स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर की 18 जून को व्हाइट हाउस में हुई मुलाकात ने भारत और पाकिस्तान में व्यापक चर्चा और बहस को जन्म दिया है। यह मुलाकात ऐसे समय में हुई है, जब भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव, खासकर मई 2025 में “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद और पश्चिम एशिया में इजरायल-ईरान संघर्ष के संदर्भ में वैश्विक और क्षेत्रीय भू-राजनीति में महत्वपूर्ण मानी जा रही है। आइए इस मुलाकात के बाद भारत और पाकिस्तान में चल रही चर्चाओं और इसके निहितार्थों की विशेष रिपोर्ट एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
कूटनीतिक चिंताएँ और सवाल
भारत में इस मुलाकात को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है, क्योंकि जनरल आसिम मुनीर को भारत कश्मीर में भड़काऊ बयानबाजी और आतंकवाद को बढ़ावा देने का जिम्मेदार मानता है। खास तौर पर, 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम की बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले, जिसमें निर्दोष भारतीय पर्यटकों की हत्या हुई थी, को भारत ने मुनीर से जोड़ा है। इसके जवाब में भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” शुरू किया था, जिसके बाद 10 मई को भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम हुआ।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस मुलाकात को भारतीय कूटनीति की “असफलता” करार दिया। उन्होंने दावा किया कि ट्रंप का यह कदम “नमस्ते ट्रंप” द्वारा “हाउडी मोदी” को “तिहरा झटका” है। रमेश ने सवाल उठाया कि क्या यही कारण है कि ट्रंप ने G7 शिखर सम्मेलन को जल्दी छोड़ दिया और पीएम मोदी को “गले लगाने” से इनकार किया।
भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने स्पष्ट किया कि “मई 2025 में भारत-पाकिस्तान युद्धविराम दोनों देशों की सेनाओं के बीच बातचीत से हुआ, न कि अमेरिकी मध्यस्थता से। भारत ने कश्मीर मुद्दे पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को बार-बार खारिज किया है।
ट्रंप के दावों पर विवाद
ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम करवाया और दोनों देशों के नेतृत्व (मोदी और मुनीर) को “युद्ध टालने” के लिए “स्मार्ट” बताया। भारत ने इस दावे का खंडन किया है।
ट्रंप ने यह भी कहा कि “वह पीएम मोदी के साथ हाल ही में बातचीत कर चुके हैं और भारत के साथ व्यापार समझौते पर काम कर रहे हैं। हालांकि, भारत ने स्पष्ट किया कि कोई हालिया मुलाकात नहीं हुई, और ट्रंप का न्योता पीएम मोदी ने पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों के कारण ठुकरा दिया था।
पाक को सैन्य और आर्थिक सहायता !
भारत में विश्लेषकों का मानना है कि “ट्रंप की मुनीर से मुलाकात का मकसद इजरायल-ईरान युद्ध में पाकिस्तान को रणनीतिक साझेदार बनाना हो सकता है। अमेरिका को पाकिस्तान के सैन्य अड्डों और भू-रणनीतिक स्थिति की जरूरत है, खासकर अगर वह ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई में शामिल होता है। यह भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक सहायता मिलने से क्षेत्रीय संतुलन प्रभावित हो सकता है।
मुनीर ने दावा किया कि “पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर के जवाब में भारत के 70% साइबर ग्रिड को हैक कर लिया और भारतीय रेलवे नेटवर्क पर साइबर हमले किए। भारत ने इन दावों को “खोखला” करार दिया है।”
कूटनीतिक जीत के रूप में प्रचार
पाकिस्तान में इस मुलाकात को एक बड़ी कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। पाकिस्तानी सेना की मीडिया विंग (ISPR) ने दावा किया कि “यह मुलाकात दो घंटे से अधिक समय तक चली और क्षेत्रीय शांति व आतंकवाद विरोधी सहयोग पर चर्चा हुई। पाकिस्तान इसे अमेरिका के साथ रिश्तों में “नए दौर” की शुरुआत मान रहा है।
पाकिस्तानी अखबार डॉन ने बताया कि “इस मुलाकात को गैर-पारंपरिक चैनलों (सलाहकारों, बिजनेसमैन, और लॉबिंग फर्मों) के जरिए संभव बनाया गया, जिसे मुनीर ने खुली मुलाकात के रूप में चाहा ताकि भारत और इमरान खान समर्थकों को संदेश दिया जा सके।
ईरान-इजरायल युद्ध में भूमिका
पाकिस्तान में इस मुलाकात को इजरायल-ईरान युद्ध के संदर्भ में देखा जा रहा है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका पाकिस्तान को ईरान के खिलाफ अपनी रणनीति में शामिल करना चाहता है, जिसमें सैन्य अड्डों, रसद, और समुद्री मार्गों तक पहुंच शामिल हो सकती है। हालांकि, पाकिस्तान की नागरिक सरकार ने ईरान का समर्थन किया है, जबकि मुनीर की कट्टर इस्लामिक छवि और इजरायली लॉबी से कथित मुलाकातों ने सवाल उठाए हैं।
पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने इजरायल पर परमाणु हमले की धमकी के दावों को खारिज किया, लेकिन देश में यह बहस चल रही है कि क्या पाकिस्तान ईरान का साथ देगा या अमेरिका का।
नोबेल शांति पुरस्कार की मांग
मुनीर की अमेरिका यात्रा के दौरान वाशिंगटन में प्रवासी पाकिस्तानियों और इमरान खान की पार्टी (PTI) समर्थकों ने उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए, उन्हें “पाकिस्तानियों का कातिल” और “इस्लामाबाद का कातिल” कहा। यह प्रदर्शन उनकी सैन्य नीतियों और इमरान खान के दमन के खिलाफ था। मुनीर ने ट्रंप को भारत-पाकिस्तान युद्धविराम के लिए नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने की मांग की, जिसे पाकिस्तान में प्रचारित किया गया। हालांकि, भारत ने इस दावे का खंडन किया है।
यह मुलाकात व्हाइट हाउस के कैबिनेट रूम में एक निजी लंच के रूप में हुई, जिसमें प्रेस को अनुमति नहीं थी। यह पहली बार था जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने बिना नागरिक अधिकारियों की मौजूदगी में पाकिस्तानी सेना प्रमुख की मेजबानी की। मुलाकात में आतंकवाद विरोधी सहयोग, क्षेत्रीय स्थिरता, और इजरायल-ईरान युद्ध पर चर्चा हुई। ट्रंप ने पाकिस्तान को क्षेत्रीय शांति में “महत्वपूर्ण खिलाड़ी” बताया।
रणनीतिक उद्देश्य और अमेरिका का हित
विश्लेषकों का मानना है कि “अमेरिका पाकिस्तान को ईरान के खिलाफ रणनीति में शामिल करना चाहता है, खासकर सैन्य अड्डों और भू-रणनीतिक स्थिति के लिए। ट्रंप ने कथित तौर पर सैन्य ठिकानों और बंदरगाहों तक पहुंच मांगी, बदले में आधुनिक सैन्य तकनीक और वित्तीय सहायता की पेशकश की।
आर्थिक संकट और 960 अरब डॉलर के कर्ज के बोझ तले दबा पाकिस्तान अमेरिका से सैन्य और आर्थिक मदद चाहता है। अमेरिका को पाकिस्तान की चीन के साथ बढ़ती नजदीकी (CPEC और सैन्य सहयोग) पर चिंता है, और वह पाकिस्तान को अपने पक्ष में लाना चाहता है।
भारत-पाकिस्तान तनाव
ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान को “दो परमाणु शक्तियां” बताते हुए युद्धविराम के लिए दोनों की तारीफ की, लेकिन भारत ने मध्यस्थता के दावे को खारिज कर दिया। भारत में इस मुलाकात को अमेरिका की “दोहरी नीति” के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि वह एक तरफ भारत के साथ व्यापार समझौते की बात करता है और दूसरी तरफ पाकिस्तान को रणनीतिक महत्व दे रहा है।
कूटनीतिक चुनौती और अमेरिका की दोहरी नीति
ट्रंप और मुनीर की मुलाकात ने भारत और पाकिस्तान में अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न की हैं। भारत में इसे कूटनीतिक चुनौती और अमेरिका की दोहरी नीति के रूप में देखा जा रहा है, जबकि पाकिस्तान इसे अपनी सैन्य और कूटनीतिक ताकत की जीत मान रहा है। इस मुलाकात का मुख्य फोकस इजरायल-ईरान युद्ध और क्षेत्रीय स्थिरता रहा, लेकिन भारत-पाकिस्तान तनाव और कश्मीर जैसे मुद्दों ने भी चर्चा में जगह बनाई। भारत ने अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को खारिज किया है, जबकि पाकिस्तान इस मुलाकात को अपने लिए रणनीतिक और आर्थिक अवसर के रूप में देख रहा है।
यह मुलाकात वैश्विक भू-राजनीति में एक नए समीकरण की ओर इशारा करती है, जिसमें अमेरिका पाकिस्तान को फिर से अपने रणनीतिक साझेदार के रूप में देख रहा है, खासकर ईरान के खिलाफ। भारत के लिए यह सतर्कता और कूटनीतिक सावधानी बरतने का समय है।