नई दिल्ली : राजनीति में एक गलती भी बहुत भारी पड़ती है| 1990 में कर्नाटक चन्नापटना नामक जगह पर गणेश उत्सव के बाद निकली रामज्योति यात्राओं पर मुसलमानों ने हमले कर दिए थे, नतीजतन कई शहरों में हिन्दू मुस्लिम दंगे हुए, जिनमें सात लोग मारे गए थे| उस समय कर्नाटक में सर्वाधिक प्रभाव वाले लिंगायत समुदाय के वीरेन्द्र पाटिल मुख्यमंत्री थे| अपनी मुस्लिमपरस्त नीति के चलते राजीव गांधी ने वीरेंद्र पाटिल को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था| एयरपोर्ट पर बुलाकर ही उनको इस्तीफा देने के लिए कह दिया गया था| जिसे लिंगायतों ने अपमान के रूप में लिया|
इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में लिंगायतों ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व में जनता दल का साथ दिया। हालांकि 1985 से 1988 तक मुख्यमंत्री रहे हेगड़े फिर कभी सत्ता में नहीं आए| लेकिन लिंगायत तब से कांग्रेस विरोधी है, क्योंकि कांग्रेस ने फिर कभी लिंगायत को मुख्यमंत्री नहीं बनाया| पहले वीरेन्द्र पाटिल की जगह पर ओबीसी समुदाय के. एस. बंगारप्पा और वीरप्पा मोइली मुख्यमंत्री बनाए गए और उनके बाद वोक्कालिगा एस.एम. कृष्णा और क्षत्रिय धर्म सिंह मुख्यमंत्री बने|
2006 में जब भाजपा-जेडीएस की साझा सरकार बनी, तब भी वोक्कालिगा समुदाय के एच. डी. कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने| 1990 के बाद 2008 में भाजपा ने लिंगायत येदुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाया| तब से लिंगायत भाजपा के साथ हैं| हालांकि भाजपा ने 2012 में येदुरप्पा को हटा कर वोक्कालिगा सदानंद गौड़ा को मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन लिंगायत वोट बैंक पर असर होता देख भाजपा ने लिंगायत जगदीश शेट्टार को मुख्यमंत्री बना दिया था| लेकिन वह लिंगायत होने के बावजूद असरकार साबित नहीं हुए और भाजपा 2013 का चुनाव हार गई|
आम तौर पर सभी लोग यह मान कर चलते हैं कि कर्नाटक में सत्ता उसे मिलती है, जिसके साथ लिंगायत समाज होता है| लेकिन यह सच नहीं है। इस सच को भाजपा ने 2017 में ही पहचान लिया था| इसलिए येदुरप्पा ही कांग्रेस के दिग्गज वोक्कालिगा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एस.एम. कृष्णा को भाजपा में लेकर आए थे| क्योंकि सत्ता की चाबी अब न तो अकेले लिंगायत समुदाय के पास है, न वोक्कालिगा के पास|
आमतौर पर धारणा है कि लिंगायत समुदाय कुल आबादी का 18 प्रतिशत है, और उसका 110 सीटों पर असर है। लेकिन पिछली बार 2018 में 224 के सदन में सिर्फ 60 लिंगायत विधायक चुने गए थे| इसी तरह दूसरे प्रभावशाली समुदाय वोक्कालिगा के बारे में माना जाता है कि उनकी आबादी 12 से 14 प्रतिशत के बीच है| पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा और पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी वोक्कालिगा हैं| कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दावेदार डीके शिवकुमार भी वोक्कालिगा समुदाय से हैं|
भाजपा ने लिंगायत बीएस येदुरप्पा को हटा कर लिंगायत बसवराज बोम्मई को ही मुख्यमंत्री बनाया| इसलिए लिंगायत भाजपा के साथ बना हुआ है, लेकिन वोक्कालिगा समाज देवगौड़ा की जेडीएस और कांग्रेस में बंटा हुआ है| साउथ कर्नाटक की 89 सीटों पर वोक्कालिगा समाज का रुख निर्णायक होता है| 2018 के चुनाव में एस.एम. कृष्णा फेक्टर के कारण भाजपा को इस क्षेत्र में भी 22 सीटें मिल गई थीं, हालांकि इनमें वोक्कालिगा विधायक सिर्फ 9 थे| वहीं कांग्रेस को साउथ कर्नाटक में 32 और जेडीएस को 31 सीटों पर जीत मिली थी। जेडीएस को ज्यादा सीटें मिलने का एक कारण यह भी था कि बसपा और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस ने उसका समर्थन किया था|
कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कुरबा जाति से हैं, जिसकी आबादी 7 प्रतिशत है और 10-12 सीटों पर प्रभाव रखती है| कांग्रेस का प्लस प्वाइंट यह है कि वोक्कालिगा के साथ साथ 14 प्रतिशत आबादी वाला मुस्लिम समुदाय और 7 प्रतिशत आबादी वाला कुरबा समुदाय भी उसका कोर वोटर है। 75 प्रतिशत तक मुस्लिम और कुरबा वोट कांग्रेस के साथ रहता है| लेकिन उसकी कमजोरी लिंगायत वोट हैं, जो 110 विधानसभा सीटों पर जिताने हराने की क्षमता रखते हैं। इसीलिए कांग्रेस ने भाजपा के नाराज लिंगायतों को हाथों-हाथ लिया| भाजपा के कम से कम आधा दर्जन प्रभावशाली लिंगायत नेता हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए हैं|
अब दावों से बड़ी हकीकत| सिद्धारमैया ने मुख्यमंत्री रहते ही जातीय जनगणना करवाई थी, हालांकि जातीय जनगणना के आंकड़े जगजाहिर नहीं किए गए थे, लेकिन लीक हुए आंकड़ों के मुताबिक़ लिंगायत 18 प्रतिशत से घट कर 10 प्रतिशत रह गए हैं, वोक्कालिंगा 16 प्रतिशत से घट कर 8.16 प्रतिशत रह गए हैं| जबकि दलितों की आबादी सबसे ज्यादा 19 प्रतिशत है, हालांकि सबसे ज्यादा आबादी के बावजूद दलित कभी मुख्यमंत्री नहीं बना|
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक के दलित समुदाय से आते हैं। दलितों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने कहा है कि अगर मल्लिकार्जुन खड़गे मुख्यमंत्री बनाए जाते हैं, तो वह उनका समर्थन करेंगे| राज्य की 224 सीटों में से 36 सीटें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हैं| इसलिए भाजपा ने इस बार रणनीति में बदलाव किया है| वह लिंगायतों के सबसे बड़े नेता येदुरप्पा को सामने रख कर ही चुनाव लड़ रही है, लेकिन सिर्फ लिंगायत पर निर्भर नहीं रहना चाहती, उसने सभी जातियों के भीतर अप्रोच शुरू की है|
भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा करते समय इस बात पर जोर दिया कि किस किस समुदाय को कितने टिकट दिए गए हैं| सभी जातियों को महत्व देने के साथ उसने नए वोटरों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए 17 उम्मीदवार बदल कर कम आयु के उम्मीदवार उतारे हैं और 60 नए चेहरों को मैदान में उतारा है| भाजपा ओबीसी और दलितों को ज्यादा से ज्यादा आकर्षित करने के फार्मूले पर चल रही है| 11 प्रतिशत ओबीसी 24 सीटों पर और दलित कम से कम 50 सीटों पर प्रभावकारी हैं| कहीं कहीं साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण भी उसके पक्ष में काम कर रहा है|