Upgrade
पहल टाइम्स
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
No Result
View All Result
पहल टाइम्स
No Result
View All Result
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • ईमैगजीन
Home राष्ट्रीय

जनजाति समाज का भारत के आर्थिक विकास में योगदान

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
November 23, 2022
in राष्ट्रीय, विशेष
A A
जनजाति समाज
21
SHARES
685
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp

प्रहलाद सबनानी


भारत भूमि का एक बड़ा हिस्सा वनों एवं जंगलों से आच्छादित है। भारतीय नागरिकों को प्रकृति का यह एक अनोखा उपहार माना जा सकता है। इन वनों एवं जंगलों की देखभाल मुख्य रूप से जनजाति समाज द्वारा की जाती रही है। जनजाति समाज की विकास यात्रा अपनी भूख मिटाने एवं अपने को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से केवल वनों के इर्द गिर्द चलती रहती है। वास्तविक अर्थों में इसीलिए जनजाति समाज को धरतीपुत्र भी कहा जाता है। प्राचीन काल से केवल प्रकृति ही जनजाति समाज की सम्पत्ति मानी जाती रही है, जिसके माध्यम से उनकी सामाजिक, आर्थिक एंव पारिस्थितिकीय आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहती है। ऐसा कहा जाता है कि अनादि काल से जनजाति संस्कृति व वनों का चोली दामन का साथ रहा है और जनजाति समाज का निवास क्षेत्र वन ही रहे हैं। इस संदर्भ में यह भी कहा जा सकता है कि वनों ने ही जनजातीय जीवन एंव संस्कृति के उद्भव, विकास तथा संरक्षण में अपनी आधारभूत भूमिका अदा की है। भील वनवासियों का जीवन भी वनों पर ही आश्रित रहता आया है। जनजाति समाज अपनी आजीविका के लिए वनों में उत्पन्न होने वाली विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उपयोग करते रहे हैं।

इन्हें भी पढ़े

nisar satellite launch

NISAR : अब भूकंप-सुनामी से पहले बजेगा खतरे का सायरन!

July 30, 2025
भारत का व्यापार

ट्रंप का 20-25% टैरिफ: भारत के कपड़ा, जूता, ज्वेलरी उद्योग पर असर, निर्यात घटने का खतरा!

July 30, 2025
parliament

ऑपरेशन सिंदूर: संसद में तीखी बहस, सरकार की जीत या विपक्ष के सवाल? 7 प्रमुख हाई पॉइंट्स

July 30, 2025
UNSC

पहलगाम हमला : UNSC ने खोली पाकिस्तान की पोल, लश्कर-ए-तैयबा की संलिप्तता उजागर, भारत की कूटनीतिक जीत !

July 30, 2025
Load More

भारतीय वन क्षेत्रों में पाए जाने वाले प्रमुख वनस्पतियों, पेड़ों एवं उत्पादित वस्तुओं में शामिल रहे हैं बबूल, बेर, चन्दन, धोक, धामन, धावडा़, गुदी, हल्दू, इमली, जामुन, कजरी, खेजडी़, खेडा़, कुमटा, महुआ, नीम, पीपल, सागवान, आम, मुमटा, सालर, बानोटीया, गुलर, बांस, अरीठा, आंवला, गोंद, खेर, केलडी, कडैया, आवर, सेलाई वृक्षों से करा, कत्था, लाख, मौम, धोली व काली मुसली, शहद, आदि। इनमें से कई वनस्पतियों की तो औषधीय उपयोगिता है। कुछ जड़ीबूटियों जैसे आंवला का बीज, हेतडी़, आमेदा, आक, करनीया, ब्राह्मी, बोहडा़, रोंजडा, भोग पत्तियां, धतुरा बीज, हड, भुजा, कनकी बीज, मेंण, अमरा, कोली, कादां, पडूला, गीगचा, इत्यादि का उपयोग रोगों के निवारण के लिए किया जाता रहा है। आमेदा के बीजों को पीसकर खाने से दस्त बंद हो जाते हैं। अरण्डी के तेल से मालिश एंव पत्तों को गर्म करके कमर में बांधने से दर्द कम हो जाता है। बुखार को ठीक करने के लिए कड़ा वृक्ष के बीजों को पीस कर पीते हैं। जोडों में दर्द ठीक करने के लिए ग्वार व सैजने के गोंद का उपयोग करते हैं। फोडे फुन्सियों एवं चर्म रोग को ठीक करने के लिए नीम के पत्तों को उबालकर पीते हैं। इसके अलावा तुलसी, लौंग, सोठ, पीपल, काली मिर्च का उपयोग बुखार एवं जुखाम ठीक करने के लिए किया जाता है।

शुरुआती दौर में तो जनजाति समाज उक्त वर्णित वनस्पतियों एवं उत्पादों का उपयोग केवल स्वयं की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही करते रहे हैं परंतु हाल ही के समय में इन वनस्पतियों का उपयोग व्यावसायिक रूप से भी किया जाने लगा है। व्यावसायिक रूप से किए जाने वाले उपयोग का लाभ जनजाति समाज को न मिलकर इसका पूरा लाभ समाज के अन्य वर्गों के लोग ले रहे हैं। उक्त वनस्पतियों एवं उत्पादों का व्यावसायिक उपयोग करने के बाद से ही प्रकृति का दोहन करने के स्थान पर शोषण किया जाने लगा है क्योंकि कई उद्योगों द्वारा उक्त उत्पादों का कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाने लगा है। इससे ध्यान में आता है कि जनजाति समाज द्वारा देश की अर्थव्यवस्था में विकास को गति देने के उद्देश्य से अपनी भूमिका का निर्वहन तो बहुत सफल तरीके से किया जाता रहा है परंतु अर्थव्यवस्था के विकास का लाभ जनजातियों तक सही मात्रा में पहुंच नहीं सका है।

हालांकि भारत में प्राचीन काल से ही जनजाति समाज जंगलों में अपना जीवन यापन करता रहा है और वनोपज (जैसे मध्यप्रदेश में तेन्दु पत्ता को एकत्रित करना) को एकत्रित करता रहा है परंतु अब धीरे धीरे अपने आप को यह समाज कृषि कार्य एवं पशुपालन जैसे अन्य कार्यों में भी संलग्न करने लगा है। जनजाति समाज ने बिना किसी भय के सघन वनों में जंगली जानवरों व प्राकृतिक आपदाओं से लड़ते हुए अपने जीवन को संघर्षमय बनाया है। जनजाति समाज ने कृषि कार्य के लिए सर्वप्रथम जंगलों को काटकर जलाया। भूमि साफ कर इसे कृषि योग्य बनाया और पशुपालन को प्रोत्साहन दिया। विकास की धारा में आगे बढ़ते हुए धीरे-धीरे विभिन्न गावों एवं कस्बों का निर्माण किया।

आज भी जनजाति समाज की अधिकांश जनसंख्या दुर्गम क्षेत्रों में निवास करती है। इन इलाकों में संचार माध्यमों का अभाव है। हालांकि धीरे धीरे अब सभी प्रकार की सुविधाएं इन सुदूर इलाकों में भी पहुंचाई जा रही हैं। परंतु, अभी भी जनजातीय समाज कृषि सम्बन्धी उन्नत विधियों से अनभिज्ञ है। सिंचाई साधनों का अभाव एवं उपजाऊ भूमि की कमी के कारण ये लोग परम्परागत कृषि व्यवस्था को अपनाते रहे हैं और इनकी उत्पादकता बहुत कम है।

जनजाति समाज ने वनों के सहारे अपनी संस्कृति को विकसित किया। घने जंगलों में विचरण करते हुए उन्होंने जंगली जानवरों शेर, भालु, सुअर, गेंडे, सर्प, बिच्छु आदि से बचने के लिए आखेट का सहारा लिया। वनों एवं पहाडियों के आन्तरिक भागों में रहते हुए भील समाज शिकार करके अपनी आजीविका चलाता रहा है। भील समाज जंगलों में झूम पद्धति से खेती, पशुपालन, एवं आखेट कर अपने परिवार का पालन पोषण करते रहे हैं।

घने जंगलों में जनजाति समाज को प्रकृति द्वारा, स्वछंद वातावरण, स्वच्छ जल, नदियां, नाले, झरने, पशु पक्षियों का कोलाहल, सीमित तापमान, हरियाली, आर्द्रता, समय पर वर्षा, मिटटी कटाव से रोक, आंधी एंव तूफानों से रक्षा, प्राकृतिक खाद, बाढ़ पर नियंत्रण, वन्य प्राणियों का शिकार व मनोरंजन इत्यादि प्राकृतिक रूप से उपलब्ध कराया जाता रहा है। इसी के चलते जनजाति समाज घने जंगलों में भी बहुत संतोष एवं प्रसन्नता के साथ रहता है।

जनजाति समाज आज भी भारतीय संस्कृति का वाहक माना जाता है क्योंकि यह समाज सनातन हिंदू संस्कृति का पूरे अनुशासन के साथ पालन करता पाया जाता है। जनजाति समाज आज भी आधुनिक चमक दमक से अपने आप को बचाए हुए है। इसके विपरीत शहरों में रहने वाला समाज समय समय पर भारतीय परम्पराओं में अपनी सुविधानुसार परिवर्तन करता रहता है।

हाल ही के समय में अत्यधिक आर्थिक महत्वकांक्षा के चलते वनों का अदूरदर्शितापूर्ण ढंग से शोषण किया जा रहा है। विश्व पर्यावरण एवं विकास आयोग के अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष 110 लाख हैक्टर भूमि के वन नष्ट किये जा रहे है। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार प्रत्येक देश में उपलब्ध भूमि के लगभग 33 प्रतिशत भाग पर वन होना आवश्यक है। यदि वनों का इस प्रकार कटाव होता रहेगा तो जनजाति समाज पर विपरीत प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही है।

भारत द्वारा इस संदर्भ में कई प्रयास किए जा रहे हैं। देश में वनों के कटाव को रोकने के लिए वर्ष 2015 एवं 2017 के बीच देश में पेड़ एवं जंगल के दायरे में 8 लाख हेक्टेयर भूमि की वृद्धि दर्ज की है। साथ ही, भारत ने वर्ष 2030 तक 2.10 करोड़ हेक्टेयर जमीन को उपजाऊ बनाने के लक्ष्य को बढ़ाकर 2.60 करोड़ हेक्टेयर कर दिया है ताकि वनों के कटाव को रोका जा सके।

भारत में सम्पन्न हुई वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में अनुसूचित जनजातियों की कुल जनसंख्या 10.43 करोड़ है, जो भारत की कुल जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत है। जनजाति समाज को देश के आर्थिक विकास में शामिल करने के उद्देश्य से केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं ताकि इस समाज की कठिन जीवनशैली को कुछ हद्द तक आसान बनाया जा सके।

 

 

 

इन्हें भी पढ़ें

  • All
  • विशेष
  • लाइफस्टाइल
  • खेल
Jagannath Rath Yatra

कब शुरू होगी जगन्नाथ रथ यात्रा ? आषाढ़ की इस पावन यात्रा में मिले मोक्ष का आलिंगन !

June 16, 2025

तेल के खेल में नया खेला!

July 11, 2022
Honey Trap

किस तरह ISI के जाल में फंस जाते हैं अधिकारी से लेकर साइंटिस्ट तक!

May 28, 2023
पहल टाइम्स

पहल टाइम्स का संचालन पहल मीडिया ग्रुप्स के द्वारा किया जा रहा है. पहल टाइम्स का प्रयास समाज के लिए उपयोगी खबरों के प्रसार का रहा है. पहल गुप्स के समूह संपादक शूरबीर सिंह नेगी है.

Learn more

पहल टाइम्स कार्यालय

प्रधान संपादकः- शूरवीर सिंह नेगी

9-सी, मोहम्मदपुर, आरके पुरम नई दिल्ली

फोन नं-  +91 11 46678331

मोबाइल- + 91 9910877052

ईमेल- pahaltimes@gmail.com

Categories

  • Uncategorized
  • खाना खजाना
  • खेल
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • दिल्ली
  • धर्म
  • फैशन
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • विश्व
  • व्यापार
  • साक्षात्कार
  • सामाजिक कार्य
  • स्वास्थ्य

Recent Posts

  • कलियुग में कब और कहां जन्म लेंगे भगवान कल्कि? जानिए पूरा रहस्य
  • NISAR : अब भूकंप-सुनामी से पहले बजेगा खतरे का सायरन!
  • देश पहले खेल बाद में, EaseMyTrip ने WCL भारत-पाकिस्तान मैच से प्रायोजन हटाया, आतंक के खिलाफ मजबूत रुख अपनाया।

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.

  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.