आयुष गांधी
नई दिल्ली : यह वाक्यांश वरिष्ठ पत्रकार और कवि प्रकाश मेहरा की नई पुस्तक “Journalism Without Borders” के सार को सबसे सटीक रूप में व्यक्त करता है। आगामी माह में प्रकाशित होने जा रही यह पुस्तक, आज की पत्रकारिता के भीतरी और बाहरी संघर्षों का एक ऐसा दस्तावेज है, जिसे पढ़ते हुए लगता है जैसे हम एक आत्मकथात्मक यात्रा पर निकल पड़े हों, जहाँ पत्रकारिता केवल खबर नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन बन जाती है।
पुस्तक जो सिर्फ पढ़ी नहीं, महसूस की जाती है
130 पृष्ठों में समाई यह पुस्तक सिर्फ घटनाओं का संकलन नहीं है, बल्कि एक पत्रकार के भीतरी द्वंद्व, साहसिक फैसलों और मूल्य आधारित दृष्टिकोण की ईमानदार प्रस्तुति है। यह पुस्तक “WAY TO JOURNALISUM” की गूंज भी है, पर अब इसकी आवाज और स्पष्ट, और निर्भीक हो चुकी है।
यह पुस्तक सवाल उठाती है –
क्या पत्रकारिता केवल माइक्रोफोन और कैमरों तक सीमित है?
या वह भी एक यात्रा है, जहाँ शब्द हथियार नहीं, आइना होते हैं?
जब कविताएं पत्रकार की आत्मा बोलती हैं
प्रकाश मेहरा की कविताएं, उनकी पत्रकारिता के समानांतर चलती एक अंतरंग धारा हैं। उनकी कविताएं सिर्फ भावुक पंक्तियाँ नहीं, बल्कि विचारशील समाज की अनकही सच्चाइयों की अभिव्यक्ति हैं।
“उम्मीदों का आईना” – जहां टूटते विश्वासों के बीच उम्मीद की दरार से रौशनी झाँकती है।
“लत का असर” – जिसमें समाज की आदतों पर एक गहरा सवाल।
“Pause a moment – The Storm Will Pass” – जीवन में ठहराव की आवश्यकता पर एक अंतरराष्ट्रीय सरोकार।
“सावन का विज्ञान”, “खुद को समझ नहीं”, “उम्मीदें कम, भरोसा खुद पर” – ये सभी कविताएं पत्रकार की नजर से आम इंसान की बेचैनियों का दस्तावेज़ हैं।
इन रचनाओं में एक अजीब किस्म की विनम्रता है – जैसे शब्द खुद झुककर सच को उठाते हैं।
पत्रकारिता की दिशाहीनता में एक दिशा
इस पुस्तक की सबसे बड़ी ताक़त है इसकी सीमाहीन सोच। मेहरा पत्रकारिता को किसी राष्ट्र, संस्था या विचारधारा की कैद में नहीं मानते। उनका मानना है कि पत्रकार को सत्ता नहीं, समाज के प्रति जवाबदेह होना चाहिए।
यह किताब ऐसे समय में आई है जब पत्रकारिता विश्वसनीयता के संकट से गुजर रही है। ऐसे दौर में “Journalism Without Borders” न केवल एक रचना है, बल्कि एक घोषणा है — निष्पक्षता, नैतिकता और मानवीय संवेदना की।
अंत नहीं, एक नई शुरुआत
प्रकाश मेहरा की यह कृति बताती है कि पत्रकार सिर्फ घटनाओं का द्रष्टा नहीं होता, बल्कि समय का दार्शनिक भी हो सकता है। उनकी कविता और पत्रकारिता – दोनों में सत्य की तलाश है, पर रास्ते अलग हैं। एक कलम भावनाओं से बोलती है, दूसरी तर्क से — पर मंज़िल एक ही है: सत्य।
“Journalism Without Borders” एक किताब नहीं, एक आत्मदर्शन है। पत्रकारिता को नया आईना दिखाने वाली इस रचना को पढ़ना, दरअसल खुद को पढ़ना है।