मुरार कण्डारी
कहीं प्राकृतिक तो कहीं मानवजनित कारणों से हर साल आपदा का खतरा बढ़ रहा है। इसके बावजूद जिले में खनन का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बागेश्वर में पिछले पांच सालों में खड़िया खानों की संख्या 10 गुणा से भी अधिक हो गई। खड़िया खनन से जहां पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है वहीं सदियों पुराने जल स्रोत, नौले धारे भी खत्म हो रहे हैं।
बागेश्वर जिले की रीमा से लेकर कांडा तक बड़ी मात्रा में खड़िया स्टोन पाया जाता है। जिले में हाल के वर्षों में खड़िया खनन का कारोबार तेजी से बड़ा है। वर्ष 2011 में पूरे जिले में खड़िया की मात्र 45 खानें थी। वर्ष 2017 में इन खदानों की संख्या बढ़कर 70 पहुंच गई। पिछले साल के भीतर दस नई खानों को स्वीकृति मिली है। वर्तमान में खड़िया खानों की संख्या 140 पहुंच चुकी है। जिले में खड़िया खनन से लगभग 200 करोड़ का कारोबार हो रहा है। इसमें से खनन कारोबारियों की जेबें तो भरती ही हैं, लगभग 20 करोड़ का राजस्व सरकार की झोली में भी जाता है।
लेकिन खड़िया खनन के कारण पहाड़ियां धीरे-धीरे खोखली भी होती जा रही है। हालात यह हैं कि कई स्थानों पर खेतों से शुरू होने वाला खनन आबादी तक पहुंच गया है। खड़िया खनन से गांवों के जल स्रोत, नौले-धारे, पेड़-पौधे और रास्तों का अस्तित्व भी समाप्त हो गया है। वैध खनन की आड़ में कुछ स्थानों पर होने वाले अवैध खनन से पर्यावरण को सबसे अधिक खतरा पहुंचा है।
नियमानुसार खड़िया खनन आबादी, जल स्रोत, भवन से एक निर्धारित दूरी तक नहीं किया जा सकता है। जल स्रोत, आबादी वाले क्षेत्रों, भवन सभी जगहों से दूरी के अलग अलग मानक निर्धारित हैं। लेकिन इन मानकों की अनदेखी की जा रही है। मोटी कमाई के चक्कर में न तो किसी को पहाड़ की फिक्र है और नही पर्यावरण की चिंता।
बागेश्वर जिले में खड़िया खनन का कारोबार 20 गुणा तेज़ रफ्तार से लगातार बढ़ रहा है। खड़िया खनन से जहां पिछले साल सरकार को 19 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ था। इस साल यह बढ़कर 23 करोड़ पहुंच गया है।