स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता और देश के पहले प्रधानमंत्री ने अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा जेल में बिताया। 1922 से 1945 के बीच, नेहरू नौ बार जेल गए, जिनमें उन्होंने कुल मिलाकर 3,259 दिन (लगभग सवा आठ वर्ष) कारावास में बिताए। यह समय उनके लिए न केवल कठिनाइयों से भरा था, बल्कि आत्म-चिंतन, सृजन और शारीरिक-मानसिक अनुशासन का भी अवसर रहा। उनकी जेल यात्राओं के दौरान चरखा, किताबें और कसरत उनके जीवन के अभिन्न अंग बन गए। यहां हम उनके जेल जीवन के इन पहलुओं को एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा के साथ विस्तार से समझते हैं।
जेल यात्राओं का इतिहास
नेहरू की पहली गिरफ्तारी 6 नवंबर 1921 को हुई थी, जब वे प्रिंस ऑफ वेल्स के दौरे का बहिष्कार करने के लिए इलाहाबाद में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ सक्रिय थे। इसके बाद 1945 तक वे बार-बार गिरफ्तार हुए, जिसमें सबसे लंबी सजा 1,041 दिनों की थी। उनकी जेल यात्राएँ मुख्य रूप से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन आदि से जुड़ी थीं। जेल में उन्हें सख्त नियमों, साधारण भोजन और सीमित सुविधाओं के बीच रहना पड़ता था, लेकिन उन्होंने इस समय का उपयोग रचनात्मक और बौद्धिक कार्यों के लिए किया।
चरखा… आत्मनिर्भरता और गांधीवादी दर्शन
नेहरू ने जेल में चरखा चलाना शुरू किया, जो गांधीजी के स्वदेशी और आत्मनिर्भरता के दर्शन का प्रतीक था। चरखा न केवल कपास कातने का साधन था, बल्कि यह समय बिताने और मन को केंद्रित रखने का भी जरिया था। नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि चरखा चलाना उनके लिए ध्यान और अनुशासन का साधन बन गया। यह उनके लिए शारीरिक श्रम और मानसिक शांति का संतुलन बनाए रखने का तरीका था। नैनी जेल और अन्य जेलों में, जहाँ वे रहे, चरखा उनकी दिनचर्या का हिस्सा था। यह गतिविधि उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की याद दिलाती थी।
किताबें… बौद्धिक विकास और लेखन
जेल में नेहरू के लिए किताबें सबसे बड़ा सहारा थीं। वे एक उत्साही पाठक थे और जेल में उन्हें पढ़ने-लिखने का पर्याप्त समय मिला। इस दौरान उन्होंने इतिहास, दर्शन, साहित्य और राजनीति से संबंधित अनेक किताबें पढ़ीं। उनकी प्रमुख रचनाएँ, जैसे “Glimpses of World History” (विश्व इतिहास की झलक), “The Discovery of India” (भारत की खोज) और उनकी आत्मकथा का अधिकांश हिस्सा जेल में ही लिखा गया। ये किताबें न केवल उनके बौद्धिक विकास को दर्शाती हैं, बल्कि भारत और विश्व के इतिहास को समझने में भी महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।
नेहरू ने जेल में डायरी भी लिखी, जिसमें उन्होंने अपने विचार, स्वतंत्रता संग्राम की रणनीतियाँ और व्यक्तिगत अनुभव दर्ज किए। किताबें और लेखन ने उन्हें मानसिक रूप से सक्रिय रखा और जेल की एकाकी जिंदगी में उद्देश्य प्रदान किया।
कसरत… शारीरिक अनुशासन
जेल में सीमित स्थान और गतिविधियों के बावजूद, नेहरू ने अपनी शारीरिक फिटनेस पर ध्यान दिया। वे नियमित रूप से व्यायाम करते थे, जिसमें योग, प्राणायाम और अन्य शारीरिक गतिविधियाँ शामिल थीं। यह उनके लिए न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बनाए रखने का साधन था, बल्कि मानसिक तनाव को कम करने का भी तरीका था। जेल की कठिन परिस्थितियों में, जहाँ भोजन सादा और सुविधाएँ कम थीं, कसरत ने उन्हें अनुशासित और ऊर्जावान बनाए रखा।
जेल जीवन की चुनौतियां
नेहरू की जेल यात्राएँ आसान नहीं थीं। ब्रिटिश जेलों में कैदियों को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था। नेहरू को कई बार बैरकों में, साधारण खाट पर सोना पड़ता था और भोजन में सादी रोटी, दाल और सब्जियाँ ही मिलती थीं। इसके बावजूद, उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनकी डायरी और पत्रों से पता चलता है कि वे जेल को “तीर्थयात्रा” की तरह देखते थे, जो स्वतंत्रता के लिए उनके संकल्प को और मजबूत करती थी।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
नेहरू की जेल यात्राएँ और उनके द्वारा किए गए कार्य, जैसे चरखा चलाना, किताबें लिखना और कसरत करना, ने न केवल उन्हें व्यक्तिगत रूप से मजबूत बनाया, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को भी रेखांकित किया। उनकी किताबों ने विश्व भर में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को समझाने में मदद की और उनके विचारों ने भावी पीढ़ियों को प्रेरित किया।
आज के संदर्भ में विवाद
आज नेहरू के जेल जीवन को लेकर कुछ विवाद भी हैं। कुछ लोग, जैसा कि सोशल मीडिया पोस्ट्स में देखा गया है, दावा करते हैं कि नेहरू को जेल में विशेष सुविधाएँ मिलीं और उनका जीवन अपेक्षाकृत आरामदायक था। हालांकि, ऐतिहासिक दस्तावेज और उनकी अपनी लेखनी से पता चलता है कि जेल की परिस्थितियाँ कठिन थीं और उन्होंने उस समय का उपयोग रचनात्मक और बौद्धिक कार्यों के लिए किया। यह भी सच है कि नेहरू का संपन्न पारिवारिक पृष्ठभूमि और शिक्षा ने उन्हें जेल में मानसिक रूप से सक्रिय रहने में मदद की, जो हर कैदी के लिए संभव नहीं था।
स्वतंत्रता संग्राम के प्रति उनकी प्रतिबद्धता
नेहरू के जेल में बिताए 3,259 दिन उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे, जिनमें उन्होंने चरखा, किताबों और कसरत के माध्यम से अपने शरीर, मन और आत्मा को संतुलित रखा। ये गतिविधियाँ न केवल उनकी व्यक्तिगत शक्ति का प्रतीक थीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को भी दर्शाती थीं। उनकी जेल यात्राएँ और उस दौरान किए गए कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं, जो हमें कठिन परिस्थितियों में भी रचनात्मकता और अनुशासन की शक्ति सिखाते हैं।