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डॉलर की कमजोरी… ट्रंप के लिए निर्यात का वरदान, मुद्रास्फीति, वैश्विक विश्वास का जोखिम !

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
June 4, 2025
in विशेष, विश्व
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tariff war
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स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: हाल के महीनों में अमेरिकी डॉलर की कमजोरी ने वैश्विक आर्थिक मंच पर चर्चा का केंद्र बनाया है, खासकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों और उनके दूसरे कार्यकाल (2025) के संदर्भ में। ट्रंप ने बार-बार कमजोर डॉलर की वकालत की है, यह दावा करते हुए कि यह अमेरिकी निर्यात को बढ़ावा देगा और व्यापार घाटे को कम करेगा। हालांकि, डॉलर की कमजोरी के उनके प्रशासन की नीतियों, विशेष रूप से टैरिफ और व्यापार युद्ध के साथ जटिल संबंध हैं। यह रिपोर्ट डॉलर की कमजोरी के ट्रंप के लिए संभावित लाभों, इसके कारणों और वैश्विक व अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।

“लिबरेशन डे” टैरिफ की घोषणा

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2025 में, विशेष रूप से ट्रंप के 2 अप्रैल, 2025 को “लिबरेशन डे” टैरिफ की घोषणा के बाद, अमेरिकी डॉलर में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई। डॉलर इंडेक्स (DXY), जो डॉलर को यूरो, येन और अन्य प्रमुख मुद्राओं की टोकरी के मुकाबले मापता है, 2025 में 8% तक गिर गया, जो अप्रैल 2022 के बाद का सबसे निचला स्तर है। यह गिरावट पारंपरिक आर्थिक अपेक्षाओं के विपरीत थी, क्योंकि टैरिफ आमतौर पर डॉलर को मजबूत करते हैं। इसके बजाय, ट्रंप की नीतियों, जैसे व्यापक टैरिफ, फेडरल रिजर्व की स्वतंत्रता पर हमले, और नीतिगत अनिश्चितता, ने निवेशकों का विश्वास हिलाया, जिससे डॉलर कमजोर हुआ।

ट्रंप के लिए डॉलर की कमजोरी

ट्रंप ने लंबे समय से कमजोर डॉलर की वकालत की है, यह तर्क देते हुए कि यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र, के लिए फायदेमंद है। निम्नलिखित बिंदु बताते हैं कि डॉलर की कमजोरी उनके प्रशासन के लिए कैसे लाभकारी हो सकती है।

कमजोर डॉलर अमेरिकी सामानों को विदेशी बाजारों में सस्ता बनाता है, जिससे निर्यात बढ़ सकता है। ट्रंप का मानना है कि इससे अमेरिका का व्यापार घाटा, जो नवंबर 2024 तक 78 बिलियन डॉलर था, कम होगा। उदाहरण के लिए, 2017 में ट्रंप ने कहा था, “हमारी मुद्रा बहुत मजबूत है और यह हमें मार रही है,” यह दावा करते हुए कि मजबूत डॉलर अमेरिकी कंपनियों को विदेशी बाजारों में प्रतिस्पर्धा करने में बाधा डालता है। कमजोर डॉलर से विनिर्माण क्षेत्र, जैसे ऑटोमोबाइल, इस्पात, और प्रौद्योगिकी उत्पाद, को बढ़ावा मिल सकता है, जो ट्रंप की “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” (MAGA) नीति का मुख्य लक्ष्य है।

विनिर्माण और नौकरियों का पुनर्जनन

ट्रंप की टैरिफ नीति और कमजोर डॉलर का संयोजन अमेरिकी विनिर्माण को पुनर्जनन करने का लक्ष्य रखता है। 2023 में अमेरिकी विनिर्माण वैश्विक उत्पादन का केवल 17.4% था, जो 2001 के 28.4% से काफी कम है। कमजोर डॉलर से अमेरिकी सामान सस्ते होने के कारण विदेशी कंपनियां अमेरिका में उत्पादन स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित हो सकती हैं, जिससे घरेलू नौकरियां बढ़ेंगी।

टैरिफ नीति को समर्थन

ट्रंप ने 10% सामान्य टैरिफ और कुछ देशों (जैसे चीन पर 60%) पर उच्च टैरिफ की घोषणा की है। कमजोर डॉलर इन टैरिफ के प्रभाव को संतुलित कर सकता है, क्योंकि यह आयातित सामानों की कीमत को और बढ़ने से रोकता है। यह नीति ट्रंप के व्यापार युद्ध को समर्थन देती है, क्योंकि यह अन्य देशों को अमेरिकी मांग पर निर्भरता कम करने के लिए मजबूर करती है।

डॉलर की कमजोरी के कारण

डॉलर की कमजोरी ट्रंप की नीतियों और वैश्विक आर्थिक कारकों का परिणाम है। प्रमुख कारणों में शामिल हैं। टैरिफ और व्यापार युद्ध ट्रंप की 2 अप्रैल, 2025 की “लिबरेशन डे” टैरिफ घोषणा, जिसमें 60 देशों पर 10% और कुछ पर उच्च टैरिफ लगाए गए, ने वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता पैदा की। इससे निवेशकों ने अमेरिकी परिसंपत्तियों से पूंजी निकाली, जिससे डॉलर 5% (यूरो और पाउंड के मुकाबले) और 6% (येन के मुकाबले) गिर गया। टैरिफ की अनिश्चितता और बार-बार नीतिगत बदलावों ने अमेरिका को कम स्थिर और विश्वसनीय निवेश गंतव्य बनाया।

ट्रंप ने फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल पर ब्याज दरों को कम करने का दबाव डाला और उनकी बर्खास्तगी की धमकी दी। इससे निवेशकों में डर पैदा हुआ कि ट्रंप की नीतियां मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती हैं।

वैश्विक विश्वास में कमी

अर्थशास्त्रियों, जैसे यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले के बैरी ईचेनग्रीन, ने चेतावनी दी कि ट्रंप की नीतियां अमेरिकी डॉलर में वैश्विक विश्वास को कम कर सकती हैं। “लिबरेशन डे” को 1956 के स्वेज संकट के समान माना जा रहा है, जिसने ब्रिटिश पाउंड की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया था। ड्यूश बैंक ने “विश्वास संकट” की चेतावनी दी, जबकि कैपिटल इकनॉमिक्स ने कहा कि डॉलर का रिजर्व मुद्रा का दर्जा अब “कुछ हद तक सवालों के घेरे में है।”

डॉलर की कमजोरी के साथ, निवेशक सोने और अन्य सुरक्षित परिसंपत्तियों की ओर बढ़े। 2025 में सोने की कीमतें 23% बढ़ीं, जो $3,260 प्रति औंस तक पहुंच गईं। येन और स्विस फ्रैंक भी मजबूत हुए, जो दर्शाता है कि डॉलर का सुरक्षित आश्रय (safe-haven) दर्जा कमजोर पड़ रहा है।

ट्रंप की नीतियों और डॉलर की कमजोरी का विरोधाभास

हालांकि ट्रंप कमजोर डॉलर चाहते हैं, उनकी नीतियां- जैसे टैरिफ और 2017 के टैक्स कट्स को 2025 के बाद बढ़ाना—पारंपरिक रूप से डॉलर को मजबूत करती हैं। यह विरोधाभास कुछ कारणों से है टैरिफ से विदेशी मुद्राएं कमजोर होनी चाहिए, जिससे डॉलर मजबूत होता है। लेकिन 2025 में, अनिश्चितता और नीतिगत अस्थिरता ने इसके उलट प्रभाव डाला। टैरिफ और ढीली राजकोषीय नीतियां (जैसे टैक्स कट्स) मुद्रास्फीति बढ़ा सकती हैं, जिससे निवेशक अमेरिकी परिसंपत्तियों से बाहर निकल रहे हैं। ट्रंप की नीतियों, जैसे BRICS देशों पर 100% टैरिफ की धमकी, ने वैश्विक व्यापारिक भागीदारों को डॉलर के विकल्प तलाशने के लिए प्रेरित किया।

अमेरिकी और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

डॉलर की कमजोरी के लाभों के बावजूद, इसके कई नकारात्मक प्रभाव भी हैं अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए कमजोर डॉलर से आयातित सामान, जैसे फ्रेंच वाइन, दक्षिण कोरियाई इलेक्ट्रॉनिक्स, और अन्य उत्पाद महंगे हो जाएंगे, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। बंधक और कार ऋण की ब्याज दरें बढ़ सकती हैं, क्योंकि निवेशक कमजोर डॉलर के जोखिम के लिए अधिक ब्याज मांगेंगे।

वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए

मजबूत डॉलर आमतौर पर वैश्विक व्यापार को दबाता है और विकासशील देशों के लिए पूंजी तक पहुंच को सीमित करता है। कमजोर डॉलर से इन देशों को कुछ राहत मिल सकती है, लेकिन ट्रंप के टैरिफ वैश्विक मंदी का जोखिम बढ़ाते हैं। अन्य देश, जैसे यूरोप और जापान, डॉलर की कमजोरी का फायदा उठाकर अपने वित्तीय परिसंपत्तियों को आकर्षक बना सकते हैं।

डॉलर वैश्विक रिजर्व मुद्रा के रूप में 90% विदेशी मुद्रा लेनदेन और अधिकांश विदेशी भंडार का हिस्सा है। कमजोर डॉलर इस दर्जे को खतरे में डाल सकता है, जिससे अमेरिका की उधार लेने की लागत बढ़ सकती है और वैश्विक प्रभाव कम हो सकता है।

ट्रंप की रणनीति और चुनौतियां

ट्रंप के सलाहकार, जैसे पूर्व व्यापार प्रमुख रॉबर्ट लाइटहाइजर, “मार-ए-लागो एकॉर्ड” जैसे प्रस्तावों के माध्यम से डॉलर को कमजोर करने की योजना बना रहे हैं, जिसमें व्यापारिक भागीदारों के साथ समन्वय या टैरिफ की धमकी शामिल है। हालांकि, यह रणनीति कई चुनौतियों का सामना कर रही है।

वॉल स्ट्रीट और बड़े अमेरिकी रिटेलर कमजोर डॉलर का विरोध करते हैं, क्योंकि यह उनकी परिसंपत्तियों का मूल्य कम करता है। कमजोर डॉलर से अमेरिका की प्रतिबंध लगाने की क्षमता कमजोर हो सकती है, क्योंकि यह वैश्विक व्यापार में डॉलर के प्रभुत्व पर निर्भर है। कमजोर डॉलर से आयात महंगे होंगे, जिससे ट्रंप की मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की प्रतिबद्धता कमजोर पड़ सकती है।

क्या है विशेषज्ञों की राय

जेसन फर्मन (हार्वर्ड प्रोफेसर) का मानना है कि “डॉलर की कमजोरी अभी “वृद्धिशील” है, लेकिन लंबे समय में यह रिजर्व मुद्रा के दर्जे को खतरे में डाल सकती है। डेविड रोश (क्वांटम स्ट्रैटेजी) उन्होंने चेतावनी दी कि “ट्रंप के व्यापार युद्ध से 2025 के अंत तक मंदी आ सकती है, क्योंकि डॉलर की कमजोरी और टैरिफ वैश्विक व्यापार को बाधित करेंगे। उनकी भविष्यवाणी है कि डॉलर अगले 12 महीनों में यूरो के मुकाबले 10% और येन व पाउंड के मुकाबले 9% और कमजोर होगा।

अमेरिका की वैश्विक आर्थिक स्थिति

डॉलर की कमजोरी ट्रंप के लिए कई मायनों में फायदेमंद हो सकती है, जैसे निर्यात में वृद्धि, विनिर्माण का पुनर्जनन, और व्यापार घाटे को कम करना। यह उनकी “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” नीति के अनुरूप है, जो घरेलू उद्योगों को प्राथमिकता देती है। हालांकि, यह कमजोरी उनकी नीतियों—विशेष रूप से टैरिफ और नीतिगत अनिश्चितता-का अनपेक्षित परिणाम है। इसके साथ ही, कमजोर डॉलर से मुद्रास्फीति, बढ़ती उधार लागत, और रिजर्व मुद्रा के दर्जे को खतरा जैसे जोखिम भी हैं।

ट्रंप की रणनीति, जैसे “मार-ए-लागो एकॉर्ड” या टैरिफ के माध्यम से डॉलर को कमजोर करना, वैश्विक और घरेलू स्तर पर जटिल परिणाम ला सकती है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह नीति अल्पकालिक लाभ दे सकती है, लेकिन लंबे समय में अमेरिका की वैश्विक आर्थिक स्थिति को नुकसान पहुंचा सकती है।

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