स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: भारत का रूस से सस्ता तेल खरीदना एक रणनीतिक और आर्थिक निर्णय है, जिसने हाल के वर्षों में देश की ऊर्जा नीति को काफी प्रभावित किया है। इस विस्तृत रिपोर्ट को एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा के साथ समझेंगे जिसमें 11% डिस्काउंट और अरबों के फायदे के दावे, इसके कारण, प्रभाव और भविष्य की चुनौतियों को शामिल किया गया है।
भारत का रूस से तेल आयात
रूस-यूक्रेन युद्ध (फरवरी 2022) शुरू होने के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए, जिसके चलते रूस ने अपने कच्चे तेल को रियायती दरों पर एशियाई देशों, खासकर भारत और चीन को बेचना शुरू किया। भारत ने इस अवसर का लाभ उठाया और रूस से तेल आयात में भारी वृद्धि की। 2022 से पहले भारत के कुल तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 2% से भी कम थी, जो 2025 तक बढ़कर 35-44% हो गई।
जून 2025 तक भारत रूस से प्रतिदिन 16-18 लाख बैरल कच्चा तेल आयात कर रहा था, जो देश की कुल दैनिक जरूरत का लगभग 35% है।
11% डिस्काउंट और अरबों का फायदा
रूस ने पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण अपने प्रमुख तेल ग्रेड, जैसे यूराल्स (Urals) को वैश्विक बाजार मूल्य (ब्रेंट क्रूड) से कम कीमत पर बेचा। शुरू में भारत को प्रति बैरल 15-20 डॉलर की छूट मिल रही थी, जो बाद में घटकर 4-10 डॉलर प्रति बैरल रह गई। हाल की रिपोर्ट्स में 11% डिस्काउंट का जिक्र है, जो ब्रेंट क्रूड की तुलना में रूसी तेल को 60 डॉलर प्रति बैरल से कम कीमत पर उपलब्ध कराता है, जबकि वैश्विक बाजार में तेल 66-72 डॉलर प्रति बैरल बिक रहा है।
सस्ते तेल ने भारत के आयात बिल को काफी कम किया। उदाहरण के लिए, केयर रेटिंग्स के अनुसार, तेल की कीमत में 1 डॉलर की कमी से भारत का आयात बिल 10,700 करोड़ रुपये कम होता है। 2024-25 में रूस से सस्ता तेल खरीदने से भारत ने अरबों रुपये की बचत की, जिससे व्यापार घाटा जून 2025 में 21.9 अरब डॉलर से घटकर 20.7 अरब डॉलर हो गया।
भारतीय रिफाइनरियों, जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी ने सस्ते रूसी तेल का उपयोग कर रिफाइंड उत्पादों (पेट्रोल, डीजल) का निर्यात बढ़ाया खासकर यूरोप को जिससे उनकी मुनाफा मार्जिन बढ़ी।
भारत क्यों नहीं छोड़ सकता सस्ता रूसी तेल ?
भारत का रूस पर निर्भरता बढ़ने के कई कारण हैं: ऊर्जा सुरक्षा: भारत अपनी कुल तेल जरूरत का 88% आयात करता है। रूस से सस्ता तेल ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करता है और मध्य-पूर्व जैसे भू-राजनीतिक रूप से अस्थिर क्षेत्रों पर निर्भरता कम करता है। सस्ता तेल आयात बिल को कम करता है, जिससे महंगाई नियंत्रित रहती है और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव कम होता है।
भारत ने तेल आयात के लिए स्रोतों का विविधीकरण किया है। रूस के साथ-साथ इराक, सऊदी अरब, और अब अमेरिका से भी तेल आयात बढ़ रहा है, लेकिन रूस की रियायती दरें इसे सबसे आकर्षक बनाती हैं। भारत रूसी तेल को रिफाइन कर यूरोप और अन्य बाजारों में निर्यात करता है, जिससे आर्थिक लाभ और वैश्विक बाजार में उसकी स्थिति मजबूत होती है।
चुनौतियाँ और अमेरिकी दबाव
अमेरिका ने 2025 में एक बिल प्रस्तावित किया, जिसके तहत रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर 500% तक टैक्स लगाया जा सकता है। यह भारत के लिए बड़ी चुनौती है, क्योंकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 50 दिनों की मोहलत दी है, जिसमें भारत को रूस से तेल खरीद कम करने या व्यापारिक टैरिफ का सामना करने को कहा गया है।
रूस से मिलने वाली छूट 15-20 डॉलर से घटकर 4-10 डॉलर प्रति बैरल हो गई है, क्योंकि शिपिंग और बीमा लागत बढ़ गई है। अमेरिका और अन्य देशों से तेल आयात लंबी दूरी के कारण महंगा पड़ता है, जबकि रूस से तेल सस्ता और लचीले भुगतान विकल्पों के साथ उपलब्ध है।
भारत की रणनीति विविधीकरण
भारत रूस के साथ-साथ इराक, सऊदी अरब, और अमेरिका से तेल आयात बढ़ा रहा है, ताकि किसी एक देश पर निर्भरता न रहे। भारत अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता को तेज करने की कोशिश कर रहा है, ताकि रूस से तेल खरीद पर रियायतें हासिल की जा सकें। भारत 2025 तक अपनी तेल शोधन क्षमता को 400 मिलियन मीट्रिक टन प्रतिवर्ष तक बढ़ाने पर काम कर रहा है, ताकि सस्ते तेल का अधिकतम लाभ उठाया जा सके।
भारत का रूस से सस्ता तेल खरीदना एक आर्थिक और रणनीतिक मजबूरी है, जो अरबों रुपये की बचत, महंगाई नियंत्रण, और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करता है। 11% डिस्काउंट ने भारत को वैश्विक तेल बाजार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाया है, लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों और घटती छूट के कारण भविष्य में चुनौतियाँ बढ़ सकती हैं। भारत को सावधानीपूर्वक कूटनीति और विविधीकरण के जरिए इस संतुलन को बनाए रखना होगा।