प्रकाश मेहरा
मथुरा धर्मस्थल किलद में तेजी आ गई है। धर्मस्थल विशेष के सर्वे को उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय ने मंजूरी दी थी, जिसे गर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। मगर अच सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वे पर रोक लगाने से मना कर दिया है। अब लोगों की निगाह उच्च न्यायालय के आगामी फैसले पर है, जो अगले सप्ताह आएगा, जिसमें सर्वे के बारे में स्पष्ट दिशा-निर्देश सभाषित है। जहां तक सर्वोच्च न्यायालय का प्रश्न है, तो जनवरी के मध्य में ही वहां इस मामले की सुनवाई होगी। सर्वोच्च नयावालय में यह मामला पहले से ही लंबित है और उच्च न्यायालय में भी सर्वे को लेकर सुनवाई चल रही है। याचिकाकर्ताओं की कोशिश है कि इस मामले की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय ही करे और उच्च न्यायालय को किसी आदेश-निर्देश से रोका जाए। बहरहाल, ईदगाह पक्ष को निराशा हाथ लगी है, क्योंकि अब यह लगभग तय हो गया है कि मथुरा धर्मस्थल का सर्वे होगा। ध्यान रहे, काशी का ज्ञानवापी सर्वे मामला भी लगातार सुर्खियों में बना हुआ है और अब मधुरा ईदगाह मामला भी सुर्खियों में पहुंच गया है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि ये मामले बेहद संवेदनशील है और इनमें अदालतों को अपना काम करने देना चाहिए। कानून के तहत अदालतों को जो उचित प्रतीत होगा, उसे सभी को स्वीकार करना चाहिए।
वास्तव में, विवाद पुराना है और इसका सबसे दुखद पक्ष इस पर होने वाली राजनीति ही है। अदालतों में जो सुनवाई होती रही है, वह कागजों या साक्ष्यों के आधार पर अगर चलती रहे, तो किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। अंततः यह देश किसी समुदाय के पक्ष या विपक्ष में नहीं, बल्कि संविधान की रोशनी में ही आगे बढ़ना चाहिए। जिन अदालतो में ऐसे मामले हैं, उन्हें विशेष सावधानी के साथ आगे बढ़ना चाहिए। राजनीति से प्रभावित होने के बजाय साक्ष्यों पर विश्वास करना ज्यादा सही है। धर्मस्थलों से जुड़े भावनात्मक ज्वार यह देश अनेक बार देख चुका है और कई ऐसे अप्रिय मंजर भी सामने आए हैं, जिनकी जिम्मेदारी लेने के लिए कोई तैयार नहीं होता है। अतः जब ऐसा कोई मामला जोर पकड़ता है, तो चिंता स्वाभाविक ही जाग जाती है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद जितनी जल्दी सुलझ जाए, उतना अच्छा है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार को मस्जिद परिसर के निरीक्षण के लिए एक आयोग की निक्ति की मांग करने वाले आवेदन को अनुमति दी है, तो आगे भी उच्च न्यायालय को ही यह भी सुनिश्चित करके चलना चाहिए कि आगे किसी तरह से अप्रिय स्थिति उत्पन्न न होने पाए। अदालतों में जो होगा, उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि क्या अदालतें इस मुद्दे पर किसी तरह की सियासत पर रोक लगा सकती है? क्या हमारे सियासी दल इस मुद्दे पर जरूरी संयम बरत सकते हैं?
यह विवाद तो लगभग तीन सदी पुराना है और मथुरा की अदालतो में कम से कम एक दर्जन मामले दायर थे। इन सभी याचिकाओं में एक समान 13.77 एकड़ के परिसर से ईदगाह को हटाने की प्रार्थना है। खास बात यह है कि इस साल मई में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सभी याचिकाओं को उचित ही अपने यहां सुनवाई के लिए रख लिया। किसी एक जगह दोनों पक्ष अपने-अपने स्वान और दलीले पेश करें,तो सुनवाई में आसानी होगी। आस्था अपनी जगह है, लेकिन तर्क-तथ्य का दामन छूटना नहीं चाहिए। फैसला जो हो, तार्किक रूप से स्पष्ट होना चाहिए और दोनों पक्षों को लगना चाहिए कि न्याय हुआ।