स्पेशल डेस्क/पटना : बिहार में एनडीए की सत्ता-वापसी के लिए नीतीश कुमार की हालिया ताबड़तोड़ घोषणाएं रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनकी प्रभावशीलता कई कारकों पर निर्भर करती है। नीतीश कुमार ने विभिन्न क्षेत्रों में लोक-लुभावन योजनाओं और नीतियों की घोषणा की है, जिनका उद्देश्य अलग-अलग वोटर समूहों को आकर्षित करना है। आइए, इन घोषणाओं और उनकी संभावित प्रभावशीलता का विश्लेषण एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से स्थिति को समझें।
शिक्षक भर्ती में डोमिसाइल नीति !
नीतीश कुमार ने शिक्षक भर्ती में बिहार के निवासियों को प्राथमिकता देने के लिए डोमिसाइल नीति लागू की है, जो टीचर रिक्रूटमेंट एग्जाम (TRE-4) से प्रभावी होगी। यह नीति बिहार के युवाओं, खासकर शिक्षित बेरोजगारों को आकर्षित करने की कोशिश है, जो रोजगार के मुद्दे पर संवेदनशील हैं। इस कदम को स्थानीय स्तर पर समर्थन मिल सकता है, क्योंकि यह बिहारी अस्मिता और रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देता है।
प्रगति यात्रा और विकास योजनाएं
नीतीश कुमार ने अपनी प्रगति यात्रा के दौरान कई विकास परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन किया है। उदाहरण के लिए मधुबनी में 426 करोड़ रुपये की लागत से कमला और जीवछ कमला नदी के पुनर्जनन और वीयर निर्माण। पटना में 181 करोड़ रुपये की कुर्जी नाला और 91.27 करोड़ रुपये की आनंदपुरी नाला निर्माण योजना। मधुबनी के फुलहर में 31.13 करोड़ रुपये की लागत से पर्यटकीय सुविधाओं का विकास।
ये योजनाएं बुनियादी ढांचे, पर्यटन और स्थानीय विकास को बढ़ावा देने के लिए हैं, जो ग्रामीण और शहरी मतदाताओं को प्रभावित कर सकती हैं। बिहार पत्रकार सम्मान पेंशन योजना में पेंशन राशि को 6,000 रुपये से बढ़ाकर 15,000 रुपये करने का निर्णय। बिहार राज्य सफाई कर्मचारी आयोग के गठन का निर्देश, जो सफाई कर्मचारियों के हितों की रक्षा और कल्याण के लिए है। ये कदम विशिष्ट समुदायों और पेशेवर समूहों को साधने की कोशिश हैं, जो सामाजिक समावेश और कल्याण की छवि को मजबूत करते हैं।
20 साल की उपलब्धियों का रिपोर्ट कार्ड
नीतीश ने 2005 से 2025 तक के अपने शासनकाल की उपलब्धियों का एक रिपोर्ट कार्ड जारी किया, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, और कानून-व्यवस्था में सुधारों पर जोर दिया गया है।
इसमें बताया गया कि 2005 के पहले बिहार में बिजली की भारी कमी थी, और अब 24 घंटे बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की गई है। सड़कों की लंबाई 14,468 किमी से बढ़कर 26,081 किमी हो गई है और गंगा नदी पर चार नए पुल बने हैं। यह रिपोर्ट कार्ड मतदाताओं को उनके शासन के सकारात्मक पहलुओं की याद दिलाने का प्रयास है। सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहल:पटना संग्रहालय में गंगा गैलरी, पाटली गैलरी, और प्रेक्षा गृह का उद्घाटन। ये कदम सांस्कृतिक गौरव और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए हैं, जो बिहार की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करते हैं।
डोमिसाइल नीति और बुनियादी ढांचे
नीतीश कुमार की ये घोषणाएं एनडीए की सत्ता-वापसी के लिए कितनी कारगर होंगी, यह निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है वोटर धारणा और विश्वसनीयता पक्ष में नीतीश कुमार को “सुशासन बाबू” और “चाणक्य” के रूप में जाना जाता है, और उनकी नीतियां विकास और सामाजिक समावेश पर केंद्रित हैं। डोमिसाइल नीति और बुनियादी ढांचे की परियोजनाएं स्थानीय और युवा मतदाताओं को आकर्षित कर सकती हैं।
विपक्ष, विशेष रूप से तेजस्वी यादव और राजद, ने इन घोषणाओं को “चुनावी जुमला” और उनकी योजनाओं की नकल करार दिया है। अगर मतदाता इन्हें महज चुनावी वादों के रूप में देखते हैं, तो प्रभाव सीमित हो सकता है। नीतीश के खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर (एंटी-इनकंबेंसी) भी एक चुनौती है, क्योंकि वे लंबे समय से सत्ता में हैं।
एनडीए गठबंधन की एकता
नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी के बाद गठबंधन में कुछ तनाव की खबरें आई हैं, जैसे गिरिराज सिंह की हिंदू स्वाभिमान यात्रा और बीजेपी के कुछ नेताओं के बयान।
हालांकि, नीतीश की अगुवाई में एनडीए की बैठकें और सम्राट चौधरी जैसे नेताओं के बयान कि नीतीश ही सीएम चेहरा हैं, गठबंधन की एकता को दर्शाते हैं। बीजेपी के सोशल मीडिया कवर पर नीतीश की तस्वीर न होने से कुछ सवाल उठे, लेकिन अन्य पोस्टरों में उनकी मौजूदगी इस विवाद को कम करती है।
विपक्ष की रणनीति
राजद और तेजस्वी यादव नीतीश की घोषणाओं को उनकी योजनाओं की नकल बता रहे हैं। तेजस्वी की युवा अपील और राजद का मजबूत वोट बैंक (विशेषकर यादव और मुस्लिम समुदाय) एनडीए के लिए चुनौती है। राजद विधायक भाई वीरेंद्र ने नीतीश को महागठबंधन में वापस आने का ऑफर दिया, जो उनके गठबंधन में असहजता को दर्शाता है।
गठबंधन में नीतीश की भूमिका
एक सर्वे में दावा किया गया कि नीतीश की एनडीए में वापसी के बावजूद, लोकसभा चुनाव में एनडीए को 4-5 सीटों का नुकसान हो सकता है, जबकि राजद-कांग्रेस को फायदा हो सकता है। बिहार विधानसभा में राजद (74 सीटें), बीजेपी (74 सीटें), और जदयू (43 सीटें) की स्थिति को देखते हुए, नीतीश की भूमिका गठबंधन में महत्वपूर्ण है।
हालांकि, बीजेपी के कुछ नेताओं (जैसे विजय सिन्हा) ने अपने सीएम की इच्छा जताई है, और अमित शाह ने कहा कि सीएम का फैसला समय बताएगा। यह अनिश्चितता नीतीश के नेतृत्व को कमजोर कर सकती है। नीतीश के बेटे निशांत कुमार की सियासी चर्चा भी शुरू हो गई है, जो भविष्य में जदयू की रणनीति को प्रभावित कर सकती है।
शराबबंदी और अन्य विवाद
शराबबंदी नीतीश की एक प्रमुख नीति रही है, लेकिन इस पर जन सुराज पार्टी के प्रशांत किशोर जैसे नेताओं की आलोचना इसे विवादास्पद बनाती है। स्मार्ट मीटर और जमीन सर्वे जैसे मुद्दों पर भी विपक्ष सरकार को घेर रहा है, जो एनडीए की छवि को प्रभावित कर सकता है।
नीतीश कुमार की घोषणाएं
बिहार में एनडीए की सत्ता-वापसी के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे शिक्षा, रोजगार, बुनियादी ढांचे, और सामाजिक कल्याण जैसे मुद्दों को छूती हैं, जो मतदाताओं के लिए प्रासंगिक हैं। डोमिसाइल नीति और प्रगति यात्रा जैसे कदम स्थानीय और युवा वोटरों को आकर्षित कर सकते हैं, जबकि 20 साल की उपलब्धियों का रिपोर्ट कार्ड उनकी सरकार की सकारात्मक छवि को मजबूत करता है।
विश्वसनीयता का सवाल
अगर मतदाता इन घोषणाओं को चुनावी जुमला मानते हैं, तो प्रभाव सीमित हो सकता है। तेजस्वी यादव और राजद का मजबूत वोट बैंक और उनकी आलोचनाएं एनडीए के लिए खतरा हैं।
बीजेपी के कुछ नेताओं के बयान और सीएम चेहरे पर अनिश्चितता गठबंधन की एकता को प्रभावित कर सकती है। लंबे शासन के बाद नीतीश के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी एक बड़ी चुनौती है।
क्या हो सकते हैं परिणाम ?
अगर नीतीश इन घोषणाओं को प्रभावी ढंग से लागू कर पाते हैं और गठबंधन में एकता बनाए रखते हैं, तो एनडीए की सत्ता-वापसी की संभावना मजबूत हो सकती है। उनकी “सुशासन” की छवि और विकास कार्य अभी भी कई मतदाताओं को प्रभावित करते हैं। लेकिन, अगर विपक्ष इन घोषणाओं को नकल और जुमला साबित करने में सफल होता है, या गठबंधन में आंतरिक कलह बढ़ती है, तो एनडीए को नुकसान हो सकता है, जैसा कि कुछ सर्वे दर्शाते हैं।
कुल मिलाकर, नीतीश की घोषणाएं रणनीतिक रूप से सही दिशा में हैं, लेकिन उनकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वे मतदाताओं का भरोसा कितना जीत पाते हैं और गठबंधन कितना एकजुट रहता है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में ये सभी कारक निर्णायक होंगे।