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Home राष्ट्रीय

विविध भाषा और बोलियों का देश है भारत, जानिए 22 ऑफिशियल भाषाओं के बारे में

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
February 21, 2023
in राष्ट्रीय
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languages
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नई दिल्ली : भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहु-भाषावाद को बढ़ावा देने के लिए हर साल 21 फरवरी को विश्व स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, इस दिन को मनाने के पीछे प्रेरणा है कि “भाषाएं और बहु-भाषावाद समावेश को आगे बढ़ा सकते हैं और सतत विकास लक्ष्य किसी को पीछे नहीं छोड़ने पर ध्यान केंद्रित करते हैं.”

बात अगर सिर्फ भारत की करें तो हमारे यहां भाषाई विविधता बहुत ज्यादा है. एक कहावत है कि भारत में हर तीन कोस पर लोगों की बोली और पानी का स्वाद बदल जाता है. आज इस दिन पर हम आपको बता रहे हैं भारतीय भाषाओं के बारे में.

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भारत में बोली जाती हैं कितनी मातृभाषाएं
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची के अनुसार, भारत में 22 ऑफिशियल भाषाएं हैं, और वे सभी विभिन्न राज्यों में बड़े पैमाने पर बोली जाती हैं. आउटलुक इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2018 में जारी 2011 की भाषाई जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 19,500 से अधिक भाषाएं और बोलियां मातृभाषा के रूप में बोली जाती हैं. भाषाओं की स्क्रुटिनी और रेशनलाइजिंग के बाद इन 19,500 भाषाओं को आगे मातृभाषा की 121 कैटेगरी में बांटा गया.

2011 के भाषाई जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, देश के 52.8 करोड़ लोगों द्वारा हिंदी सबसे अधिक बोली जाने वाली मातृभाषा है, जो जनसंख्या का 43.6 प्रतिशत है. उसके बाद, 9.7 करोड़ लोग या 8 प्रतिशत आबादी बंगाली बोलती थी, जिससे यह देश की दूसरी सबसे लोकप्रिय मातृभाषा बन गई.

ये हैं 22 ऑफिशियल भाषाएं
संविधान की आठवीं अनुसूची में निम्नलिखित 22 भाषाएं शामिल हैं:
(1) असमिया, (2) बंगाली, (3) गुजराती, (4) हिंदी, (5) कन्नड़, (6) कश्मीरी, (7) कोंकणी, (8) मलयालम, (9) मणिपुरी, (10) मराठी, (11) नेपाली, (12) उड़िया, (13) पंजाबी, (14) संस्कृत, (15) सिंधी, (16) तमिल, (17) तेलुगु, (18) उर्दू (19) बोडो, (20) संथाली, (21) मैथिली और (22) डोगरी.

इन भाषाओं में से 14 को शुरुआत में संविधान में शामिल किया गया था. सिंधी भाषा को 1967 में जोड़ा गया था. इसके बाद तीन और भाषाएं, कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली को 1992 में शामिल किया गया. इसके बाद बोडो, डोगरी, मैथिली, और संथाली को 2004 में जोड़ा गया था.

हालांकि, संविधान की आठवीं अनुसूची में 38 और भाषाओं को शामिल करने की मांग की जा रही है:
(1) अंगिका, (2) बंजारा, (3) बजिका, (4) भोजपुरी, (5) भोटी, (6) भोटिया, (7) बुंदेलखंडी (8) छत्तीसगढ़ी, (9) धतकी, (10) अंग्रेजी, (11) गढ़वाली (पहाड़ी), (12) गोंडी, (13) गुज्जर/गुज्जरी (14) हो, (15) कच्छी, (16) कामतापुरी, (17) कर्बी, (18) खासी, (19) कोडवा (कूर्ग), (20) कोक बराक, (21) कुमाऊंनी (पहाड़ी), (22) कुरक, (23) कुर्माली, (24) लेप्चा, (25) लिम्बु, (26) मिजो (लुशाई), (27) मगही, (28) मुंडारी, (29) नागपुरी, (30) निकोबारी, (31) पहाड़ी (हिमाचली), (32) पाली, (33) राजस्थानी, (34) संबलपुरी/कोसली, (35) शौरसेनी (प्राकृत), (36) सिरैकी, (37)
तेन्यादी और (38) तुलु.

बांग्लादेश से जुड़ा है इतिहास
साल 1999 में यूनेस्को ने इंटरनेशनल मदर लैंग्वेज डे को मान्यता दी. दरअसल, यह आइडिया सबसे पहले बांग्लादेश से आया. क्योंकि वहां पर लोगों ने बांग्ला भाषा को मान्यता दिलाने के लिए बड़ी लड़ाई लड़ी. और 21 फरवरी 1952 के दिन बांग्लादेश के लैंग्वेज एक्टिविस्ट अब्दुस सलाम, अबुल बरकत ने संघर्ष में अपनी जान गवां दी और बड़ी संख्या में लोग घायल हो गए थे.

ये सभी लोग तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में उर्दू के साथ-साथ बंगाली भाषा को राज्य भाषा के रूप में मान्यता देने की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे थे. अपनी मातृभाषा को पहचान दिलाने के लिए उन सभी लोगों द्वारा किए गए संघर्ष और बलिदान को दर्शाने के लिए ही यह खास दिन मनाया जाता है.

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