के अनुसार यूक्रेन पर हमले से पहले स्टूटगर्ट स्थित जर्मन कंपनी एलिक्स-एसटी ने कजाकिस्तान को कभी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स नहीं बेंचे. लेकिन युद्ध के बाद 5 लाख डॉलर्स के सामान दिए. ये भी रूस चले गए.

2022 से 2023 तक स्थितियां बदल गई. एलिक्स-एसटी कजाकिस्तानी कंपनी डा ग्रुप 22 को लाखों डॉलर्स का इलेक्ट्रॉनिक आइटम भेजती थी. लेकिन बाद में रोक दिया गया. इन सामानों को बड़ी कंपनियां बनाती हैं. जैसे- एनालॉग डिवाइसेस, इनिफियोन, टेक्सास इंस्ट्रूमेंट्स और एसटीमाइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स. लेकिन ये रूस को प्रतिबंध की वजह से नहीं भेजी जातीं. लेकिन कजाकिस्तान अलग-अलग माध्यमों के जरिए रूस तक सेमीकंडक्टर्स जैसी चीजें पहुंचा रहा है.

रूस की मदद करने वाले कई देश है मौजूद

कुछ महीने पहले इंडिया टुडे OSINT ने काफी जांच-पड़ताल करके सीक्रेट चिप डील्स के नेटवर्क का पता लगाया था. जिससे पता चल रहा था कि अमेरिकी टेक्नोलॉजी रूस तक पहुंच रही है. रास्ता है संयुक्त अरब अमीरात और तुर्की की शेल कंपनियां. ये टेक्नोलॉजी खासतौर से सेना के लिए हैं. इतना ही नहीं, क्रेमिलन को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से तकनीकी और रणनीतिक तौर पर मदद मिल रही है. इसमें माध्यम बन रहा है कजाकिस्तान.

टेलिकम्यूनकेशन कंपनी कैस्पियन न्यूज के मुताबिक कजाकिस्तान हथियारों के उत्पादन में भी लगा है. जैसे- नाव, बख्तरबंद वाहन, आर्टिलरी गाड़ियां, मशीन गन, नाइट विजन डिवाइसेस, ग्रैनेड्स, हंटिंग राइफल्स, पिस्टल, रिवॉल्वर्स. कजाकिस्तान की सेना के पास 300 टैंक, 1200 बख्तरबंद वाहन, 408 रॉकेट लॉन्चर्स, 238 मिलिट्री एयरक्राफ्ट, 15 नौसैनिक वेसल और 22 कॉम्बैट हेलिकॉप्टर्स हैं.

इन देशों से मिलता है रूस को सीधा सपोर्ट

कजाकिस्तान, रूस, किर्गिस्तान, आर्मेनिया, बेलारूस और ताजिकिस्तान कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (CSTO) के सदस्य है. यह एक मिलिट्री समझौता है. इसका प्रमुख रूस है. जिसे रूस नाटो की तरह चलाता है. अगर इस संगठन के किसी भी सदस्य पर हमला होता है, तो उसे सभी देशों पर हमला माना जाएगा. हर देश एकदूसरे की मदद करेगा. जरुरत पड़ने पर युद्ध या हमला भी किया जा सकता है.

कजाकिस्तान और रूस के बीच गहरे डिप्लोमैटिक रिश्ते हैं. ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, आर्थिक सहयोग चलता है. लेकिन इनके बावजूद दोनों मिलकर पश्चिमी देशों के खिलाफ खुफिया मिशन चलाते रहते हैं. साथ ही हथियारों का लेन-देन भी करते हैं. कजाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति उसे फायदा पहुंचाती है. वह रूस और चीन के बीच स्थित है. जिसकी वजह से किसी भी वस्तु का आयात-निर्यात आसान हो जाता है.

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