प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली। लगभग चार वर्ष के इंतजार के बाद केंद्र सरकार ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम अर्थात सीएए को देश भर में लागू करके न केवल अपने आलोचकों को चौंकाया है, बल्कि देश अपने लोगों की नागरिकता सुनिश्चित करने की जरूरी दिशा में बढ़ चला है। इस नए कानून का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान जैसे देशों से आने वाले मुस्लिमों को अब भारत में सहजता से नागरिकता नहीं मिलेगी, जबकि इन देशों से आने वाले हिंदू, सिख, ईसाई व अन्य धर्म के लोगों को सहजता से नागरिकता हासिल हो जाएगी। कानून के तहत पात्र लोग नागरिकता के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे। गौर करने की बात है कि पिछले दिनों से अनेक नेता सीएए के लागू होने के संकेत दे रहे थे। यहां तक कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा था कि आम चुनाव से पहले ही सीएए को लागू कर दिया जाएगा। चुनाव की घोषणा के ठीक पहले सीएए को लागू कर सरकार ने अपना एक वादा पूरा कर दिया है।
2019 में पारित हुआ CAA
दरअसल, सीएए एक ऐसा मोर्चा है, जिसे लेकर केंद्र सरकार की आलोचना हो रही थी। सीएए का विरोध करने वाले ज्यादातर लोग शांत थे और अनेक लोग सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहे थे। वाकई, संसद में 11 दिसंबर, 2019 को सीएए पारित हो गया था, और कुछ ही घंटों में कानून को अधिसूचित भी कर दिया गया था, पर इसके लिए नियम तय नहीं हुए थे। कानून बन जाने के बाद नियम तय करना जरूरी होता है और नियम तय करने के लिए सरकार लगातार समय ले रही थी। इस वजह से सरकार की आलोचना भी हो रही थी। बहरहाल, नियम न तय होने से आगे नई लोकसभा में तकनीकी परेशानियां आ सकती थीं, अतः केंद्र सरकार ने चुनाव से ठीक पहले इस कार्य को अंजाम देकर एक तरह से अपना ही अधूरा काम पूरा किया है। अब चुनाव में साफ तौर पर सीएए विरोधियों के पास यह मौका होगा कि वे लोगों के बीच अपनी बात रखें। मतलब, आगामी चुनाव एक तरह से सीएए पर जनमत संग्रह जैसा होगा। यहां यह याद करने की बात है कि सीएए लागू करने का वादा पिछले लोकसभा चुनाव और पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की ओर से उठाया गया प्रमुख मुद्दा था और इससे भाजपा को चुनाव में बहुत फायदा भी हुआ था।
भारतीय नागरिकता लेने का हक!
देश में ऐसे लोगों की संख्या बहुत है, जो मानते हैं कि भारत का विभाजन मुस्लिमों की अलग राष्ट्र की मांग की वजह से हुआ था, अतः जिन मुस्लिमों ने भारत छोड़कर अलग देश में रहना चुना, उन्होंने भारत की नागरिकता मांगने का हक खो दिया। दूसरी ओर, सीएए का विरोध करने वालों का कहना है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुस्लिमों के साथ भारतीय नागरिकता देने में भेदभाव नहीं होना चाहिए। एक तर्क यह भी है कि धर्मनिरपेक्ष भारत में नागरिकता का फैसला किसी की आस्था के आधार पर नहीं होना चाहिए। बहरहाल, अपने देश में धर्म की राजनीति नई नहीं है, इसके पक्ष और विपक्ष में लगभग हर पार्टी राजनीतिक लाभ लेना चाहती है। बेशक, राजनीति से अलग होकर सोचना ज्यादा जरूरी है। जो मजबूर लोग पाकिस्तान या बांग्लादेश से भारत में आए हुए हैं, उनकी समस्याओं का समाधान देश के लिए प्राथमिकता होनी ही चाहिए। भूलना नहीं चाहिए, नागरिकता का तार्किक व मानवीय वितरण इस देश की ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की संस्कृति का अंग है।