नई दिल्ली। दिल्ली में कांग्रेस की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। जिस दिन से कांग्रेस ने दिल्ली के अपने तीनों उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं, उस दिन से कई कांग्रेस कार्यकर्ता अपनी पार्टी के उम्मीदवारों का विरोध कर रहे हैं। 22 अप्रैल को भी जब दिल्ली कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली तीनों प्रत्याशियों का मीडिया से परिचय करवा रहे थे, कांग्रेस समर्थक अपनी ही पार्टी के उत्तर पश्चिम लोकसभा सीट से उम्मीदवार उदित राज को ‘बाहरी’ और ‘भाजपा का एजेंट’ बताते हुए उनकी उम्मीदवारी का विरोध कर रहे थे। पार्टी कार्यकर्ताओं की मांग है कि उन्हें स्थानीय उम्मीदवार दिया जाए।
इससे पहले उत्तर पूर्वी दिल्ली में कांग्रेस के उम्मीदवार कन्हैया कुमार का पार्टी के ही नेता संदीप दीक्षित ने बाहरी उम्मीदवार बताते हुए उनका तेज विरोध किया था। संदीप दीक्षित भी उत्तर पूर्वी दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक थे, लेकिन पार्टी ने मनोज तिवारी के सामने एक लोकप्रिय और युवा चेहरा देने की रणनीति में कन्हैया कुमार को टिकट थमा दिया। कहा जाता है कि कांग्रेस के मीडिया इंचार्ज जयराम रमेश ने पूरी फील्डिंग की, जिसके बाद कन्हैया कुमार को कांग्रेस का टिकट मिल पाया।
टिकट मिला, लेकिन जीत कैसे मिलेगी?
कन्हैया कुमार टिकट पाने में अवश्य सफल हो गए हैं, लेकिन उनके लिए भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं के समर्थन के बिना मनोज तिवारी जैसे लोकप्रिय और जनता के स्टार नेता को चुनौती दे पाना मुश्किल होगा। ऐसे में सवाल यही खड़ा होता है कि कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं को उम्मीदवारों के पक्ष में एकजुट कैसे कर पाएगी?
बाहरी को मौका क्यों?
कांग्रेस कार्यकर्ता राजेश राठौड़ ने अमर उजाला से कहा कि उत्तर पश्चिम से उन्हें ऐसा उम्मीदवार (उदित राज) दिया गया है, जो पूर्व में भाजपा का प्रत्याशी और सांसद रह चुका है। उन्होंने आरोप लगाया कि वे भाजपा में रहने के दौरान गांधी परिवार, कांग्रेस और उसकी नीतियों की आलोचना करते रहे हैं, जबकि उन जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की जा रही है, जो पार्टी में ही रहकर कांग्रेस के लिए संघर्ष करते रहे हैं।