नई दिल्ली। इंटरनेट की लत से युवा तनाव, अवसाद और बेचैनी का शिकार हो रहे हैं। आरएमएल अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। अस्पताल के डॉक्टर कहते हैं कि बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू, गांजा इत्यादि का नशा तो पहले से बड़ी स्वास्थ्य समस्या है। अब युवाओं में इंटरनेट का चस्का उन्हें बीमारियों की ओर ढकेल रहा है।
आरएमएल अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. आरपी बेनिवाल के नेतृत्व में अक्टूबर 2022 से फरवरी 2023 के बीच बेचैनी, तनाव व अवसाद की समस्या के साथ इलाज के लिए पहुंचे 100 लोगों पर अध्ययन किया गया। इसमें 44 प्रतिशत पुरुष और 55 प्रतिशत महिलाएं थीं।
अध्ययन में देखा गया कि इन मरीजों को इंटरनेट की लत थी। 71 प्रतिशत लोग बिना आवश्यकता के घंटों स्मार्ट फोन पर इंटरनेट का इस्तेमाल करते थे। सिर्फ नौ प्रतिशत लोग जरूरी कार्य के लिए और 20 प्रतिशत लोग कभी जरूरत पर तो कभी बेवजह इंटरनेट का प्रयोग करते थे। 72 प्रतिशत लोग प्रतिदिन पांच से 12 घंटे इंटरनेट मीडिया पर बिताते थे। अध्ययन में शामिल 78 प्रतिशत मरीजों की उम्र 18 से 33 वर्ष थी। उनकी सामाजिक व शारीरिक सक्रियता घट गई।
मानसिक बीमारी होने पर लोग इसे छिपाते हैं: डॉ. सागर
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से संबंधित संसदीय समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न मानसिक बीमारियों से पीड़ित 70 से 92 प्रतिशत मरीज इलाज से वंचित रह जाते हैं। इसका कारण जागरूकता की कमी और चिकित्सा सुविधाओं का अभाव है। डाक्टर बताते हैं कि मानसिक बीमारी और इलाज में अंतर के मद्देनजर ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बार विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की थीम “मानसिक स्वास्थ्य एक सार्वभौमिक मानव अधिकार” रखी है।
73.6 प्रतिशत नहीं करा पाते इलाज: रिपोर्ट
एम्स के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजेश सागर ने बताया कि इस थीम का उद्देश्य लोगों में जागरूकता बढ़ाना है, ताकि सही इलाज मिले। मानसिक बीमारी होने पर लोग इसे छिपाने हैं। ऐसे में जागरूक जरूरी है। डॉक्टर बताते हैं कि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार देश में 18 वर्ष से अधिक उम्र के 13.7 प्रतिशत लोग मनोरोगी है।
संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार सामान्य मानसिक रोग से ग्रस्त 85 गंभीर से पीड़ित 73.6 प्रतिशत मरीज इलाज नहीं करा पाते हैं।
ये पड़ा प्रभाव
- सामाजिक प्रभाव (दोस्तों 31 प्रतिशत व रिश्तेदारों से बनी दूरी) कामकाज प्रभावित 13 प्रतिशत
- शारीरिक सक्रियता प्रभावित 19
- प्रतिशत कामकाज में उत्पादकता 27 प्रतिशत
- प्रभावित पढ़ाई प्रभावित 22 प्रतिशत
स्वास्थ्य पर असर
- आंखें सूखी होने की समस्या- 29 प्रतिशत
- गर्दन में दर्द- 22 प्रतिशत
- कमर में दर्द- 11 प्रतिशत