मुरार सिंह कंडारी
नई दिल्ली: नई दिल्ली किसान विकास परिषद् के चेयरमैन सुधीर त्यागी और सचिव गौतम राही ने प्रेस वार्ता में कहा किसानों से औने-पौने दामों में जमीनें छीनकर, बिल्डर और उद्योगपतियों को लाभ पहुँचाने की घटनाएं कोई नई नहीं है, वरन् इसका एक लम्बा इतिहास है। अगर हम सन् 2011 की बात करें तो, भटटा- पारसौल में किसानों का रक्तरंजित आंदोलन भी, इसी लिए हुआ था, जब उनके सदियों के जीवन यापन का जरिया जमीन को छीनकर, सरकार और नौकरशाह सुनियोजित विकास के नाम पर, अपने चहते बिल्डर और उद्योगपतियों को बांट रहे थे, जिसका विरोध उस समय भटटा-पारसौल के किसानों ने किया, जिसे सरकार ने बड़ी बेरहमी से दबाने का प्रयास किया और सीधे-साधे किसानों पर दर्जनों मुकदमें दर्ज कर, उस आंदोलन को ऐसा कुचला कि “वहां के किसान, आज भी उस जुर्म को याद कर, कराह रहे हैं।
आंदोलन की वजह किसानों से 800 रू० मी० में सुनियोजित विकास के नाम पर भूमि अधिग्रहण कानून 1894 में वर्णित अर्जेंसी क्लोज के माध्यम से बिना किसान को मौका दिए, जमीनों को हडपना और उस जमीन से अनेकों बिल्डर और उद्योगपतियों के जीवन यापन का नया जरिया बनाना, जैसी घटनाओं ने किसानों को सोचने पर मजबूर किया और जगह-जगह आंदोलन हुए, उन आंदोलनों की वजह से, देश और मीडिया ने जाना कि “किस प्रकार किसानों के साथ सुनियोजित विकास के नाम पर जमीनों की लूट की घटनाएं हो रही हैं और उसी के फलस्वरूप सन् 2013 का नया भूमि अधिग्रहण कानून, जो 01 जनवरी 2014 को अस्तित्व में आया।”
नए भूमि अधिग्रहण कानून 2013 की धारा 24 में प्रावधान है कि “जिन किसानों की जमीनों पर अभी तक कब्जा नहीं लिया गया, उन्हें नए कानून के अनुसार लाभ दिए जायेंगे।” इस संबंध में मोदी सरकार ने 31 दिसंबर सन् 2014 को एक अध्यादेश के माध्यम से नए भूमि अधिग्रहण कानून में किसानों को प्रोटेक्शन देने वाली धाराओं को शिथिल करने के उद्देश्य से एक अध्यादेश लाया गया था, जिसके खिलाफ पूरे देश का किसान सड़कों पर आ गया और मोदी सरकार को वह अध्यादेश ठंडे बस्ते में डालना पडा। बाद में एक सुनियोजित साजिश के तहत भारत के सर्वोच्च न्यायालय में बिल्डर और उद्योगपतियों की लॉबी ने, जिसमें प्रदेश के बहुत सारे नौकरशाह भी शामिल थे, गलत तथ्य प्रस्तुत करते हुए, नए कानून में वर्णित धारा 24 की व्याख्या को भी बदलवा दिया, जिससे किसानों को इस धारा का लाभ न मिल सके।
नए कानून की मंशा तो थी कि पुराने कानून के तहत अजैसी क्लोज लगाकर, सुनियोजित विकास के नाम पर बिना जरूरत के लिए भी ली जा रही जमीनों पर भी अंकुश लगाया जाए, लेकिन सन् 2014 से आज तक कोई ऐसा उदाहरण नहीं है, जहां किसान को नए कानून में वर्णित उसके अधिकारों विषेशकर, रेट्रोस्पैक्टिव क्लोज की धारा 24 का फायदा मिल पाया हो। भटटा पारसौल के, जिन किसानों ने अपने जीवन यापन का जरिया रही जमीन को बचाने का एक बडा आंदोलन कियागया था, आखिर उस आंदोलन का क्या फायदा हुआ?, चूंकि कार्यपालिका और पूंजीपतियों के एक बडे गठजोड ने, देश की न्यायपालिकाओं को गुमराह कर, नए भूमि अधिग्रहण कानून के लाभ, देश के किसानों को मिलने ही नहीं दिए।
सन् 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून के तहत अर्जेंसी क्लोज लगाकर, देश में सबसे ज्यादा जमीनें जनपद गौतमबुद्धनगर में ली गयी थी। इसलिए अर्जेसी क्लोज के दुरपयोग पर सन् 2011 से लेकर सन् 2015 के बीच, देश की अनेकों अदालतों ने अर्जेसी क्लोज को अवैध मानते हुए, किसानों को लाभ दिए, लेकिन वक्त और सरकार बदलने के साथ, वह लाभ अब नहीं दिए जा रहे हैं।
अदालतों के बहुत से ऐसे निर्णय, जिसमें आवासीय और औद्योगिक जैसे उद्योग के लिए दी जाने वाली जमीनों को भी वैध मान लिया गया है।
सरकार को विकास के लिए जमीनों की जरूरत है, जिसके लिए वह किसान को न तो बाजार मूल्य के अनुसार मुआवजा ही दे रही है और न ही किसान के भविष्य की जरूरतों को देखते हुए, उनके परिवारों के जीवन यावन का कोई जरिया विकसित कर रही है, बल्कि आवाज उठाने पर बलपूर्वक दमन किया जा रहा है और सीधा साधा गरीब किसान, अदालतों में वकीलों की मंहगी फीस न दे पाने के कारण, दम तोडने की कगार पर पहुँच चुका है।
अतः इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का उद्देश्य यही है कि मीडिया बंधु, हम गरीब किसानों की आवाज को सरकार और अदालतों तक पहुँचाने का काम करें, जिससे हमारा अस्तित्व बच सके।