स्पेशल डेस्क/पटना : पप्पू यादव, कन्हैया कुमार और तेजस्वी यादव के बीच तल्खी का मुद्दा बिहार की सियासत में बार-बार उभरता है, और इसके पीछे कई राजनीतिक, व्यक्तिगत और रणनीतिक कारण हैं। यह तनाव मुख्य रूप से बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की पृष्ठभूमि में तेजस्वी यादव के नेतृत्व और महागठबंधन की आंतरिक गतिशीलता से जुड़ा है। इस मुद्दे की पूरी रिपोर्ट और कारणों का विश्लेषण एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझिए।
महागठबंधन में नेतृत्व की होड़!
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा माना जा रहा है। RJD बिहार की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है, और तेजस्वी ने खुद को नीतीश कुमार के खिलाफ मुख्य चेहरा स्थापित किया है। पप्पू यादव (पूर्णिया से निर्दलीय सांसद) और कन्हैया कुमार (कांग्रेस नेता) दोनों ही बिहार में अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं। पप्पू यादव का स्थानीय प्रभाव, खासकर पूर्णिया क्षेत्र में, और कन्हैया का युवा व वामपंथी विचारधारा से प्रेरित समर्थन उन्हें महत्वपूर्ण बनाता है। तेजस्वी इन्हें अपने लिए संभावित खतरा मान सकते हैं, क्योंकि इनके उभरने से RJD और तेजस्वी की सियासी जमीन कमजोर हो सकती है।
पप्पू यादव ने खुले तौर पर कहा है कि “महागठबंधन में मुख्यमंत्री का चेहरा चुनाव के बाद तय होना चाहिए, न कि पहले से तेजस्वी को प्रोजेक्ट करना चाहिए। यह बयान तेजस्वी के नेतृत्व को चुनौती देता है।”
तल्खी वोटर लिस्ट संशोधन विरोध (जुलाई 2025)
9 जुलाई को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के खिलाफ महागठबंधन के विरोध मार्च में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव एक ट्रक पर सवार थे। इस दौरान पप्पू यादव और कन्हैया कुमार को ट्रक पर चढ़ने से रोक दिया गया, जिसे सार्वजनिक अपमान के रूप में देखा गया। इस घटना का वीडियो वायरल हुआ और BJP प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने इसे तेजस्वी और कांग्रेस के “परिवारवादी” रवैये का सबूत बताया।
पप्पू यादव ने इस घटना पर भावुक प्रतिक्रिया दी, कहा कि “उन्हें मंच पर चढ़ने से रोका गया और चोट भी लगी, लेकिन इसे बड़ा मुद्दा नहीं बनाना चाहते। इसने उनके और तेजस्वी के बीच तनाव को और उजागर किया।”
इफ्तार पार्टी विवाद (मार्च 2025)
तेजस्वी और पप्पू यादव ने एक ही दिन अलग-अलग जगहों पर इफ्तार पार्टी का आयोजन किया, जिसे दोनों के बीच वोट बैंक (खासकर मुस्लिम समुदाय) को साधने की प्रतिस्पर्धा के रूप में देखा गया। यह घटना पूर्णिया और बायसी जैसे क्षेत्रों में उनकी सियासी जंग को दर्शाती है।
पप्पू यादव और कन्हैया की भूमिका
पप्पू यादव का पूर्णिया और सीमांचल क्षेत्र में मजबूत जनाधार है। उनकी छवि एक जमीनी नेता की है, जो बाहुबल और सामाजिक कार्यों के लिए जाने जाते हैं। हालांकि, RJD और तेजस्वी उन्हें नियंत्रित करना चाहते हैं, ताकि उनकी लोकप्रियता RJD के लिए खतरा न बने। कन्हैया, जो कांग्रेस के स्टार प्रचारक और युवा चेहरा हैं, बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन RJD के दबदबे के कारण उनकी भूमिका सीमित हो रही है। तेजस्वी और लालू यादव की शर्तों पर कांग्रेस को गठबंधन में रहना पड़ रहा है, जिससे कन्हैया को मंच और महत्व नहीं मिल पा रहा।
कांग्रेस को RJD के साथ गठबंधन में रहते हुए पप्पू यादव और कन्हैया जैसे नेताओं को संतुलित करना मुश्किल हो रहा है। तेजस्वी के नेतृत्व को प्राथमिकता देने के लिए कन्हैया और पप्पू को किनारे किया जा रहा है।
तेजस्वी की रणनीति और RJD का वर्चस्व
तेजस्वी यादव RJD को बिहार में विपक्ष का मुख्य चेहरा बनाए रखना चाहते हैं। इसके लिए वे कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों को अपने अधीन रखने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। पप्पू यादव और कन्हैया के बढ़ते प्रभाव को वे RJD के लिए खतरा मानते हैं। तेजस्वी ने अपने पिता लालू यादव के शासनकाल (“जंगल राज”) की नकारात्मक छवि को बदलने के लिए “नौकरी राज” की रणनीति अपनाई है। वे सरकारी नौकरियों और आरक्षण जैसे मुद्दों का श्रेय ले रहे हैं, जिससे पप्पू और कन्हैया जैसे नेताओं की प्रासंगिकता कम हो रही है।
तल्खी का इतिहास लोकसभा और उपचुनाव
2024 के लोकसभा चुनाव और रुपौली विधानसभा उपचुनाव में भी पप्पू यादव और तेजस्वी के बीच तनाव देखा गया। पप्पू ने RJD के उम्मीदवार बीमा भारती के खिलाफ पूर्णिया से निर्दलीय जीत हासिल की, जिसे तेजस्वी के लिए झटका माना गया।
कन्हैया को 2019 में CPI के टिकट पर बेगूसराय से हार का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस में शामिल होने के बाद भी उन्हें RJD के दबाव में सीमित भूमिका दी जा रही है।
पप्पू यादव ने नीतीश कुमार और कांग्रेस के गठबंधन की संभावना जताई और कहा कि “बिहार में चुनाव विकास के बजाय “मार्केटिंग और पैसे” पर लड़ा जाता है, जो तेजस्वी की रणनीति पर अप्रत्यक्ष हमला था।”
मुद्दा बार-बार क्यों उठता है ? वोट बैंक की टकराहट
पप्पू यादव और तेजस्वी दोनों ही यादव, मुस्लिम और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) वोटरों को साधने की कोशिश में हैं। सीमांचल और पूर्णिया में पप्पू का प्रभाव तेजस्वी के लिए चुनौती है। महागठबंधन में RJD का दबदबा और कांग्रेस की सीमित सीटें (लोकसभा में 9 सीटों में से केवल 3) कांग्रेस नेताओं, खासकर कन्हैया और पप्पू, को असहज करती हैं।
2025 विधानसभा चुनाव से पहले तेजस्वी अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हैं, जबकि पप्पू और कन्हैया अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना चाहते हैं। यह टकराव स्वाभाविक रूप से बार-बार सामने आता है।
भविष्य में महागठबंधन की चुनौतियां
तेजस्वी को न केवल नीतीश कुमार और BJP-JDU गठबंधन से लड़ना है, बल्कि महागठबंधन के भीतर एकजुटता बनाए रखना भी चुनौती है। पप्पू और कन्हैया को किनारे करना गठबंधन की एकता को नुकसान पहुंचा सकता है।
पप्पू यादव अपनी पार्टी (जन अधिकार पार्टी) को कांग्रेस में विलय कर चुके हैं और अब कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण हैं। कन्हैया भी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि बना रहे हैं। दोनों ही बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने की कोशिश में हैं, जो RJD के लिए असहज है।
महागठबंधन का वोट बैंक !
अगर यह तल्खी जारी रही, तो महागठबंधन का वोट बैंक बंट सकता है, जिसका फायदा NDA को मिल सकता है। BJP पहले ही जातिगत जनगणना जैसे मुद्दों को हथियार बनाकर विपक्ष को कमजोर करने की रणनीति पर काम कर रही है।
पप्पू यादव और कन्हैया कुमार बनाम तेजस्वी यादव का मुद्दा बिहार की सियासत में नेतृत्व, वोट बैंक और गठबंधन की आंतरिक राजनीति का परिणाम है। तेजस्वी की RJD और महागठबंधन पर पकड़ बनाए रखने की रणनीति, पप्पू की क्षेत्रीय लोकप्रियता और कन्हैया की राष्ट्रीय छवि इस टकराव को बार-बार उभारती है। हाल की घटनाएं, जैसे वोटर लिस्ट विरोध और इफ्तार पार्टी विवाद, इस तल्खी को और बढ़ा रही हैं। अगर महागठबंधन को 2025 में NDA को टक्कर देनी है, तो उसे इन आंतरिक मतभेदों को सुलझाना होगा।