नई दिल्ली : क्या I.N.D.I.A गठबंधन का सपना बिखरने के कगार पर है ? पिछले कुछ दिनों के राजनीतिक घटनाक्रम के देखें तो ऐसा ही लगता है. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच विवाद चरम पर पहुंच चुका है. पंजाब में कांग्रेस विधायक की गिरफ्तारी ने ऐसा ही संकेत मिल रहा है. समाजवादी पार्टी की छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ने की तैयारी , आरजेडी और जेडीयू का रगड़ा, अधीर रंजन और ममता बनर्जी की कलह कुछ ऐसे ही उदारहण हैं जिन्हें देखकर कोई सामान्य आदमी भी यही कहेगा कि विपक्षी एकता 4 दिन की चांदनी है. दूसरी ओर एनडीए गठबंधन लगातार अपना आकार बढ़ा रहा है. जेडीएस का एनडीए में आना और बीजेडी की मोदी सरकार की तारीफ से विपक्ष जरूर हतोत्साहित हुआ होगा.
1- क्या 2019 का भूत विपक्ष के सिर पर सवार है
I.N.D.I.A गठबंधन के बिखरने को लेकर जो आशंकाएं जताई जा रही हैं उसके पीछे विपक्षी एकता का इतिहास भी एक बहुत बड़ा कारण है. 2019 के आम चुनावों के पहले ऐसी कोशिशें हुईं थीं पर यह संभव नहीं हो सका था. तेलुगुदेशम पार्टी के सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू और BRS नेता KCR ने बहुत कोशिश की थी विपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट हो कर चुनाव लड़े.हालांकि तब की परिस्थितियां और आज की राजनीति में बहुत परिवर्तन हो चुका है. इस बार विपक्ष की एका कराने का दम भरने वाले दक्षिण के दोनों शेर शांत हो चुके हैं.उनकी जगह ले चुके हैं राजनीतिक मौसम का नब्ज भांपने के विशेषज्ञ नीतीश कुमार . जिन पर खुद उनकी खास सहयोगी आरजेडी ही भरोसा नहीं रखती.आए दिन नीतीश कुमार को विपक्ष के साथ बने रहने को लेकर बयान देना पड़ता है.
2-नीतीश कुमार पर बढ़ रहा है बीजेपी में आने का दबाव
इंडिया गठबंधन बनने के बाद से ही नीतीश कुमार को लेकर अटकलों का बाजार गर्म रहा है. नीतीश के कन्वेनर बनने को लेकर कभी लालू की बयानबाजी, कभी नीतीश कुमार का जी20 सम्मेलन में पीएम मोदी का साथ आदि से उनके बारे में तरह तरह की कयासबाजी होती रही है. बुधवार को दो घटनाक्रमों ने सियासी चर्चाओं को और तूल दे दिया. राष्ट्रीय लोक जनता दल (RLJP) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि कि जेडीयू में टूट होने वाली है. भले ही एक साथ टूट ना हो… टुकड़ों-टुकड़ों में हो, लेकिन टूट निश्चित है. कुछ ही देर बाद जेडीयू के बड़े नेता रणवीर नंदन का इस्तीफा आ गया उन्होंने कहा कि देश हित में वो चाहते हैं कि नीतीश कुमार और पीएम मोदी एक साथ काम करें. हालांकि रणवीर नंदन पहले भी कहते रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक साथ आना चाहिए.
दरअसल, महागठबंधन में शामिल होने के बाद जेडीयू नेताओं में अंदरखाने असंतुष्ट होने होने की लगातार खबरें आती रही हैं. यही कारण है कि पहले हिंदुस्तान आवाम पार्टी के अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने साथ छोड़ा और एनडीए में शामिल हो गए. उसके बाद उपेंद्र कुशवाहा भी एनडीए का हिस्सा बन चुके हैं.
इसी हफ्ते सोमवार को सीएम नीतीश कुमार ने दीनदयाल उपाध्याय जयंती कार्यक्रम पहुंचकर विपक्ष को हैरान कर दिया था. इसके सियासी मायने निकालने ही थे. हालांकि कार्यक्रम में पहुंचे नीतीश कुमार ने एनडीए में लौटने से इनकार किया है. पर बात जहां तक पहुंचनी थी वहां तक चली ही गई.कहा जा रहा है कि उसी देवी लाल जयंती पर भी कार्यक्रम था पर सीएम वहां नहीं पहुचे.
जेडीयू पार्टी के अंदर से लगातार नीतीश के लिए पीएम कैंडिडेट बनाने की मांग भी उठती रहती है. जिससे कांग्रेस असहज होना स्वभाविक है. कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार की नाराजगी का कारण है कि जिस विपक्षी एकता की उन्होंने कवायद की थी, उसे कांग्रेस ने पूरी तरह से पूरी तरह हाईजैक कर लिया. यही कारण है कि नीतीश कुमार अंदरखाने रणनीतिक दूरी बनाए हुए हैं.
3-कांग्रेस पर संदेह बढ़ रहा है
इंडिया गठबंधन को बनाने की शुरुआत भले ही नीतीश कुमार ने की हो पर कांग्रेस भी इस गठबंधन को लेकर शुरुआती दिनों में बहुत उत्सुक नजर आ रही थी. पर अब लगातार पार्टी ऐसे काम कर रही है जिससे लगता है कि वो खुद इंडिया गठबंधन के लिए विलेन बनने का काम कर रही है. शुरू में कांग्रेस की ओर से ऐसे संकेत दिए गए कि वो बड़े भाई की भूमिका में हर कुर्बानी देने को तैयार रहेगी.पर अब नहीं लगता कि वो किसी तरह का समझौता करने के मूड में है.
कांग्रेस कर्नाटक विजय और मध्य प्रदेश और राजस्थान में अपने पक्ष में आए सर्वे से इतना उत्साहित है कि सहयोगियों के बारे में सोचना ही बंद कर दिया है.मुंबई मीटिंग के बाद यह फैसला हुआ था कि अलायंस की अगली मीटिंग भोपाल में होगी.लेकिन मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेता कमलनाथ के इशारे पर भोपाल में मीटिंग और रैली को स्थगित कर दिया गया.इसकी जानकारी भी इंडिया गठबंधन की ओर से औपचारिक रूप से नहीं दी गई. कहा जाता है कि उदयनिधि के सनातन वाले बयान के बाद कांग्रेस में फूट की स्थित है. कमलनाथ नहीं चाहते कि मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी की छवि सनातन विऱोधियों की बन जाए. सीट शेयरिंग को लेकर भी कांग्रेस जल्दी कोई निर्णय नहीं लेना चाहती.इसके पीछे कांग्रेस की सोच यह है कि मध्यप्रदेश और राजस्थान में यदि कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करती है तो वह अपनी शर्तों पर मोलभाव करने की पोजिशन में होगी.
4-आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का रिश्ता जगजाहिर
आम आदमी पार्टी की हरकतें शुरू से ही ऐसी रही हैं जिससे ऐसा लगता रहा है कि वो इंडिया गठबंधन के लिए खलनायक बन सकती है. पंजाब में कांग्रेस विधायक की किसी मामले में 8 साल बाद गिरफ्तारी का मतलब सीधा है कि सरकार ने खुन्नस में गिरफ्तारी की.कांग्रेस विधायक सुखपाल सिंह खैरा ने बुधवार रात सोशल मीडिया में राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा की शादी की अंगूठी से जुड़ी एक पोस्ट डाल कर कुछ सवाल किए थे. खैरा ने आप सांसद राघव चड्ढा से पूछा था कि आय से 10 गुना अधिक कीमत वाली अंगूठी उन्होंने कैसे दिया ? उसके कुछ घंटों बाद ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है.
पंजाब में आम आदमी पार्टी की इस हरकत का असर इंडिया गठबंधन पर पड़ना तय है. इसके पहले ही कांग्रेस के पूर्व मंत्री भारत भूषण आशु, साधु सिंह धर्मसोत, पूर्व उपमुख्यमंत्री ओपी सोनी, सुंदर शाम अरोड़ा को पंजाब की आप सरकार भ्रष्टाचार के मामलों में जेल भेज चुकी है. संगत सिंह गिलजियां, मनप्रीत सिंह बादल, भरत इंदर चहल के लिए तैयारियां चल रही हैं.विधायक सतकार कौर, कुशलदीप सिंह ढिल्लों को गिरफ्तार किया जा चुका है. करीब एक दर्जन विधायकों के खिलाफ राज्य सरकार जांच करा रही है. पंजाब में कांग्रेस नेता कई बार आलाकमान से आम आदमी पार्टी के साथ किसी भी प्रकार के गठबंधन से चेता चुके हैं.
5-ममता की नाराजगी, समाजवादी पार्टी की महत्वाकांक्षा और वामपंथी
ममता बनर्जी की नाराजगी के बावजूद जाति जनगणना को मुद्दा बनाने, मुंबई में अपने सहयोगियों से बिना बात किए राहुल गांधी का इंडिया के मंच से अडानी का विरोध करने आदि पर ममता ने पहले ही अपना विरोध दर्ज करा चुकी हैं. पश्चिम बंगाल में आए दिन कांग्रेस नेता अधीर रंजन और ममता बनर्जी के बीच वाकयुद्ध ये बताने के लिए काफी है कि विपक्ष अपने इस नए नवेले गठबंधन को लेकर गभीर नहीं है. ममता बनर्जी की विदेश यात्रा पर कांग्रेस के एक बड़े नेता का इस तरह आरोप लगाने के बाद भी एकता की बात करना बहुत बचकानी लगता है.
समाजवादी पार्टी ने भी कांग्रेस शासित राज्य छत्तीसगढ में करीब 40 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना रही है. मध्यप्रदेस में भी सपा चुनाव लड़ना चाहती है.मतलब साफ है कि आगे बहुत लड़ाई है.सीपीएम ने भी गठबंधन के लिए बनने वाली कमेटियों और सब कमेटियों से खुद को दूर करके संकेत दे दिए हैं