प्रकाश मेहरा
एक्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली: भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख और पवित्र उत्सवों में से एक है, जो विशेष रूप से ओडिशा के पुरी में भव्य रूप से मनाई जाती है। यह यात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आयोजित होती है, जो इस वर्ष 27 जून को शुरू हुई। दिल्ली से पुरी तक लाखों भक्त इस उत्सव में शामिल होने के लिए उमड़ पड़ते हैं, जिसे “आस्था का सैलाब” कहा जाता है। नीचे इसकी विशेष रिपोर्ट दी गई है, जिसमें दिल्ली से पुरी तक की यात्रा और उत्सव के विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया है।
जगन्नाथ रथ यात्रा की मान्यता!
जगन्नाथ रथ यात्रा पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर से शुरू होती है, जहां भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर गुंडीचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। यह यात्रा भक्ति, एकता, और भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। भक्तों का मानना है कि रथ खींचने से उनके पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह उत्सव न केवल पुरी बल्कि भारत के विभिन्न हिस्सों, जैसे दिल्ली और विश्व भर में भी मनाया जाता है।
दिल्ली से पुरी तक की यात्रा
दिल्ली से पुरी तक भक्तों का आना-जाना रथ यात्रा के दौरान चरम पर होता है। पुरी पहुंचने के लिए तीन मुख्य मार्ग हैं। दिल्ली से भुवनेश्वर के बीजू पटनायक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे तक नियमित उड़ानें उपलब्ध हैं। भुवनेश्वर से पुरी की दूरी लगभग 60 किलोमीटर है, जिसे बस, टैक्सी या ऑटो रिक्शा से 1 घंटे में तय किया जा सकता है। दिल्ली से भुवनेश्वर की उड़ान में 2-3 घंटे लगते हैं।
दिल्ली से पुरी के लिए सीधी ट्रेनें जैसे पुरुषोत्तम एक्सप्रेस और नीलाचल एक्सप्रेस उपलब्ध हैं। पुरी रेलवे स्टेशन मंदिर से केवल 3 किलोमीटर दूर है, जहां से ऑटो या पैदल मंदिर पहुंचा जा सकता है।दिल्ली से पुरी की दूरी लगभग 1700 किलोमीटर है। भक्त बसों या निजी वाहनों से भुवनेश्वर तक यात्रा करते हैं, फिर वहां से पुरी पहुंचते हैं। ओडिशा टूरिज्म की लग्जरी बसें भी इस दौरान उपलब्ध होती हैं।
पुरी में रथ यात्रा का आयोजन
इस वर्ष (2025) रथ यात्रा 27 जून को शुरू हुई। भक्तों का हुजूम सुबह से ही पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर के बाहर एकत्रित हुआ। तीन रथों- नंदीघोष (जगन्नाथ), तालध्वज (बलभद्र) और देवदलन (सुभद्रा) पर देवताओं को विराजमान किया जाता है। नंदीघोष रथ 65 फीट लंबा, 65 फीट चौड़ा और 45 फीट ऊंचा है, जिसमें 17 पहिए हैं।
रथ बडा दंडा (ग्रैंड एवेन्यू) के रास्ते गुंडीचा मंदिर तक जाते हैं, जहां देवता सात दिन विश्राम करते हैं। वापसी यात्रा, जिसे बहुदा यात्रा कहते हैं, 15 जुलाई को होगी। पुरी में इस वर्ष 180 प्लाटून पुलिस बल, रैपिड एक्शन फोर्स, और CRPF तैनात किए गए हैं। ट्रैफिक नियंत्रण के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और CCTV का उपयोग किया गया है।
दिल्ली में जगन्नाथ रथ यात्रा !
दिल्ली में भी जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन विभिन्न स्थानों, जैसे त्यागराज नगर के श्री जगन्नाथ मंदिर, में किया जाता है। दिल्ली के भक्त स्थानीय स्तर पर रथ यात्रा में भाग लेते हैं, और कई लोग पुरी की यात्रा के लिए प्रस्थान करते हैं। दिल्ली के मंदिरों में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा की पूजा उत्साह के साथ की जाती है।
आस्था का सैलाब !
पुरी में लाखों भक्त रथ खींचने और दर्शन के लिए उमड़ते हैं। हालांकि भक्तों ने इसे “जीवन में एक बार मिलने वाला अवसर” बताया।केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इसे सनातन संस्कृति की प्राचीनता और निरंतरता का प्रतीक बताया। रथ यात्रा सामाजिक समरसता और वैदिक परंपराओं को दर्शाती है। रथ यात्रा से जुड़ी कई अनोखी परंपराएं हैं, जैसे स्नान पूर्णिमा के बाद भगवान जगन्नाथ का बीमार पड़ना और उनका उपचार। यह मानव जीवन से उनकी निकटता को दर्शाता है।
पुरी के अन्य दर्शनीय स्थल
रथ यात्रा के साथ-साथ भक्त पुरी के अन्य स्थानों जैसे चिल्का झील और कोणार्क सूर्य मंदिर का भी भ्रमण करते हैं। चिल्का झील की नाव यात्रा भक्तों को प्राकृतिक सौंदर्य का अनुभव कराती है।जगन्नाथ रथ यात्रा दिल्ली से पुरी तक भक्तों की आस्था का एक जीवंत प्रतीक है। यह उत्सव न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक विरासत को भी मजबूत करता है। पुरी में भक्तों का सैलाब, रथों की भव्यता, और भगवान जगन्नाथ के प्रति अटूट श्रद्धा इस यात्रा को अविस्मरणीय बनाती है। यदि आप इस यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो रेल, सड़क या हवाई मार्ग से पुरी पहुंचकर इस आध्यात्मिक अनुभव का हिस्सा बन सकते हैं।