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Home दिल्ली

यमुना जिए अभियान के संयोजक मनोज मिश्रा

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
June 24, 2023
in दिल्ली, विशेष
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Yamuna
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The petty politics of Gandhi vs Savarkarकौशल किशोर


सुबह को कम से कम एक लाख लोग लंबी मानव श्रृंखला बनाने के लिए यमुना के तट पर राष्ट्रीय राजधानी में जमा हुए थे। यमुना कछार 22 किलोमीटर लंबे मानव श्रृंखला का गवाह हुआ। यह प्रयास यमुना संसद कहलाता है। इसमें सभी क्षेत्र के लोग और राजनीतिक दलों के नेता और कार्यकर्ता यमुना बचाने के लिए एकत्रित हुए थे। उसी दिन दोपहर बीतने पर राष्ट्रीय राजधानी में यमुना जिए अभियान का सूत्रपात करने वाले मनोज मिश्रा दुनिया से विदा लेते हैं। यह मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में पूरी होने वाली यात्रा साबित हुई है। विश्व पर्यावरण दिवस से ठीक एक दिन पहले वह इस जून का पहला रविवार था।

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उस शाम हमारी आखिरी बातचीत दिमाग में देर तक घूमती रही। एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में आश्रय के अधिकार के लिए सत्याग्रह करने वाले विमल भाई के दुर्भाग्यपूर्ण अंत के बारे में बात कर रहे थे। ऐसा भी नहीं लग रहा था कि कल की ही बात हो। विमल भाई की एक दशक लंबी बीमारी के बारे में सिलसिलेवार विवरण उन्होंने प्रस्तुत किया था। अंत में उन्हीं की तरह संघर्ष के दरम्यान इस दुनिया से कूच करने की बात कहते हैं। रविवार को यमुना संसद से जुड़ी जानकारी एकत्र करने की कोशिश करते हुए उनके निधन का पता चला और यकीन नहीं हो रहा था। उनको फोन लगाने पर उनकी छोटी बहन श्रद्धा बक्सी ने इसकी पुष्टि की। अविरल और निर्मल यमुना का स्वप्न साकार करने हेतु उनके जीवन और कार्यों में छिपे महत्वपूर्ण संदेशों पर गौर करना चाहिए।

धरती के इस लाल का जन्म मथुरा-आगरा क्षेत्र के एक कवि के परिवार में 7 अक्टूबर 1954 को हुआ था। पच्चीस की अवस्था में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के रैंक में शामिल हुए थे। करियर के चरम पर वह ट्रैफिक (डबल्यूडबल्यूएफ इंडिया का एक उपक्रम) के निदेशक और मध्य प्रदेश में मुख्य वन संरक्षक के रूप में सक्रिय रहे। बाइस साल लंबी सेवा के बाद 2001 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प चुना। यह यमुना की सेवा में समर्पित होने से पहले की कहानी है। ड्यूटी और कर्त्तव्य का मार्मिक प्रसंग इस कड़ी में प्रकट होता।

दो साल बाद 2003 में उन्होंने दिल्ली में पीस इंस्टीट्यूट शुरु किया और 2007 से यमुना जिए अभियान के संयोजक भी रहे। मनोज मिश्रा न केवल यमुना में औद्योगिक और घरेलू कचरा प्रवाहित करने के विरुद्ध सक्रिय रहे, बल्कि इबादत घरों से पहुंचने वाले कचरा को प्रवाहित करने के खिलाफ थे। इसके लिए उन्होंने कोर्ट में याचिका भी दायर किया था। 13 जनवरी 2015 को एनजीटी की प्रमुख पीठ ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया था। इसमें कहा गया है कि “हम किसी भी व्यक्ति को निर्दिष्ट स्थल को छोड़कर यमुना में पूजा सामग्री या किसी भी अन्य सामग्री जैसे खाद्यान्न, तेल आदि को फेंकने से रोकते हैं। कोई भी व्यक्ति इस निर्देश की अवहेलना करने पर जुर्माना के तौर पर 5000 रुपये का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा।”

हालांकि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण को इस वास्तविकता का पता था कि अधिकारियों में ईमानदारी और प्रभावी ढंग से योजनाएं और आदेशों को लागू करने के लिए जरुरी इच्छाशक्ति की कमी है। इसके बावजूद भी उन्हें ऐसी सामग्री चढ़ाने अथवा विसर्जित करने के लिए नदी के किनारों पर विशेष व्यवस्था करने का निर्देश दिया। वैज्ञानिक तरीके से तत्काल और उचित व्यवस्था के लिए स्पष्ट कहते हैं। इसी कड़ी में मनोज मिश्रा पुष्पांजलि कलश जैसी परियोजना शुरू करने वाले यूथ फ्रेटरनिटी फाउंडेशन से संपर्क साधते हैं। इसके संस्थापक और अध्यक्ष गोपी दत्त आकाश के साथ मिल कर जागरूकता कार्यक्रम भी शुरू करते। आम और खास जनता का आह्वान करते हुए दो बार टीवी चैनलों पर भी खूब दिखे थे। उनके जीवन का अंत होने से पहले ही दिल्लीवासी यमुना तट पर पहुँच गए थे। यह गांधी और नेहरु की समाधि स्थल बनी दिल्ली को भोपाल से जोड़ती प्रतीत होती।

पिछले दो दशकों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में उनकी पहचान पब्लिक इंटेलेक्चुअल के तौर पर कायम हुई थी। सही मायनों में मेरी व्यक्तिगत बातचीत उनके साथ 2012 में शुरू हुई। आईआईसी (इंडिया इंटरनेशनल सेंटर) में हम “गंगा की व्यथा” पर दो दिनों के गोलमेज सम्मेलन में थे। इसके एक सत्र में मनोज मिश्रा हमारे मुख्य अतिथि रहे हैं। तभी से विचार साझा करने का क्रम जारी रहा। यमुना सरंक्षण से जुड़े मोर्चे पर एक साथ सक्रिय रहे हैं।

उन्हें कई जनहित याचिका दायर करने के लिए जाना जाता है। गंगा और यमुना जैसी नदियों के मामलों में न्यूनतम पारिस्थितिक प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने एक व्यापक अभियान चलाया। अफसोस की बात है कि आईआईटी और विशेषज्ञों का समूह यह न्यूनतम प्रवाह सुनिश्चित करने में सफल नहीं हो सका। यमुना खादर उनको आकर्षित करता रहा। श्री श्री रविशंकर व उनकी आध्यात्मिक संस्थान दी आर्ट ऑफ लिविंग के खिलाफ एनजीटी के फैसले से से भी यह परिलक्षित होता है।

स्वामी सानंद (प्रो. जी.डी. अग्रवाल) और मनोज मिश्रा के जीवन एवं कार्य में निहित संदेश राजनेताओं और नौकरशाहों के लिए भी प्रासंगिक हैं। इसी समीकरण को छूते छेड़ते हुए उन्होंने जीवन व्यतीत किया है। आधुनिक भारत को शीघ्र ही उनका संदेश समझना होगा। नदियों में आवश्यक प्रवाह को बहाल रखने के लिए नहर से सिंचाई की व्यवस्था को भी बदलने की जरूरत है। जलस्रोतों को रिचार्ज कर कृषि कार्य हेतु आवश्यक होने पर जल के निकासी की प्रौद्योगिकी देश के तमाम हिस्सों में पहुंच चुकी है। इसलिए तकनीकी के इस दौर में जल हरण के भीषण संकट से मुक्ति संभव होने पर भी इच्छाशक्ति का अभाव दिखता है। जुमलेबाजी ही हावी होती जा रही है।

औद्योगिक और घरेलू सीवर की समस्या भी एक अहम मुद्दा है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के सहयोग की आवश्यकता है। विशाल सीवर ट्रीटमेंट प्लांट्स (एसटीपी) ने तरल कचरे को ले जाने के लिए खूब लंबी सीवर लाइनों की मांग पैदा की। साथ ही धरती माता को प्रदूषित करने का काम किया है। आज इस संकट से निपटने के लिए बेहतर तकनीकी उपलब्ध है। इसकी चर्चा कुछ दिनों पहले “कचरा प्रबंधन का राजनीतिक अर्थशास्त्र और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण” की भूमिका पर केंद्रित आलेख में हुई है।

संस्थानीकरण के इस दौर में राजनीतिक जमात के साथ नौकरशाही और बाजार के बीच का समीकरण छिपा नहीं रह गया है। यह व्यवस्था यदि उनका संदेश समझने में सफल नहीं हुआ तो लोकतंत्र को भी क्षति पहुंचेगी। हालांकि राष्ट्र-राज्य द्वारा गांव व समूहों की शक्तियों को हड़पने के बाद इस नई उभरती जन भावना का कोई कानूनी मतलब नहीं है। सही मायनों में नागरिक समाज की स्थिति भी दयनीय है। हालाँकि उनकी स्थिति कानून की किताबों में बेहतर है। लोक शक्ति का यह उभार बिना किसी जवाबदेही के स्थाई और अस्थाई सत्ता में जमे लोगों को यदि जिम्मेदार बना सके तो देश का भला होगा।

अपने अंतिम प्रहर में मनोज मिश्रा कोरोना वायरस के नए वैरिएंट के संक्रमण से ग्रस्त हो गए थे। जिस दिन हमें छोड़कर गए वह यमुना के मामले में निश्चय ही ऐतिहासिक दिन है। सभी राजनीतिक दलों और विचार के विभिन्न विद्यालयों ने यमुना की संतान के तौर पर अपनी पहचान उजागर करने का सामूहिक प्रयास किया है। गौरतलब है की हमारे पूर्वजों ने इस भावना को मुख्य आधार मान कर प्राकृतिक रूप से बहने वाली नदियों की स्वच्छता और पवित्रता को बरकरार रखा। जल के अन्य स्रोतों की सुरक्षा भी इसी का नतीजा है।

उनके जाने के बाद दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना ट्विटर पर श्रद्धांजलि देते हैं। विश्वसनीयता के संकट से जूझ रही जमात एक दूसरे को गाली देने के बजाय यदि यह सुनिश्चित करने का प्रयास करे कि जरूरतों को कैसे पूरा किया जा सकता है तभी देश का हित होगा। आज बेहतर कार्यप्रणाली विकसित करने की जरूरत है। इन सब के बावजूद अतीत की मूर्खता जारी रखने पर यमुना संसद का उद्देश्य प्राप्त नहीं होगा।

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