प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर सुनवाई हुई। इस दौरान चुनाव आयोग (EC) ने अपनी स्थिति स्पष्ट की और कई अहम बिंदुओं पर जवाब दिया। कुछ प्रमुख बिंदु हैं, जो सुनवाई के दौरान सामने आए।
वोटर लिस्ट संशोधन का अधिकार
चुनाव आयोग ने कहा कि “मतदाता सूची में संशोधन करना उसका संवैधानिक अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 21(3) के तहत मिला है। आयोग ने तर्क दिया कि यह प्रक्रिया मतदाता सूची को सटीक और शुद्ध रखने के लिए आवश्यक है, ताकि केवल पात्र भारतीय नागरिक ही मतदान कर सकें।
आधार कार्ड को लेकर स्थिति
आयोग ने स्पष्ट किया कि “आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है, बल्कि यह केवल पहचान का दस्तावेज है। इसीलिए इसे वोटर सूची संशोधन के लिए स्वीकार्य 11 दस्तावेजों की सूची में शामिल नहीं किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सवाल उठाया और आयोग से आधार, वोटर आईडी, और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को पहचान के लिए स्वीकार करने पर विचार करने को कहा। हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह केवल सुझाव है और अंतिम निर्णय आयोग का होगा।
प्रक्रिया की टाइमिंग पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से पूछा कि “बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इस प्रक्रिया को शुरू करने की क्या वजह है। कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया पहले शुरू होनी चाहिए थी, क्योंकि इतने कम समय में 7.9 करोड़ मतदाताओं की जांच करना चुनौतीपूर्ण है।
जस्टिस सुधांशु धूलिया ने टिप्पणी की कि “एक बार मतदाता सूची अधिसूचित हो जाने के बाद, कोर्ट उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता, इसलिए प्रक्रिया में पारदर्शिता और सावधानी जरूरी है।”
नागरिकता का मुद्दा
कोर्ट ने कहा कि “नागरिकता की जांच गृह मंत्रालय का कार्यक्षेत्र है, न कि चुनाव आयोग का। आयोग को नागरिकता के मुद्दे पर जोर देने के बजाय मतदाता सूची को संशोधित करने की प्रक्रिया पर ध्यान देना चाहिए।” याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 2003 की मतदाता सूची में शामिल लोगों को छूट दी जा रही है, लेकिन नए मतदाताओं से नागरिकता के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, जो भेदभावपूर्ण है।
याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां
याचिकाकर्ताओं (जिनमें विपक्षी दल और संगठन जैसे ADR, TMC, RJD आदि शामिल हैं) ने दलील दी कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325, और 326 का उल्लंघन करती है। उनका कहना था कि आधार और वोटर आईडी जैसे सामान्य दस्तावेजों को अमान्य करना मनमाना है।
विपक्ष ने आशंका जताई कि इस प्रक्रिया से गरीब, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों के लाखों मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं, क्योंकि उनके पास जन्म प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज नहीं हैं।
चुनाव आयोग का आश्वासन
आयोग ने कहा कि “किसी भी मतदाता का नाम बिना उचित प्रक्रिया और सुनवाई के नहीं हटाया जाएगा। 57% गणना प्रपत्र (Enumeration Forms) जमा हो चुके हैं, और प्रक्रिया में 1 लाख BLO, 1 लाख वॉलंटियर्स, और 1.5 लाख राजनीतिक दलों के एजेंट शामिल हैं। आयोग ने यह भी भरोसा दिया कि अंतिम मतदाता सूची को अधिसूचित करने से पहले कोर्ट को सभी विवरण सौंपे जाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और कहा कि मतदाता सूची संशोधन आयोग का संवैधानिक दायित्व है। हालांकि, कोर्ट ने प्रक्रिया की पारदर्शिता और समयबद्धता पर जोर दिया। अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी, और आयोग को 21 जुलाई तक जवाब दाखिल करने को कहा गया है।
क्या हैं विपक्ष की चिंताएं !
विपक्षी नेताओं (जैसे तेजस्वी यादव, महुआ मोइत्रा) ने इसे सत्तारूढ़ दलों को लाभ पहुंचाने की साजिश बताया। उनका कहना है कि बिहार की गरीब आबादी के पास मांगे गए दस्तावेज (जैसे जन्म प्रमाण पत्र) नहीं हैं, जिससे लाखों लोग मतदान से वंचित हो सकते हैं।
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी प्रक्रिया को संवैधानिक और पारदर्शी बताया, लेकिन कोर्ट ने इसकी टाइमिंग और आधार कार्ड को शामिल न करने पर सवाल उठाए। कोर्ट ने आयोग को आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड को स्वीकार करने पर विचार करने का सुझाव दिया, लेकिन प्रक्रिया को रोकने से इनकार कर दिया। यह मामला अभी भी विचाराधीन है, और अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।