नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने बलात्कार के आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए अहम टिप्पणी की, जिसमें यौन शोषण और सहमति के विषय पर एक स्पष्ट और सशक्त संदेश दिया गया है। अदालत ने यह माना कि किसी व्यक्ति की शारीरिक सहमति को उसके निजी पलों के दुरुपयोग, शोषण, या अपमानजनक तरीके से प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालत ने कहा कि सहमति केवल शारीरिक संबंध तक सीमित नहीं हो सकती, और इसका मतलब यह नहीं है कि किसी व्यक्ति को धमकाकर या ब्लैकमेल करके उसकी तस्वीरें या वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करने का अधिकार मिल जाता है।
HC ने आरोपी को नहीं दी राहत
इस मामले में आरोपी का यह कहना कि यह एक ‘दोस्ती का मामला’ था, लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि बाद के कृत्य स्पष्ट रूप से दुर्व्यवहार और शोषण की रणनीति को दर्शाते हैं। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि ऋण लेनदेन या व्यक्तिगत रिश्तों के बहाने किसी का शोषण करना बिल्कुल अस्वीकार्य है। इसके अलावा, अदालत ने यह भी ध्यान दिलाया कि शिकायतकर्ता के पेशेवर या व्यक्तिगत जीवन से संबंधित किसी भी पहलू को उसके खिलाफ आरोपों की गंभीरता को कम करने के लिए इस्तेमाल करना गलत है, जब तक कि उससे संबंधित कोई अवैध गतिविधि का प्रमाण न हो।
किया जाएगा कठोर दंडित
इस फैसले से यह साफ हो गया कि सहमति का मतलब किसी को मानसिक या शारीरिक शोषण का शिकार बनने की अनुमति नहीं है, और इसका उल्लंघन करने पर कठोर दंडित किया जाएगा। यह निर्णय महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए एक अहम कदम है और समाज में ऐसे अपराधों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में सहायक होगा।