प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली: इसराइल द्वारा ईरान पर किए गए हमलों के पीछे कई जटिल और दीर्घकालिक कारण हैं, जो दोनों देशों के बीच दशकों से चली आ रही शत्रुता और क्षेत्रीय भू-राजनीतिक तनावों से जुड़े हैं। विशेष रूप से 13 जून 2025 को इसराइल द्वारा ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर किए गए हमले (जिन्हें “ऑपरेशन राइजिंग लायन” नाम दिया गया) के कारणों को समझने के लिए कुछ बिंदुओं पर विचार करना जरूरी है।
इसराइल द्वारा हमले के कारण
इसराइल लंबे समय से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है। ईरान का परमाणु कार्यक्रम, विशेष रूप से नटanz और फोर्डो जैसे स्थलों पर यूरेनियम संवर्धन, इसराइल और पश्चिमी देशों के लिए चिंता का विषय रहा है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने मई 2025 में बताया कि ईरान के पास 60% शुद्धता वाला यूरेनियम 408 किलोग्राम तक पहुंच गया है, जो अगर और संवर्धित हो तो 9 परमाणु हथियार बनाने के लिए पर्याप्त हो सकता है।
इसराइल का मानना है कि “ईरान गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित करने की कोशिश कर रहा है, हालांकि ईरान इसे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए होने का दावा करता है। इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बार-बार कहा है कि वे ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकेंगे, चाहे इसके लिए कोई भी कदम उठाना पड़े।
ईरान के मिसाइल हमले और क्षेत्रीय खतरा
इसराइल ने 1 अक्टूबर 2024 को ईरान द्वारा इसराइल पर किए गए 180 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलों के हमले के जवाब में ये हमले किए। यह हमला अप्रैल 2024 में दमिश्क में ईरानी दूतावास पर इसराइली हमले (जिसमें दो ईरानी जनरल मारे गए थे) की प्रतिक्रिया थी।
ईरान ने अपनी क्षेत्रीय शक्ति को बढ़ाने के लिए हिजबुल्लाह (लेबनान), हमास (गाजा), और हौथी (यमन) जैसे प्रॉक्सी समूहों को समर्थन दिया है, जो इसराइल के खिलाफ सक्रिय हैं। इसराइल इन समूहों को ईरान के प्रभाव का हिस्सा मानता है और इन्हें कमजोर करने के लिए ईरान पर सीधे हमले को जरूरी समझता है।
पहले से योजनाबद्ध रणनीति
इसराइल ने लंबे समय से ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की योजना बनाई थी। 2010 से शुरू हुए ईरानी परमाणु वैज्ञानिकों की हत्याएँ, जिन्हें मोसाद से जोड़ा जाता है, और 2017 से सीरिया में ईरानी ठिकानों पर लगातार हवाई हमले इस रणनीति का हिस्सा थे।
13 जून 2025 के हमले को इसराइल ने “प्री-इम्प्टिव स्ट्राइक” (पूर्व-निवारक हमला) बताया, जिसका उद्देश्य ईरान की परमाणु और मिसाइल क्षमता को कमजोर करना था। इसराइली सैन्य प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल एफी डेफ्रिन ने कहा कि 200 से अधिक लड़ाकू विमानों ने 100 से अधिक लक्ष्यों पर हमला किया।
अमेरिका के साथ तनाव और रणनीतिक अवसर
2025 में अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु वार्ताएँ चल रही थीं, जिन्हें इसराइल संदेह की नजर से देखता था। इसराइल को लगता था कि ट्रम्प प्रशासन द्वारा प्रस्तावित कोई भी समझौता ईरान को पूरी तरह परमाणु हथियार बनाने से नहीं रोकेगा। इसराइल ने इन वार्ताओं के विफल होने की स्थिति में हमले की संभावना को बढ़ा दिया।
इसराइल ने हिजबुल्लाह और हमास जैसे ईरानी समर्थित समूहों को हाल के वर्षों में कमजोर किया था, जिससे उसे ईरान पर सीधे हमला करने का “रणनीतिक अवसर” दिखा।
परमाणु और सैन्य ठिकानों को निशाना
इसराइल ने नटanz परमाणु संवर्धन सुविधा को निशाना बनाया, जो ईरान के परमाणु कार्यक्रम का केंद्र है। नटanz में यूरेनियम संवर्धन के लिए सेंट्रीफ्यूज हैं, जो परमाणु हथियार बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं।पार्चिन सैन्य अड्डे पर “तालेगान 2” इमारत, जो पहले परमाणु हथियारों से संबंधित विस्फोटक परीक्षणों के लिए उपयोग की जाती थी, को भी नष्ट किया गया। यह सुविधा गुप्त रूप से परमाणु हथियारों के लिए अनुसंधान का हिस्सा थी, जिसे ईरान ने शांतिपूर्ण बताया था।
इसराइल का मानना है कि “इन सुविधाओं को नष्ट करने से ईरान की परमाणु हथियार बनाने की क्षमता को कुछ वर्षों के लिए पीछे धकेला जा सकता है। हालांकि, फोर्डो जैसे गहरे भूमिगत ठिकानों को नष्ट करना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इसके लिए विशेष बंकर-बस्टर बमों की जरूरत है, जो इसराइल के पास सीमित हैं।
सैन्य ठिकानों पर हमला
इसराइल ने खोजिर सैन्य अड्डे को निशाना बनाया, जो बैलिस्टिक मिसाइल उत्पादन और भूमिगत सुरंगों का केंद्र है। यह हमला ईरान की मिसाइल क्षमता को कमजोर करने के लिए था, जो इसराइल पर हमले के लिए उपयोग की जा सकती है। ईरान के हवाई रक्षा तंत्र, विशेष रूप से रूसी निर्मित S-300 सिस्टम, को भी निशाना बनाया गया ताकि भविष्य में इसराइली हवाई हमलों को आसान बनाया जा सके।
इसराइल ने ईरान के शीर्ष सैन्य नेताओं और परमाणु वैज्ञानिकों, जैसे जनरल होसैन सलामी और मोहम्मद मेहदी तहरांची, को निशाना बनाया ताकि ईरान की सैन्य और परमाणु कमान संरचना को कमजोर किया जा सके।
हमले का व्यापक प्रभाव
13 जून 2025 के हमले में नटanz परमाणु स्थल, कई सैन्य अड्डों, और मिसाइल डिपो को नुकसान पहुंचा। ईरान के सैन्य नेताओं और वैज्ञानिकों की हत्या ने ईरान की नेतृत्व क्षमता को गहरा आघात पहुँचाया। इस हमले ने मध्य पूर्व में युद्ध के खतरे को बढ़ा दिया। ईरान ने जवाबी कार्रवाई के लिए 100 से अधिक ड्रोनों को इसराइल की ओर भेजा, जिससे क्षेत्रीय युद्ध की आशंका बढ़ गई।
अमेरिका ने हमले में अपनी भागीदारी से इनकार किया, लेकिन इसराइल को आत्मरक्षा का अधिकार बताया। सऊदी अरब, मिस्र, और भारत जैसे देशों ने इस हमले की निंदा की और क्षेत्रीय स्थिरता पर चिंता जताई।
हमला इसराइल की रणनीति का हिस्सा
इसराइल ने ईरान पर हमला इसलिए किया ताकि ईरान के परमाणु हथियार बनाने की संभावित क्षमता को रोका जाए और उसकी सैन्य ताकत, विशेष रूप से बैलिस्टिक मिसाइलों और क्षेत्रीय प्रॉक्सी समूहों के प्रभाव को कम किया जाए। परमाणु ठिकानों को निशाना बनाने का उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को वर्षों पीछे धकेलना था, जबकि सैन्य ठिकानों और नेतृत्व पर हमले ईरान की जवाबी कार्रवाई की क्षमता को कमजोर करने के लिए थे। यह हमला इसराइल की रणनीति का हिस्सा था, जो ईरान को अपने सबसे बड़े क्षेत्रीय खतरे के रूप में देखता है