नई दिल्ली। उत्तराखंड में 1 जुलाई 2026 से राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड पूरी तरह समाप्त कर दिया जाएगा. सरकार ने इसकी जगह नया ‘उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा अधिकार अधिनियम’ लागू किया है, जिसके तहत अब सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, बल्कि सिख, ईसाई, बौद्ध और अन्य सभी अल्पसंख्यक समुदाय अपने शैक्षणिक संस्थानों की मान्यता प्राप्त कर सकेंगे. हालांकि इस फैसले के बाद सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि वर्तमान में मदरसा बोर्ड से मान्यता लेकर चल रहे 452 मदरसों का भविष्य क्या होगा.
अल्पसंख्यक कल्याण सचिव का बयान
इस मुद्दे पर अल्पसंख्यक कल्याण सचिव पराग मधुकर धकाते ने बताया कि मदरसा बोर्ड के समाप्त होने के बाद इन सभी मदरसों को दोबारा मान्यता प्रक्रिया से गुजरना होगा. इसके लिए उन्हें पहले उत्तराखंड माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के मानकों के अनुसार मान्यता लेनी होगी, और उसके बाद अल्पसंख्यक शिक्षा अधिकार प्राधिकरण पोर्टल पर पंजीकरण कराना होगा. उन्होंने कहा कि इस नई प्रक्रिया के लिए नियमावली और एक समर्पित ऑनलाइन पोर्टल तैयार किया जा रहा है.
इधर सरकार के इस फैसले से मदरसा संचालकों में गहरी चिंता और नाराजगी दिखाई दे रही है, कई संचालक कह रहे हैं कि छोटे और संसाधनहीन मदरसे माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के कठोर मानकों पर खरा नहीं उतर पाएंगे, क्योंकि उनके पास न तो पर्याप्त जमीन है और न ही वे आधुनिक ढांचे और स्टाफ की शर्तें पूरी करने की क्षमता रखते हैं.
मदरसा संचालक का बयान
मदरसा संचालक मुफ्ती रईस अहमद का कहना है कि सरकार को बोर्ड बंद करने से पहले मदरसों की वास्तविक परिस्थितियों को समझना चाहिए था. उनका कहना है, “इस नियमावली ने छोटे मदरसों के अस्तित्व पर तलवार लटका दी है. हमें राहत नहीं मिली तो हम सड़क पर उतरकर आंदोलन करेंगे और अदालत भी जाएंगे.
वहीं मुस्लिम स्कॉलर खुर्शीद आलम का कहना है कि अल्पसंख्यक शिक्षा अधिकार प्राधिकरण बनाना सरकार का स्वागतयोग्य कदम है. मगर मानकों को इतना कठोर बनाना उचित नहीं है कि पुराने और छोटे मदरसे स्वतः ही बंद होने की कगार पर पहुंच जाएं.
स्थिति यह है कि राज्य में कई छोटे मदरसे अब बंद होने की आशंका से घिरे हुए हैं. जहां सरकार इसे शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का कदम बता रही है, वहीं संचालकों का कहना है कि अचानक लागू किए गए इस ढांचे से सैकड़ों बच्चों और शिक्षकों का भविष्य प्रभावित होगा.
आने वाले महीनों में यह मुद्दा उत्तराखंड में बड़ा सामाजिक और राजनीतिक विवाद बन सकता है, क्योंकि मदरसा संचालक अब अपने वजूद की लड़ाई” लड़ने की तैयारी कर चुके हैं.







