Siddhartha Shankar Gautam
कांग्रेस की एक महीने पुरानी सिद्धारामैया सरकार कर्नाटक में जबरन धर्मांतरण को रोकनेवाले कानून को खत्म करेगी। सिद्धारमैया सरकार ने फैसला लिया है कि जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए भाजपा सरकार द्वारा 2022 में जो धर्मान्तरण विरोधी कानून बनाया गया था, उसे वापस लेगी। इस कानून के समाप्त होने से कर्नाटक में एक बार फिर जबरन या लालच से धर्मांतरण करने का रास्ता साफ हो जाएगा।
सिद्धारमैया सरकार 3 जुलाई से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र में इससे जुड़ा एक विधेयक पेश करने जा रही है। इसके अलावा कांग्रेस सरकार ने भाजपा-संघ सहित विभिन्न हिंदूवादी संगठनों को येद्दियुरप्पा और बोम्मई सरकार में आवंटित जमीनों को निरस्त करने की कार्रवाई भी शुरू कर दी है।
साथ ही कर्नाटक के स्कूलों में पढ़ाई जा रही संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार और वीर सावरकर की जीवनी को पाठ्यक्रम से निकाल देने का भी फैसला किया है। ऐसी खबरें आ रही हैं कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार गोहत्या निरोधक कानून के सख्त प्रावधानों को भी कमजोर कर सकती है।
धर्मान्तरण विरोधी कानून, 2022 क्या है?
कर्नाटक का धर्मान्तरण विरोधी कानून विशेष रूप से गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से एक धर्म से दूसरे धर्म में अनुचित धर्मान्तरण को रोकने का प्रावधान करता है। ऐसा करने वाले आरोपी को दोषी पाये जाने पर 25 हजार जुर्माने के साथ 3 से 5 साल की सजा का प्रावधान था। जबकि नाबालिगों, महिलाओं, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से जुड़े प्रावधानों के उल्लंघन पर 10 साल की कैद और 50 हजार जुर्माना लगता था।
कर्नाटक की पिछली भाजपा सरकार द्वारा 30 सितंबर, 2022 से लागू किये गये धर्मान्तरण विरोधी कानून को दिसंबर, 2021 में विधानसभा में पारित किया गया था किन्तु विधान परिषद में पेश नहीं किया गया क्योंकि उस समय भाजपा के पास आवश्यक संख्याबल का अभाव था। मई, 2022 में धर्मान्तरण विरोधी कानून को लागू करने के लिए एक अध्यादेश जारी किया गया और सितंबर, 2022 में विधेयक को विधायिका के मानसून सत्र में पुनः प्रस्तुत किया गया जिसमें भाजपा को 75 सदस्यीय विधान परिषद में 41 सदस्यों का स्पष्ट बहुमत मिला। राज्यपाल की संस्तुति के बाद इसे लागू कर दिया गया।
उक्त कानून के तहत कोई भी पीड़ित, उसके परिजन, भाई-बहन या कोई अन्य जो खून के रिश्ते, विवाह अथवा गोद लिए संबंध में हो, वह गैरकानूनी धर्म-परिवर्तन के खिलाफ शिकायत कर सकता है। इस कानून के तहत यदि किसी को धर्म परिवर्तन करना है तो उसे जिलाधिकारी अथवा सक्षम अधिकारी के समक्ष 30 दिन पूर्व लिखित सूचना देना होगी जिससे उस पर आने वाली आपत्तियों एवं विवादों का निर्णय हो सके।
अन्य राज्यों में धर्मान्तरण विरोधी कानून की स्थिति
नवंबर, 2022 को सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने जबरन धर्मांतरण को बेहद गंभीर मुद्दा बताते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा था कि इसे रोकने के उपाय खोजें। चूँकि जबरन धर्मान्तरण का मुद्दा संविधान सभा में भी उठा था किन्तु एकराय न होने के कारण उस पर आगे चर्चा नहीं हुई अतः वही स्थिति समग्र भारत में आज तक बनी हुई है।
धर्मान्तरण को रोकने का कोई केंद्रीयकृत कानून देश में नहीं है। 2018 में लॉ कमिशन की रिपोर्ट के अनुसार स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिश इंडिया में भी जबरन धर्मान्तरण को रोकने का कोई कानून नहीं था किन्तु उस समय कोटा, बीकानेर, जोधपुर, रायगढ़, पटना, सरगुजा, उदयपुर और कालाहांडी जैसी दर्जनभर रियासतों में अपने-अपने कानून थे जो स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अप्रासंगिक हो गए।
हालांकि स्वतंत्र भारत में जबरन धर्मान्तरण को रोकने के लिए 1954 में लोकसभा में एक बिल प्रस्तुत हुआ था जो पारित नहीं हो सका। इसके पश्चात 1960 और 1979 में भी बिल आए पर वे तुष्टिकरण की राजनीति की भेंट चढ़ गए। इसके अलावा 10 मई, 1995 को सरला मुद्गल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने धर्म के दुरुपयोग को रोकने के लिए धर्म परिवर्तन पर कानून बनाने की संभावनाएं तलाशने को कहा था किन्तु इस बार भी कुछ नहीं किया गया। हाँ, उड़ीसा (1967 से लागू), मध्य प्रदेश (1968 से लागू, 2021 में संशोधित), अरुणाचल प्रदेश (1978 से लागू), छत्तीसगढ़ (2000 में नया राज्य बनने के बाद मप्र का 1968 का कानून लागू), गुजरात (2003 से लागू, 2021 में संशोधित), झारखण्ड (2017 से लागू), उत्तराखंड (2018 से लागू), हिमाचल प्रदेश (2019 से लागू), उत्तर प्रदेश (2020 से लागू) और कर्नाटक (2022 से लागू, अब संशोधन प्रस्तावित) में धर्मान्तरण निषेध कानून हैं किन्तु इनमें जुर्माने तथा सजा के अलग-अलग प्रावधान हैं जिसे लेकर राजनीति चरम पर रहती है।
कांग्रेस का तुष्टिकरण क्या स्वीकार्य है?
विश्व के कई देशों में धर्मान्तरण विरोधी कानून हैं। पड़ोसी देशों की बात करें तो पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका और भूटान में जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून हैं। पाकिस्तान में जहां जबरन धर्म परिवर्तन के सबसे अधिक मामले सामने आते हैं वहां सबसे कठोर कानून है। पाकिस्तान में 18 वर्ष से कम उम्र के लोग अपना धर्म नहीं बदल सकते। इसके अलावा पाकिस्तान में जबरन धर्मान्तरण पर 5 साल की कैद से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। नेपाल में जबरन धर्मान्तरण पर 6 साल तक की सजा, म्यांमार में 2 साल और श्रीलंका में 7 साल तक की सजा हो सकती है। भूटान के कानून में सजा का उल्लेख नहीं है किन्तु यहां भी जबरन धर्मान्तरण कानून विरुद्ध है।
ऐसे में यह विचारणीय है कि घोषित तौर पर इस्लामिक, बौद्ध राष्ट्रों में जबरन धर्मान्तरण के विरुद्ध कानून हैं किन्तु विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में एकसम्मत कानून नहीं है और जिन राज्यों में कानून हैं वहां भी कांग्रेस सत्ता में आने के बाद उन्हें या तो कमजोर कर रही है अथवा उन्हें निरस्त करना चाहती है। धर्मांतरण विरोधी कानून वापस लेने के बाद कर्नाटक सरकार के दो और बड़े फैसलेधर्मांतरण विरोधी कानून वापस लेने के बाद कर्नाटक सरकार के दो और बड़े फैसले
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी मोहब्बत से नफरत को हराने की बात करते हैं लेकिन इस मोहब्बत की आड़ में जो धोखाधड़ी और साजिशें होती हैं, उस पर वो और उनकी पार्टी चुप रहती है। कर्नाटक में मुस्लिम वोटबैंक और क्रिश्चियन समर्थन का कर्ज उतारने के लिए भले ही सिद्धारमैया जबरन धर्मांतरण को बढ़ावा देने जा रहे हैं लेकिन इसका असर केवल कर्नाटक तक नहीं रहेगा। इस साल होनेवाले विधानसभा चुनावों और अगले साल लोकसभा चुनाव में धर्मांतरण से मोहब्बत पर सवाल जरूर उठेंगे। देखना यह है कि कांग्रेस अपने सॉफ्ट हिन्दुइज्म का बचाव कैसे करती है।
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।