प्रकाश मेहरा कहते हैं अच्छे बुरे दिन सबके आते हैं समय से बड़ा कुछ नहीं समय बदलते देर नहीं लगती कहावत पुरानी है लेकिन असल जिंदगी में आए दिन हमसे-आपसे रूबरू होती रहती है।अब देखना ये है कि अच्छे दिन कब आते हैं।
सच की अदालत में बात करेंगे परिश्रम और सफलता की जो परिश्रम के बाद भी असफल हो जाते हैं और उनके सपने सपने ही रह जाते हैं। क्या वो सपने पूरे होंगे भी या नहीं ? आज इस शो की शुरुआत मैं अपने जीवन के सफर से इस अदालत में करूंगा और मीडियाकर्मियों का सच बताऊंगा कि क्या दलाली ये होती है ? आज एक ऐसे पत्रकार की स्टोरी इस अदालत में है जो परिश्रम के बाद भी असफल रहा और पत्रकारिता के सफ़र ने सब कुछ एक तूफ़ान की भांति खत्म कर दिया। और अब इसी को लेकर प्रकाश मेहरा कहते हैं कि…..
मेरी शिक्षा से लेकर पत्रकारिता के सफ़र में आज तक जो भी घटा…मेरी जन्मभूमि देवभूमि उत्तराखंड है। मुझे दुःख होता है कि मैं एक मीडियाकर्मी हूं और आज से पहले जो हुआ वो बताऊंगा… मैं एक मीडियाकर्मी हूं गर्व करूं या फिर शर्म? क्योंकि मेरे माताजी, पिताजी, भाई ने जो मेरे लिए किया शायद ही किसी ने किया हो। वो मुझे सेना के एक जवान के रूप में देखना चाहते थे और मेरा बचपन का सपना भी यही था। लेकिन मैं एक मीडियाकर्मी बना…मैं इस सपने को पूरा नहीं कर पाया मुझे इस बात का दुःख है। उन्होंने मुझे एक सफ़ल व्यक्ति बनाना चाहा पर मैं नहीं बन पाया। क्योंकि मैं एक पत्रकार तो बन गया mass communication किया उसके बाद editing कोर्स भी किया तमाम चैनलों में काम भी किया लेकिन न तो अच्छा वेतन मिला और कहीं अच्छा था भी तो मैं अपनी जरूरतें भी पूरी नहीं कर पाता था पत्रकारिता के सफ़र में रोहित भाई का प्रयास और साथ तो रहा पर जब मंजिल के पास पहुंचा तो भाई हमें अकेला छोड़ गए वहीं से मेरे सारे सपने बिखर गए। मानो तो मेरे लिए एक सहारा वही थे। मैंने एंकर,रिपोर्टर,एडिटर,वीडियो एडिटर के रूप में, तमाम चैनलों में काम किया पर वेतन की बात जहां हो जाए तो क्या ही कहा जाए। सबका सपना होता है कि वो एक निष्पक्ष पत्रकार बने अपने माता पिता को खुश रखे और अपनी जरूरतों को पूरा करे।
पत्रकारिता का सफर कैसा
मैंने अपने आप को हर तरह से सक्षम बनाने की कोशिश की और परिश्रम किया लेकिन ये सफ़र ऐसा होगा मैने कभी सोचा नहीं था। कभी किराए के लिए पैसे न होना तो कभी खाने के लिए पैसे न होना और आज के समय में बिना पैसे कुछ भी संभव नहीं है। ये सिर्फ मेरे साथ ही नहीं हुआ ये 100 मीडियाकर्मियों में से 50 कर्मियों के साथ ये अक्सर होता है।….बच्चे नौकरी तो करते हैं पर पैसे बचाने के लिए खाना,पीना छोड़ देते हैं और जब घर से मां पिताजी का फोन आए तो कह दिया कि खाना खा लिया…पर सच कुछ और ही होता है।
बच्चे बड़े ही उत्साहित होकर कोई नया चैनल खुल जाए तो ज्वाइन तो कर लेते हैं पर जब वेतन की बात आती है तो चैनल के वरिष्ठ पत्रकार आज नहीं तो कल करके पत्रकार को प्रताड़ित करते हैं और परेशान होकर उसे न चाहते हुए भी घर से मदद लेनी पड़ती है। जिससे परेशान होकर पत्रकार चैनल छोड़ देता है और कहीं नौकरी तलाश करने लगता है और कहीं वेतन के लिए चक्कर काटता रहता है लेकिन इसके लिए कोई सुनवाई नहीं।
मेरी भी कुछ ऐसी ही कहानी थी अब शायद मैं अपने माताजी,पिताजी,भाई और साथ ही अपने घरवालों को खुश रख सकूं और उनकी उम्मीदों पर खरा उतर सकूं। उन्होंने मेरे लिए हर संभव प्रयास किया लेकिन अब मेरा कर्तव्य है कि मैं पूरा करूं।…मीडियाकर्मियों की ऐसी हालत है कहीं नौकरी है तो पैसा नहीं कहीं पैसा है तो नौकरी नहीं अब पत्रकार ये डिग्री लेकर क्या करे और कहां जाए ? तो आम जनता कहती है कि मीडिया दलाली करती है पर कहां और कैसे ? ये मैं इन 7,8 सालों के अनुभव में भी नहीं समझ पाया।
क्या कहा मां और पिता ने
कुछ महीनों पहले मेरे माताजी और पिताजी ने कहा कि बेटा ये पत्रकारिता में कुछ नहीं है आप किसी कंपनी में इंटरव्यू क्यों नहीं देते आज तक तुम्हें अच्छा वेतन मिलता। मैने कहा सब ठीक है आप लोग परेशान क्यों हो रहे हो…मैं हमेशा सच छुपाता रहा और मेरी वजह से लोगों को काफ़ी परेशानी भी हुई पर अब सच की अदालत में ही इस सच से पर्दा उठ गया है और इसी अदालत से मैं मीडिया कर्मचारियों से और प्रसारण मंत्रालय में बैठे मंत्रियों से यही प्रार्थना करूंगा कि ऐसे चैनलों को बंद करें जो वेतन न दे सके और जो पत्रकारों को प्रताड़ित करते हैं।
कहां मिले युवाओं को रोजगार
आज देश में लाखों युवा बेरोजगार हैं और डिग्री लेकर घूम रहे हैं।आख़िर इन युवाओं को रोजगार कब मिलेगा ? और जब नेताओं का चुनाव प्रचार चले तो नेता युवाओं को रोजगार देने की बात करते है और प्रधानमंत्री जी कहते हैं लाखों युवाओं को रोजगार के अवसर दिए हैं और पत्रकारों को बड़ा तोहफ़ा दिया है। पर अब तक किसको मिला तोहफ़ा?
कहां हुई परेशानी
मेरी वजह से बीते कुछ महीनों पहले किसी को भी मुझसे परेशानी हुई हो तो मुझे माफ़ करना क्योंकि नौकरी अच्छी होने के बाद भी असफल रहा…क्योंकि लोगों का जो भरोसा मुझ पर था उस पर मैं खरा नहीं उतर पाया… क्या इसलिए कि मैं एक मीडियाकर्मी हूं। या फिर मेरे पास अच्छी नौकरी होने के बाद भी असफल रहा। आज शायद इसलिए आम जनता गुस्से में रहती है और दलाल कहते हैं। पर मैं अब आप लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने का पूरा प्रयास करूंगा। ये शायद सिर्फ मेरे साथ ही नहीं बल्कि हर एक पत्रकार के साथ होता है।
किसको हुई दिक्कत
मेरे रूममेड ने मेरा साथ हर परेशानी में दिया मैं बेहद अहसानमंद हूं। और मैं उसे कभी नही भूलूंगा क्योंकि वो एक रूममेड नहीं बल्कि एक भाई बनके रहा और हर संभव मदद की। मैं हर उस व्यक्ति का अहसानमंद हूं जिसने मेरी हर संभव मदद की। इस पत्रकारिता ने मुझसे सब कुछ छीन लिया माता पिता का भरोसा भी और दोस्त भी और सबका भरोसा भी।
क्या है पत्रकार का कर्तव्य
एक पत्रकार का कर्तव्य होता है जनता की आवाज़ उठाना वो उठाता है पर उस पत्रकार के लिए आवाज़ कौन उठाता है जब उसको जान से मारने की धमकी दी जाती है तब जनता चुप क्यों ? मैं अपनी ही बात करूं तो मैंने नुपुर शर्मा मामले पर एक इंटरव्यू लिया हालांकि कुछ गलत प्रश्न भी नहीं किए थे। और इसी बात को लेकर मुझे तमाम तरह से परेशान किया गया जान से मारने की धमकी दी गई,अलग- अलग नबरों से फोन आए और वीडियो “delete” करने को कहा गया। पर किसी ने भी इस मामले पर कुछ नहीं कहा क्योंकि जनता एक पत्रकार को दलाल समझती है।
कहते हैं परिश्रम ही सफलता की कुंजी होती है। मैने परिश्रम तो किया पर आज तक सफलता तो नहीं मिली पर अब उम्मीद है कि अब मैं सफ़ल हो सकूं। आज की कवर स्टोरी में इतना ही धन्यवाद। आपको हमारी ये वीडियो कैसी लगी जरूर बताएं और हमारे चैनल को लाइक शेयर और सब्सक्राइब करना न भूलें।